Edited By Anjna,Updated: 21 May, 2018 08:22 AM
मामूली बातों को लेकर आपस में विवाद व लड़ाई-झगड़ा करने वाले भी सरकारी खजाना भरने में पीछे नहीं हैं। सिविल अस्पताल से मिले आंकड़ों के मुताबिक विगत वर्ष (2017 में) घायलों ने एम.एल.आर. कटवाने के दौरान 12 लाख 4 हजार रुपए सरकारी खजाने में जमा करवाए हैं।
जालंधर (शौरी): मामूली बातों को लेकर आपस में विवाद व लड़ाई-झगड़ा करने वाले भी सरकारी खजाना भरने में पीछे नहीं हैं। सिविल अस्पताल से मिले आंकड़ों के मुताबिक विगत वर्ष (2017 में) घायलों ने एम.एल.आर. कटवाने के दौरान 12 लाख 4 हजार रुपए सरकारी खजाने में जमा करवाए हैं। गौर हो कि हमले में घायल व्यक्ति सिविल अस्पताल आकर अपनी एम.एल.आर. एमरजैंसी वार्ड में बैठे डाक्टर से कटवाता है और सरकारी फीस 300 रुपए जमा करवाने के उपरांत रसीद डाक्टर को देकर अपनी एम.एल.आर. थाने में देकर हमलावर के खिलाफ कार्रवाई करवाता है।
अधिकतर मामलों में थाने में हो जाता है राजीनामा
डाक्टरों के पास एम.एल.आर. कटवाने के मामलों में अधिकतर ऐसे केस आते हैं जिनमें उन्हें थप्पड़ मारे हों या फिर डंडों से पीटा गया हो। ऐसे केस बहुत कम आते हैं जिसमें तेजधार हथियारों से मरीज को बुरी तरह घायल किया गया हो। नाम न छापने की शर्त पर एक डाक्टर का तो यहां तक कहना था कि सरकारी फीस 300 से बढ़ाकर 1 हजार रुपए कर देनी चाहिए, ताकि मामूली चोट में एम.एल.आर. कटवाने के रुझान को रोका जा सके। ज्यादातर मामलों में तो मरीज एम.एल.आर. कटवाने के बाद जैसे ही थाने में जाता हो तो दूसरे पक्ष के साथ थाने में ही उसका राजीनामा हो जाता है। करीब 5 प्रतिशत ही ऐसे केस होते हैं जब मरीज थाने में एफ.आई.आर. दर्ज करवाता है और डाक्टर को अदालत गवाही देने के लिए जाना पड़ता है।
खुद को चोट लगाकर भी आते हैं कुछ लोग : डा. चोपड़ा
अपने विरोधी पक्ष पर हमला करने के बाद कुछ शातिर लोग खुद या फिर अपने दोस्त आदि की मदद से चोट लगाकर भी सिविल अस्पताल में एम.एल.आर. कटवाने के लिए आ जाते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि डाक्टर चैकअप करने के दौरान भांप लेते हैं कि मरीज ने खुद चोट लगाई है या फिर उस पर सच में हमला हुआ है। ऐसे मामले में डाक्टर के पास यह पावर होती है कि वह एम.एल.आर. में उक्त विवरण लिख दे। फोरैंसिक एक्सपर्ट डा. राकेश चोपड़ा का कहना है कि घाव देखने के बाद डाक्टर को पता चल जाता है कि स्किन में घाव कितना गहरा है।