कांग्रेस ने नए चेहरों पर खेला दाव, बैकडोर एंट्री व पैराशूट से आए अनेकों नेताओं को बनाया प्रधान

Edited By Vatika,Updated: 11 Jan, 2019 12:42 PM

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लोकसभा चुनावों से पूर्व कांग्रेस हाईकमान द्वारा जिला कांग्रेस शहरी व देहाती के प्रधानों के नामों की घोषणा कर दी गई है। आज जारी की गई लिस्ट में कांग्रेस ने जिलों से सबंधित कद्दावर दावेदारों को नजरअंदाज करके ज्यादातर नए चेहरों पर दाव खेलते हुए अनेकों...

जालंधर (चोपड़ा): लोकसभा चुनावों से पूर्व कांग्रेस हाईकमान द्वारा जिला कांग्रेस शहरी व देहाती के प्रधानों के नामों की घोषणा कर दी गई है। आज जारी की गई लिस्ट में कांग्रेस ने जिलों से सबंधित कद्दावर दावेदारों को नजरअंदाज करके ज्यादातर नए चेहरों पर दाव खेलते हुए अनेकों जिलों में बैकडोर एंट्री व पैराशूट से आए चेहरों के हाथों में पार्टी की कमान थमा दी है।
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जिला प्रधानों की नियुक्ति में प्रदेश कांग्रेस प्रधान सुनील जाखड़ जातिगत समीकरण की गोटियां बिठाने में भी असफल दिखाई दिए हैं क्योंकि कांग्रेस ने कई ऐसे चेहरों को जिला प्रधानगी थमा दी है, जिनका जिला कांग्रेस की गतिविधियों में कभी कोई खासा योगदान नहीं रहा है और उन पर पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप भी लगते रहे हैं। शहरी वर्ग से सबंधित जिलों में दलित सिख व महिलाओं को आगे करके कांग्रेस ने जो दाव खेला है, वह अगर उलटा पड़ गया तो कांग्रेस में भी अकाली दल, भाजपा व आप की भांति बगावती सुर तेज होंगे जिसका सीधा नुक्सान लोकसभा चुनावों में देखने को मिलेगा। हाईकमान ने 4 जिलों में महिलाओं को भी प्रधानगी सौंपी है जिससे कई मजबूत दावेदार खासे मायूस होंगे, क्योंकि उक्त महिलाएं पहले से ही प्रदेश महिला कांग्रेस में महत्वपूर्ण पदों पर काम कर रही थीं।पंजाब में कांग्रेस कार्यकत्र्ता अपनी नजरअंदाजी के कारण पहले ही खासे हताश व निराश हैं।
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मुख्यमंत्री दरबार से लेकर संगठन में उनकी कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है। 10 सालों तक अकाली दल-भाजपा गठबंधन की ज्यादतियों झेलने वाले कार्यकत्र्ताओं को जब अपनी ही पार्टी में कोई तवज्जों न मिली तो वे हताश होकर घरों में बैठने को मजबूर हो चुके हैं। पंजाब में सरकार व संगठन दोनों में ब्यूरोक्रेट्स पूरी तरह हावी है और बड़े नेताओं तक पहुंच करनी आम कार्यकत्र्ताओं के बस की बात नहीं है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के समक्ष विधायकों तक की कोई खास सुनवाई नहीं हो पा रही है, ऐसे में कार्यकत्र्ता नए प्रधानों से आस लगाए बैठे थे कि सशक्त चेहरों को आगे लाने से पार्टी जहां मजबूत होगी, वहीं संगठन में ऐसे मजबूत चेहरे आगे आएंगे, जोकि उनका हाथ थामेंगे परंतु कई जिलों में हालात ऐसे हैं कि जिन नेताओं को प्रधानगी सौंपी गई है, उनका पार्टी में कोई खास वजूद नहीं है और स्थानीय विधायकों तक से उनकी पटती नहीं है। कार्यकत्र्ताओं के टूटे हुए मनोबल से सुलग रही ङ्क्षचगारी को अगर बगावत की हवा मिल गई तो कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनावों में विकट स्थिति बनने में देर नहीं लगेगी।

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