अगर जालंधर में आतंकी वारदात होती तो 12 बैड ही मिलते सिविल अस्पताल में

Edited By Vatika,Updated: 12 Oct, 2018 11:22 AM

civil hospital jalandhar

जालंधर में 3 कश्मीरी आतंकवादियों की गिरफ्तारी के बाद जहां शहरवासियों ने चैन की सांस ली है, वहीं खुदा न खास्ता अगर जालंधर में ये आतंकवादी किसी नापाक वारदात को अंजाम देने में सफल हो जाते तो सिविल अस्पताल में प्रबंधक तो हाथ ही खड़े कर देते। सिविल...

जालंधर(शौरी): जालंधर में 3 कश्मीरी आतंकवादियों की गिरफ्तारी के बाद जहां शहरवासियों ने चैन की सांस ली है, वहीं खुदा न खास्ता अगर जालंधर में ये आतंकवादी किसी नापाक वारदात को अंजाम देने में सफल हो जाते तो सिविल अस्पताल में प्रबंधक तो हाथ ही खड़े कर देते। सिविल अस्पताल में प्रबंध न के बराबर है और किसी भी घटना के बाद अस्पताल में अफरा-तफरी मचना तय है। जालंधर का सिविल अस्पताल वैसे तो 470 बैड का है लेकिन अंदर प्रबंध खोखले हैं।

दूसरी मंजिल पर बने मेल बर्न वार्ड में केवल 7 बैड हैं, जिसमें झुलसे लोगों का उपचार किया जाता है। नियमानुसार बर्न वार्ड में एयरकंडीशन अ‘छी हालत में होने चाहिएं लेकिन अस्पताल में एयरकंडीशन खराब होने के कारण कई माह से बंद पड़े हैं। यही हाल फीमेल बर्न वार्ड का है जहां 5 बैड मौजूद हैं। यहां भी न तो एयरकंडीशन चलते हैं और न ही वहां उपयुक्त व्यवस्था है। वार्ड का मुख्य दरवाजा टूटा हुआ है जहां म‘छर व कीटाणु फैले हुए हैं। नियमानुसार बर्न वार्ड कीटाणु मुक्त होना चाहिए और एयर टाइट दरवाजे होने चाहिएं।

बर्न वार्ड में लोग चप्पल लेकर चले जाते हैं जिस कारण कीटाणु तेजी से फैलते हैं। गंदे जूते व चप्पल डालकर जाने वालों को रोकने के लिए सिक्योरिटी गार्ड तक नहीं है। स्टाफ का कहना है कि वार्ड में सिक्योरिटी गार्ड का काम वह नहीं कर सकते। अगर वह लोगों को जूते उतार कर जाने को कहते हैं तो वे विवाद करते हैं। वहीं बर्न वार्ड में सफाई नाम की कोई चीज नहीं है। बैडशीटें गंदी बिछी हुई हैं। गद्दे फटे हुए हैं और बदबू से पूरे वार्ड की हालत खराब है। अंदर ऑक्सीजन पाइप व वैंटीलेटर तक नहीं हैं।

10 लाख का फंड आया है, इंजीनियर नहीं बना रहे वार्ड 
अस्पताल की मैडीकल सुपरिंटैडैंट डा. जसमीत बावा का कहना है कि सरकार की तरफ से फीमेल बर्न वार्ड के लिए 10 लाख रुपए फंड आया है लेकिन वार्ड तैयार करने वाले संबंधित इंजीनियर इसको तैयार नहीं कर रहे हैं। अस्पताल में दवा-दारू, ग्लूकोज के अलावा किसी प्रबंध की कमी नहीं होने दी जाएगी। इसके लिए वह खुद पूरी तरह से चौकस हैं। केंद्र सरकार की तरफ से 1.2 करोड़ रुपए भी मिलने वाले हैं। ट्रोमा वार्ड में मेल मैडीकल बर्न यूनिट तैयार किया जाएगा।

अस्पताल कैसे करेगा इलाज 
अस्पताल में जब कोई झुलसा व्यक्ति आता है तो सबसे अधिक जरूरत उसको नॉर्मल सेलाइन की होती है। बॉडी में पानी की मात्रा कम हो जाती है इसलिए उसको आई.वी.यू. सॉल्यूशन चढ़ाया जाता है ताकि शरीर में पानी की मात्रा कम न होने पाए लेकिन अस्पताल में न तो नॉर्मल सेलाइन है और न ही ग्लूकोज के साथ मिक्स सेलाइन। इसके अलावा दर्द के लिए इंजैक्शन डिक्लोफिनेक सोडियम भी नहीं हैं। 

बर्न वार्ड में दर्जा चार कर्मचारी करते हैं पट्टी
झुलसे मरीज को सबसे एहतियात कीटाणुओं से रखनी पड़ती है। झुलसे होने के कारण सॉफ्ट टिश्यू बर्न हो जाते हैं और इसमें इंफैक्शन का खतरा सबसे अधिक रहता है। लेकिन अस्पताल में दर्जा चार कर्मचारी ही बर्न वार्ड में जाकर पट्टी करते हैं और दवा-दारू देते हैं। ऐसे में उनको बैक्टीरिया फ्री रखना एक बड़ी चुनौती है। दर्जा चार कर्मचारियों को स्टरलाइजेशन का पूरा ज्ञान नहीं होता।

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