निगम में 10 सालों से गुम है कम्पनी बाग बी.ओ.टी. पार्किंग वाली फाइल

Edited By Sunita sarangal,Updated: 09 Dec, 2019 10:02 AM

bot parking file missing for 10 years in the corporation

निगम की नालायकी के कारण कांट्रैक्टर के हुए लाखों-करोड़ों के वारे-न्यारे

जालंधर(खुराना): इन दिनों जालंधर नगर निगम जबरदस्त आर्थिक संकट झेल रहा है। उसके पास अपने कर्मचारियों को वेतन तक देने के लिए पैसे नहीं हैं। यह अलग बात है कि निगम ने पंजाब सरकार से अपने हिस्से का करीब 60 करोड़ रुपए लेना हैं परंतु वैसे भी निगम की तंगहाली किसी से छिपी हुई नहीं है, जिसके चलते सभी प्रोजैक्ट और विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं। माना जा रहा है कि निगम के आर्थिक हालात आने वाले समय में भी नहीं सुधर सकते, क्योंकि निगम अपनी कमाई वाले साधनों की ओर पूरा ध्यान न देकर लापरवाही व नालायकी बरत जाता है, जिससे दूसरा पक्ष तो मालामाल हो जाता है परंतु निगम की जेब खाली रहती है।

ऐसा ही एक उदाहरण निगम मुख्यालय से चंद कदम की दूरी पर स्थित कम्पनी बाग की बी.ओ.टी. पार्किंग है, जिसके कांट्रैक्ट बारे किसी को पुख्ता जानकारी नहीं है, क्योंकि पिछले 10 सालों से इस महत्वपूर्ण प्रोजैक्ट की फाइल ही निगम रिकार्ड से गुम है। निगम की इस नालायकी के चलते बी.ओ.टी. पार्किंग का कांट्रैक्ट लेने वाली कम्पनी पिछले 10 सालों दौरान लाखों-करोड़ों रुपए के वारे-न्यारे कर चुकी है। यह वारे-न्यारे पार्किंग फीस के अलावा विज्ञापनों की आड़ में भी हुए परंतु निगम मामूली सी विज्ञापन फीस के लिए तरसता रहा है।

अब 29 दिसम्बर को निगम के हवाले होगी बी.ओ.टी. पार्किंग
कम्पनी बाग बी.ओ.टी. पार्किंग प्रोजैक्ट का कांट्रैक्ट 29 दिसम्बर को समाप्त होने जा रहा है, जिसके बाद निगम ने इसे टेकओवर करने की पूरी तैयारी कर ली है। टेकओवर करने के बाद इस प्रोजैक्ट में मामूली बदलाव लाकर इसे कमाई का साधन बनाने के प्रयास चल रहे हैं, जो कहां तक सफल होते हैं यह देखने वाली बात होगी।

2004 में हुआ था पहला एग्रीमैंट
कम्पनी बाग बी.ओ.टी. पार्किंग प्रोजैक्ट का पहला एग्रीमैंट 2004 में हुआ था जब चौधरी जगजीत सिंह (अब स्वर्गीय) पंजाब के लोकल बॉडीज मंत्री हुआ करते थे और सुरेन्द्र महे जालंधर के मेयर थे। तब इस बी.ओ.टी. प्रोजैक्ट को लेकर विपक्ष में बैठी अकाली-भाजपा ने खूब हंगामा किया था और इसमें घपलेबाजी के आरोप लगाए थे। इन बी.ओ.टी. प्रोजैक्टों के कारण उस समय की कांग्रेस सरकार विशेषकर चौधरी जगजीत सिंह की छवि काफी प्रभावित हुई थी।

29 दिसम्बर 2004 को पहला एग्रीमैंट करने के बाद इसी प्रोजैक्ट का दोबारा एग्रीमैंट 25 जुलाई 2007 को किया गया और दूसरे प्रोजैक्ट में विज्ञापनबाजी तथा कई ऐसी शर्तें जोड़ दी गईं जो सीधा-सीधा कम्पनी को फायदा पहुंचाने वाली थी। इसके बाद इस प्रोजैक्ट की फाइल को गुम कर दिया गया ताकि ठेकेदार को फायदा पहुंचाने की बात ज्यादा कानों तक न पहुंचे। 2008 में निगम के एक एक्सियन इंचार्ज ने अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ फाइल की गुमशुदगी और कम्पनी को फायदा पहुंचाने बाबत रिमाक्र्स लिखे परंतु उन्हें भी फाइलों में दबा दिया गया और ठेकेदार को खुल कर खेलने का अवसर प्रदान किया गया।

कई मेयर व कई कमिश्नर आए पर फाइल नहीं मिली
निगम रिकार्ड के मुताबिक इस बी.ओ.टी. पार्किंग संबंधी फाइल 2007-2008 से गुम है। इन 11 सालों दौरान निगम में कई मेयर और कई कमिश्नर आए परंतु किसी ने फाइल को ढूंढने, उसकी गायब होने की जिम्मेदारी फिक्स करने, एफ.आई.आर. करवाने या फाइल को नए सिरे से बनाने का कोई प्रयास नहीं किया, जिससे साफ लगता है कि प्रोजैक्ट का कांट्रैक्ट लेने वाली कम्पनी के तार दूर-दूर तक जुड़े हुए थे।

विज्ञापनों वाली धारा बाद में जोड़ी
कम्पनी बाग बी.ओ.टी. पार्किंग प्रोजैक्ट की यदि विजीलैंस जांच करवाई जाए तो साफ दिखाई देगा कि 2004 में कम्पनी के साथ जो पहला एग्रीमैंट हुआ उसमें कम्पनी को सिर्फ पार्किंग व अन्य चीजों का कांट्रैक्ट दिया गया था, उसमें पार्किंग के ऊपर विज्ञापन लगाने का कोई जिक्र नहीं था। अचानक 3 साल बाद उसी कम्पनी से दोबारा एग्रीमैंट किया जाता है और कम्पनी को पार्किंग साइट के ऊपर विज्ञापन लगाने के अधिकार प्रदान कर दिए जाते हैं। विज्ञापन जिस यूनीपोल पर लगने हैं उनका साइज क्या होगा इसका कांट्रैक्ट में कोई जिक्र नहीं है। यही कारण है कि आज जालंधर के कम्पनी बाग चौक में बी.ओ.टी. पार्किंग के ऊपर जो विज्ञापन लगे हुए हैं वे पंजाब के सबसे बड़े यूनीपोल कहे जा सकते हैं, जिनका महीने का किराया ही लाखों रुपए में वसूला जाता है। इस समय भी बी.ओ.टी. पार्किंग के ऊपर करीब आधा दर्जन विज्ञापन लगे हुए हैं, जो शहर ही नहीं पूरे पंजाब में सबसे बड़े साइज के कहे जा सकते हैं।

कम्पनी से एडवर्टाइजमैंट फीस तक नहीं मांग पाया निगम
निगम को पैसों की तंगी हमेशा रही है जिसके चलते निगम अक्सर गरीब दुकानदारों के चालान काटता है, वाटर-सीवर बिल के डिफाल्टरों के कनैक्शन काटे जाते हैं, प्रॉपर्टी टैक्स न देने वालों की सम्पत्तियां सील कर दी जाती हैं परंतु इस कम्पनी ने 10-12 साल तक निगम को कोई एडवर्टाइजमैंट फीस नहीं दी, इसका किसी को फिक्र नहीं है। कम्पनी के साथ हुए एग्रीमैंट और उसके बाद तय की गई शर्तों के मुताबिक कम्पनी ने निगम को विज्ञापन लगाने के बदले एडवर्टाइजमैंट फीस जमा करवानी थी परंतु किसी अधिकारी ने कम्पनी से फीस मांगने का साहस ही नहीं किया। अब होना तो यह चाहिए कि जिन निगमाधिकारियों ने निगम की लाखों रुपए की फीस वसूली नहीं की उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए, अगर वे रिटायर्ड हो गए हैं तो उनके बैनीफिट रोके जाएं परंतु ऐसा कदम निगम का कोई वर्तमान अधिकारी उठाएगा नहीं।

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