मिड-डे मील बनाने के नाम पर स्कूलों में फैलाया जा रहा प्रदूषण

Edited By swetha,Updated: 10 Dec, 2018 10:51 AM

mid day meal

बेशक इस समय पूरा विश्व पर्यावरण संतुलन बिगड़ने के कारण विश्व भर में पैदा हो रही समस्याओं पर गहन विचार कर रहा है, वहीं जिला गुरदासपुर में आज भी 90 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए मिड-डे मील बनाने के लिए गैस की बजाए लकड़ी का प्रयोग किया जा...

गुरदासपुर (विनोद): बेशक इस समय पूरा विश्व पर्यावरण संतुलन बिगड़ने के कारण विश्व भर में पैदा हो रही समस्याओं पर गहन विचार कर रहा है, वहीं जिला गुरदासपुर में आज भी 90 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए मिड-डे मील बनाने के लिए गैस की बजाए लकड़ी का प्रयोग किया जा रहा है।

शिक्षा अधिकारी व अध्यापक प्रदूषण संबंधी समय-समय पर कई तरह के कार्यक्रम आयोजित कर लोगों को प्रदूषण से बचने के लिए बातें करते हैं, परंतु यदि आज भी शिक्षा विभाग द्वारा चलाए जा रहे प्राइमरी तथा मिडल स्कूलों को दौरा किया जाए तो 80 प्रतिशत स्कूलों में बच्चों के लिए मिड-डे मील बनाने के लिए लकड़ी या गोबर के उपलों का प्रयोग किया जाता है। अधिकतर स्कूलों में खाना बनाने वाली महिलाएं स्कूल परिसर में ही चूल्हा जला कर उस पर चपातियां तथा सब्जी आदि बनाती दिखाई देती हैं। चूल्हे से उठने वाले धुएं से सारे स्कूल का वातावरण दूषित हो जाता है। शिक्षा अधिकारी भी समय-समय पर स्कूलों की चैकिंग करते रहते हैं, परंतु इस विषय पर सभी चुप्पी धारण कर जाते हैं।

क्या कहना है मिड-डे मील बनाने वाली महिलाओं का
इस संबंधी स्कूलों में खाना बनाने वाली महिलाओं ने कहा हर सरकारी स्कूल में 50 बच्चों के लिए एक महिला खाना बनाने के लिए नियुक्त की जाती है। यदि हम घरेलू गैस पर चपातियां बनाती हैं तो समय पर बच्चों के लिए खाना नहीं बन पाता। यदि चूल्हा जला कर उस पर लोह रख कर चपातियां बनाएं तो एक लोह पर एक ही समय में 6 से 8 चपातियां बन जाती हैं। इसी चूल्हे पर जल्दी ही दाल आदि भी बन जाती है। यदि स्कूल में बच्चों की संख्या 200 से 300 हो तो फिर तो और भी मुश्किल पैदा हो जाती है। इसलिए व्यावहारिक रूप में गैस पर काम करना संभव नहीं है। दूसरा घरेलू गैस सिलैंडर शहरों से लाना पड़ता है। गैस सिलैंडर लाने के लिए लगभग 100 रुपए अलग से खर्च आ जाता है। यदि गैस एजैंसी में गैस समाप्त हो तो बिना कारण चक्कर लग जाता है और रिक्शा आदि के पैसे बर्बाद हो जाते हैं। यह खर्च कहां से पूरा किया जाए इसका कोई प्रावधान नहीं है, जिस कारण गैस सिलैंडर स्कूल अध्यापक भरवाते ही नहीं हैं।

क्या कहना है अधिकारियों का

हर सरकारी स्कूल को गैस सिलैंडर व चूल्हा उपलब्ध करवाया जा चुका है। कुछ स्कूलों में हो सकता है कि गैस सिलैंडर व चूल्हा आदि न उपलब्ध हो। गैस सिलैंडर के पैसे भी सरकार से मिलते हैं। गैस सिलैंडर जला कर काम करने से प्रदूषण का प्रतिशत बहुत कम हो जाता है, परंतु स्कूलों में मिड-डे मील बनाने वाला स्टाफ अपनी मर्जी व सुविधा के लिए चूल्हा जला कर काम करता है। उन्होंने कहा कि इस संबंधी आदेश जारी कर चूल्हा न जलाने को कहा जाएगा।      -जिला शिक्षा अधिकारी।

यह ठीक है कि यह योजना अच्छी है तथा इससे बच्चों को स्कूल में खाना मिलता है, परंतु सरकार ने प्रति बच्चा 6 रुपए 10 पैसे की रकम प्रतिदिन निर्धारित कर रखी है। सरकार से केवल गेहूं व चावल मिलते हैं, जबकि बाकी का सारा सामान बाजार से इसी राशि से खरीदना पड़ता है। दूसरा गैस की तंगी के कारण गैस का हर स्कूल में प्रयोग करना कठिन है तथा गैस समाप्त होने पर गैस कहां से लाएं। उन्होंने कहा कि बहुत कम समय में बच्चों के लिए खाना तैयार करना पड़ता है जो गैस पर संभव नहीं है। दूसरा हमें किसी तरह की छुट्टी नहीं मिलती है जबकि वेतन प्रतिमाह 1700 रुपए मिलता है। यदि हमें किसी जरूरी काम से कहीं जाना हो तो अपने स्थान पर किसी अन्य महिला को छोड़ कर जाना पड़ता है। वहीं साल में हमें 10 माह का ही वेतन मिलता है। स्कूलों में छुट्टियों के पैसे हमें नहीं मिलते जबकि जिम्मेदारी हमारी बहुत अधिक है। इतने कम वेतन में सारा काम करना बहुत मुश्किल है। - प्रवीण कुमारी, मिड-डे मिल वर्कर यूनियन पंजाब व अमरजीत शास्त्री यूनियन सलाहकार।
 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!