सरकार की बेरुखी का शिकार स्वर्ण पदक विजेता सर्बजीत सिंह

Edited By Vatika,Updated: 28 May, 2018 09:41 AM

head ball player

कहते हैं जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों, पर हिम्मत किए बिन खुदा भी आप को कोई चीज नहीं दे सकता। हिम्मत का जीता-जागता सबूत है हैंडबाल खिलाड़ी सर्बजीत सिंह जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत के बलबूते 1989-90 में हुई नैशनल स्कूल खेलों में सेवामुक्त एयर...

गुरदासपुर(विनोद): कहते हैं जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों, पर हिम्मत किए बिन खुदा भी आप को कोई चीज नहीं दे सकता। हिम्मत का जीता-जागता सबूत है हैंडबाल खिलाड़ी सर्बजीत सिंह जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत के बलबूते 1989-90 में हुई नैशनल स्कूल खेलों में सेवामुक्त एयर चीफ मार्शल सरदार अर्जुन सिंह, उपराज्य पाल दिल्ली से स्वर्ण पदक हासिल किया और उसके बाद पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल ओम प्रकाश मल्होत्रा से विशेष सम्मान प्राप्त किया। 1971 में जन्मे सर्बजीत सिंह ने अपना खेल करियर 1985-86 में डी.ए.वी. हाई स्कूल गुरदासपुर से शुरू किया जहां उन्होंने मैडम रविन्द्र कौर व दविन्द्र कुमार से कोचिंग ली। उनका चयन स्पोर्ट्स विंग पठानकोट में हुआ जहां उन्होंने एन.आई.एस. कोच मनोहर सिंह गिल से कोचिंग ली और कड़ी मेहनत की और उनका चयन नैशनल स्कूल खेलों में हुआ। नैशनल कैंप के दौरान उन्होंने कोच राणा से भी कोचिंग ली और फिर नैशनल स्कूल खेलों में टीम ने प्रथम स्थान प्राप्त करके गोल्ड मैडल हासिल किया और गुरदासपुर व पंजाब का नाम रोशन किया।

अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी दुबई से पत्र लिखा
सर्बजीत सिंह ने बताया कि 6 मई 2017 को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी एक पत्र लिखा था जिसमें अपनी सारी पीड़ा का वर्णन किया, लेकिन बहुत ही दुख की बात है कि स्कूल नैशनल खेलों में स्वर्ण पदक विजेता व दुबई में तिरंगा लेकर दौडऩे वाले खिलाड़ी के पत्र का जवाब तक नहीं दिया गया। उन्होंने बताया कि वह प्रधानमंत्री से मिलने की इच्छा रखते हैं।

सरकारी नौकरी के लिए मंत्रियों के कार्यालय में लगाए चक्कर
सर्बजीत सिंह का सपना था कि वह इंटरनैशनल खिलाड़ी बने और हाथों में तिरंगा लेकर विदेशों में भारत का नाम रोशन करे, पर सरकारी नौकरी न मिलने के कारण यह सपना पूरा नहीं हुआ। सरकारी नौकरी के लिए उन्होंने उस समय के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह, खेल मंत्री महिन्द्र सिंह के.पी., शिक्षा मंत्री खुशहाल बहल से भी गुहार लगाई पर कुछ भी हासिल नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त आई.पी.एस. अधिकारी एम.एस. भुल्लर पी.ए.पी. जालंधर को भी मिला परन्तु वहां भी निराशा हाथ लगी। जगह-जगह धक्के खाने के बाद 8 अगस्त 2002 को सर्बजीत सिंह ने दुबई की तरफ रूख किया, वहां जाकर खेलों का जनून फिर शुरू हुआ और कड़कती गर्मी में फिर से अपना खेल करियर शुरू किया। करीब 8 वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद 2011 में प्रथम बार दुबई में स्टैंडर्ड चार्टर्ड दुबई मैराथन में हिस्सा लिया और 46 मिनट में 10 कि.मी. रोड रेस को पूरा किया। 2011 से लेकर 2018 तक सर्बजीत ने कई बार भारत का तिरंगा पकड़ कर 21 कि.मी., 10 कि.मी., साढ़े 7 कि.मी. की दौड़ों में भाग लिया और रेस को पूरा कर मैडल प्राप्त किया।

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