भारत-पाकिस्तान सीमा पर बने स्कूलों में प्रवासी मजदूरों ने डाला डेरा

Edited By Anjna,Updated: 03 Jul, 2018 08:35 AM

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गर्मी के मौसम की छुट्टियां समाप्त होने के बाद पंजाब सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित कार्यक्रम अनुसार सारे पंजाब में सरकारी स्कूल पुन: खुल गए। कुछ बच्चों को तो स्कूल खुलने की खुशी थी जबकि अधिकतर बच्चे स्कूल खुलने के कारण निराश भी थे।

गुरदासपुर(विनोद): गर्मी के मौसम की छुट्टियां समाप्त होने के बाद पंजाब सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित कार्यक्रम अनुसार सारे पंजाब में सरकारी स्कूल पुन: खुल गए। कुछ बच्चों को तो स्कूल खुलने की खुशी थी जबकि अधिकतर बच्चे स्कूल खुलने के कारण निराश भी थे। भारत-पाक सीमा पर स्थित अधिकतर स्कूलों में आज बच्चे नाममात्र दिखाई दिए और कुछ स्कूल आज छुट्टियां समाप्त होने के बावजूद भी बंद जैसी हालत में देखे गए।

यहां वर्णनीय है कि रावी दरिया के पार परियाल इलाके (परियाल टापू) में दजर्न भर सरकारी स्कूलों में 0 प्रतिशत बच्चों की उपस्थिति दर्ज की गई। इस संबंधी भारत-पाकिस्तान सीमा पर जीरो लाइन पर स्थित गांवों का दौरा करने पर पाया गया कि सरकारी प्राइमरी स्कूल में छुट्टियां समाप्त होने के बाद आज प्रथम दिन 5-6 बच्चे ही स्कूल में आए थे जबकि स्कूल का एकमात्र अध्यापक नहीं आया था। स्कूल के कमरों के न तो दरवाजे हैं न खिड़कियां। इस स्कूल में प्रवासी मजदूरों ने अपना डेरा जमा रखा था जो खाना आदि बना रहे थे। स्कूल के बच्चे तो स्कूल बैग लेकर आए हुए थे परंतु पढ़ाने वाला कोई नहीं था। इसी तरह कुछ स्कूलों में एक कमरे में आंगनबाड़ी सैंटर भी चलता है।

इस आंगनबाड़ी सैंटर में भी नाममात्र बच्चे आए हुए थे और सैंटर की हैल्पर भी आई हुई थी जबकि सैंटर इंचार्ज अनुपस्थित रहे। कुछ स्कूलों में उपस्थिति लगभग 90 प्रतिशत भी थी, अध्यापक भी सभी ड्यूटी पर उपस्थित थे। इसी तरह उज्ज दरिया के पार गांव खोजकी चक्क के सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल का दौरा करने पर पाया गया कि इस स्कूल में 90 प्रतिशत बच्चे व सारा स्टाफ ड्यूटी पर उपस्थित था।

दोहरी मार का शिकार होते हैं सरकारी स्कूलों के अध्यापक
एक अन्य सरकारी स्कूल की हैड टीचर ने बताया कि एक तरफ शिक्षा विभाग तथा सरकार यह दबाव डाल रहे हैं कि सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाई जाए, परंतु स्कूलों में आवश्यकतानुसार सुविधाएं देने के नाम पर सरकार कुछ नहीं कर रही है। दूसरा स्कूलों में अब बच्चों को किसी भी तरह की सजा देना भी अध्यापकों के बस की बात नहीं रही। यदि बच्चों को होमवर्क पूरा न करने सहित किसी अन्य बात पर सजा देते हैं तो शिक्षा विभाग के अधिकारी शिकायत मिलते ही बच्चों के अभिभावकों का पक्ष लेते हैं और अध्यापकों के विरुद्ध कार्रवाई करते हैं। यही कारण है कि सरकारी स्कूलों में अध्यापक हर समय दोहरी मार का शिकार होते हैं।

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