राजनीतिक रूप से कमजोर शिअद का समर्थन की बजाय नैया डुबोने की भूमिका में भाजपा!

Edited By swetha,Updated: 13 Feb, 2020 04:28 PM

bjp  shriomani akali dal

पंजाब विधानसभा चुनावों में अभी 2 वर्ष का समय शेष है परंतु सत्तापक्ष एवं विपक्ष के लिए बन रहे हालातों के मद्देनजर परिस्थितियां दिन-प्रतिदिन बदल रही हैं।

पठानकोट (शारदा): पंजाब विधानसभा चुनावों में अभी 2 वर्ष का समय शेष है परंतु सत्तापक्ष एवं विपक्ष के लिए बन रहे हालातों के मद्देनजर परिस्थितियां दिन-प्रतिदिन बदल रही हैं। भाजपा ने अपने पंजाब अध्यक्ष का चुनाव 3 सप्ताह पहले किया था और दूसरी बार अश्विनी शर्मा को अध्यक्ष पद पर नवाजा था परंतु उनके ताजपोशी समारोह में जिस प्रकार वरिष्ठ नेताओं ने कार्यकत्र्ताओं को खुश करने के लिए अन्यथा कार्यकत्र्ताओं की भावनाओं को प्रकट करने के लिए अकाली दल से अलग चुनाव लड़ने या आधे से अधिक सीटों की जो मांग रखी थी वह अकाली-भाजपा रिश्ते में एक ऐसी गांठ का रूप धारण कर गई है जिसे दांतों से भी खोल पाना दोनों तरफ के नेतृत्व के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। 

अकाली-दल जो बरगाड़ी कांड एवं बेअदबी की अन्य घटनाएं, माइनिंग माफिया और नशे से युवाओं की हो रही बर्बादी के दागों से पहले ही जूझ रहा है और धीरे-धीरे स्थितियों एवं परिस्थितियों को समझते हुए बहुत सारे दिग्गज नेता जो राजनीतिक बारीकियों के माहिर हैं, हवा का रुख देखते हुए और आने वाले समय की दूरदर्शिता को समझते हुए अकाली-दल से विदा ले रहे हैं। हर व्यक्ति अपने भविष्य की राजनीति को तराशने के लिए हाथ-पांव मार रहा है। सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा एवं उनके बेटे परमिन्द्र सिंह ढींढसा ने जिस प्रकार से अकाली-दल को अलविदा कहा है वह उनके लिए बहुत बड़ा झटका था। ऐसी परिस्थितियों में अकाली-दल को एक ही आशा थी कि सुखबीर बादल का साथ देने के लिए भाजपा आगे आएगी और डूबते को तिनके का सहारा बनकर वयोवृद्ध प्रकाश सिंह बादल के बेटे और अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल की नैया को पार लगाएगी परंतु भाजपा ने बिल्कुल उलट व्यवहार किया।

नया प्रधान बनते ही अपने कैडर को अकालियों से अलग होने के लिए उकसाया और 117 सीटों पर चुनाव लड़ने अन्यथा 60 सीटों के साथ अकाली दल से समझौता करने की बात को आगे रखा। कार्यकर्ताओं ने जोश में इस बात को हवा दी और देखते ही देखते अकाली कैडर और भाजपा कैडर में संशय के बादल छा गए और दोनों एक-दूसरे के विरोध में खड़े नजर आए। अब तो वर्करों ने एक-दूसरे के कार्यक्रमों में जाना भी छोड़ दिया है और भाजपा वर्कर खुलकर अकाली दल की बद से बदतर स्थिति का मजा लेकर बखान कर रहा है। 

जिस प्रकार से विपक्षी नेताओं ने अकाली दल को भाजपा द्वारा एक भी सीट न देने के चलते उनकी खिल्ली उड़ाई उससे अकाली दल की स्थिति अपने ही कार्यकत्र्ताओं में संदिग्ध-सी हो गई। मात्र एक मंत्री पद के लिए अकाली नेतृत्व ने भाजपा के सामने घुटने टेक दिए। इस विकट स्थिति से निकलने के लिए सुखबीर बादल व उनकी कोर कमेटी ने कई पापड़ बेले परंतु विपक्षी तीर पर तीर दागते रहे और भाजपाई भी केाई स्पष्टीकरण देने की बजाय अकाली दल का मजाक बनता देखते रहे। अब 11 फरवरी को दिल्ली के चुनावों के परिणाम आने के बाद भाजपा की स्थिति देखने को बनती है। जो भाजपा अकाली-दल को 4 सीटें न देने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे थे उसकी खुद की स्थिति मात्र 8 सीटों पर ही सिमट कर रह गई है। कहीं अच्छा होता कि अकाली दल को 4 सीटें राजौरी गार्डन, हरिनगर, छहादरा और कालका जी दे दी जातीं तो गठबंधन की स्थिति आज अच्छी होती। 

‘आप’ का दिल्ली में जीतना गठबंधन और कांग्रेस के लिए चिंतन का विषय
दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की अप्रत्याशित जीत अकाली-भाजपा के लिए चिंता का विषय तो है ही क्योंकि ‘आप’ इन दोनों पार्टियों की पिछली बार नैया डुबोने में मुख्य भूमिका निभाई थी परंतु खुद सत्ता में नहीं आ पाई और कांग्रेस बाजी मार गई। तीन वर्ष के बाद कांग्रेस की इस सरकार की कारगुजारी पंजाब की जनता ध्यानपूर्वक देख रही है अब आम आदमी पार्टी का दल-बल के साथ दिल्ली में तीसरी बार सत्ता में आना पंजाब में एक ङ्क्षचतकों के लिए विश्लेषण का विषय बन गया है।

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!