Edited By Vatika,Updated: 27 Jun, 2019 02:56 PM
एक तरफ राज्य सरकार की ओर से पठानकोट को लीची जोन घोषित करने के बाद भी लीची कारोबारियों को नाममात्र सुविधाएं दी जा रही हैं, वहीं कुछ लोगों की ओर से इस सीजन में लीची को जानलेवा बीमारी ‘चमकी’ के साथ जोड़ कर देश भर में लीची कारोबारियों की कमर तोड़ कर रख...
पठानकोट(आदित्य): एक तरफ राज्य सरकार की ओर से पठानकोट को लीची जोन घोषित करने के बाद भी लीची कारोबारियों को नाममात्र सुविधाएं दी जा रही हैं, वहीं कुछ लोगों की ओर से इस सीजन में लीची को जानलेवा बीमारी ‘चमकी’ के साथ जोड़ कर देश भर में लीची कारोबारियों की कमर तोड़ कर रख दी है।
हालात यह हैं कि देश भर में लीची कारोबार से जूड़े लाखों व्यापारियों का लाखों टन माल ग्राहक न होने के चलते पेड़ों पर सड़ रहा है। यहां तक की व्यापारी डिब्बों में बंद लीची के लिए ग्राहक की बाट जोह रहे हैं। अब तो आलम यह हो गया है कि उक्त अफबाह के चलते बाजारों में रेहडिय़ां लीची से लदी पड़ी हैं लेकिन ग्राहक 25 रुपए किलो में भी खरीदने को तैयार नहीं है। सिविल अस्पताल पठानकोट के एस.एम.ओ. डा. भूपिंद्र सिंह ने कहा कि जिला पठानकोट में अभी एक भी चमकी बुखार से पीड़ित मरीज नहीं आया है, तथा न ही स्वास्थ्य विभाग की ओर से उन्हें कोई पत्र जारी हुआ है।
आखिर क्या है चमकी बुखार
कुछ दिन पहले बिहार के मुज्जफरपुर में चमकी बुखार ने बच्चों पर अपना कहर दिखाना शुरू किया। बीते दिनों 100 से अधिक बच्चे इस बुखार की चपेट में आकर मौत के ग्रास बने हैं। डाक्टरों के अनुसार चमकी बुखार एक तरह की संक्रामक बीमारी है। इसका वायरस शरीर में पंहुचते ही खून में शामिल हो कर अपना असर दिखाना शुरू कर देता है, तथा व्यक्ति के मस्तिष्क में पंहुच कर कोशिकाओं में सूजन पैदा कर देता है।
राष्ट्रीय लीची अनुसंंधान केंद्र ने जारी की रिपोर्ट
हर कोई इस बीमारी के लिए लीची को ही दोषी ठहरा रहा है, जबकि राष्ट्रीय लीची अनुसंंधान केंद्र (आई.सी.ए.आर) के डायरैक्टर विशाल नाथ ने पत्र जारी कर इस बात को पूरी तरह से नकारते हुए कहा है कि चमकी बीमारी का लीची के खाने से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि लीची खाने से इस तरह की कोई बीमारी नहीं हो रही है। उन्होंने यह पत्र देश के प्रत्येक लीची उत्पादकों व जमींदारों को भेज कर इसकी बात को स्पष्ट किया है।
आम व्यापारियों ने फैलाई अफवाह
लीची उत्पादक सुखदेव वडैहरा व कार्तिक वडैहरा ने कहा कि लीची उत्पादन 200 वर्ष पहले चाइना से भारत में आया था, लेकिन आज तक कभी भी लीची से इस तरह की बीमारी पैदा नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरपुर से आम व्यापारियों की ओर से आम का मुल्य बढ़ाने के चलते लीची को चमकी बीमारी के साथ जोड़ कर अफवाह का बाजार गर्म करवाया है। उन्होंने कहा कि उनकी 55 एकड़ जमीन में लीची की खेती है, लेकिन उक्त झूठी अफवाह के चलते व्यापारी माल नहीं उठा रहा है। जिसके चलते उनका 80 प्रतिशत माल या तो खराब हो रहा है या डम्प हो गया है।
लीची की पठानकोट में होती है सबसे अधिक पैदावार
लीची काश्तकार दलवीर राणा व विक्रम सिंह, बी.डी. शर्मा ने संयुक्त रूप से कहा कि एक तरफ लीची को लेकर अफबाहों का बाजार गर्म है, जिसका कोई आधार नहीं है। वहीं पठानकोट लीची जोन सिर्फ कागजों तक ही सीमित है, क्योंकि सरकार की ओर से लीची काश्तकारों हेतु जो सुविधाएं देने का वायदा किया जाता है, वह उन तक पहुंचता ही नहीं है, जिसके चलते उन्हें पहले की भांति समस्याओं से हर वर्ष दो-चार होना पड़ता है। उन्होंने बताया कि जिला पठानकोट एक ऐसा शहर है, जहां लीची की सबसे अधिक पैदावार होती है और लीची के पूरी तरह से तैयार हो जाने पर भारी मात्रा में विभिन्न रा’यों के साथ-साथ विदेशों में सप्लाई होती है।