Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Mar, 2018 11:31 AM
भले ही देश को आजाद हुए 7 दशक बीत गए हैं परन्तु आजादी मिलने के बाद भी इतना लंबा समय बीत जाने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों के लोग स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं जबकि समय की सरकारें हमेशा ही यह दावे करती नहीं थकती कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को बढिय़ा...
श्री मुक्तसर साहिब (तनेजा): भले ही देश को आजाद हुए 7 दशक बीत गए हैं परन्तु आजादी मिलने के बाद भी इतना लंबा समय बीत जाने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों के लोग स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं जबकि समय की सरकारें हमेशा ही यह दावे करती नहीं थकती कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को बढिय़ा और सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं। परन्तु असली तस्वीर कुछ ओर ही है। इसकी मिसाल पंजाब की राजनीति में गहरा प्रभाव रखने वाले मालवा के चॢचत जिले श्री मुक्तसर साहिब में देखने को मिलती है। जिले में अभी भी कई ऐसे गांव हैं जहां सरकारी अस्पताल या डिस्पैंसरी नहीं हैं। इसी तरह जिले के दर्जनों गांव ऐसे हैं जहां पशु अस्पताल नहीं हैं।
कहां-कहां हैं बड़े अस्पताल
सिविल सर्जन डा. सुखपाल सिंह बराड़ ने बताया की श्री मुक्तसर साहिब में जिला अस्पताल और मलोट, गिद्दड़बाहा और बादल में सब-डिवीजनल अस्पताल चल रहे हैं जबकि चक्क शेरेवाला लम्बी, दोदा और आलमवाला में मैडीकल ब्लॉक हैं। कम्युनिटी हैल्थ सैंटर चक्क शेरेवाला, लम्बी, सरावा बोदला, दोदा और बरीवाला में हैं और प्राथमिक हैल्थ सैंटर कान्यांवाली, थांदेवाला, भाई का केरा, सिंघेवाला, आलमवाला, पन्नीवाला, गुरुसर मधीर आदि में चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा प्राथमिक हैल्थ सैंटर बल्लमगढ़, गुलाबेवाला, कोटभाई, रहुडियांवाली, माहूआना, कबरवाला, राम नगर, विर्क खेड़ा, कन्दूखेड़ा में चल रहे हैं।
जिले के 138 गांव हैं पशु अस्पतालों से वंचित
भले ही समय की सरकारें पशु पालकों और लोगों को डेयरी के धंधे के लिए प्रोत्साहन देती हैं परन्तु जिन लोगों ने पशु रखे हुए हैं उनकी तरफ कम ही ध्यान दे रही हैं। क्योंकि पशु पालकों को ग्रामीण क्षेत्रों में अपने पशुओं का इलाज करवाने के लिए अनेक गांवों में सुविधाएं नहीं मिल रहीं। जिस कारण कई बार समय से इलाज न मिलने के कारण पशुओं की मौत हो जाती है और पशु पालकों का हजारों रुपए का नुक्सान हो जाता है परन्तु उक्त 241 गांवों में से सिर्फ 103 गांवों में ही सरकारी पशु अस्पताल और पशु डिस्पैंसरियां हैं जबकि 138 ऐसे गांव हैं, जहां कोई सरकारी पशु अस्पताल और न ही कोई सरकारी पशु डिस्पैंसरी है। ऐसे गांवों के लोगों जिन्होंने अपने घरों में पशु रखे हुए हैं बेहद परेशान हैं, क्योंकि जब भी उनका कोई पशु बीमार होता है तो उनको बाहर से डाक्टर बुलाना पड़ता है और कई बार समय पर डाक्टर नहीं मिलता।
जिले में हैं 3 लाख20 हजार 940 पशु
जिले में इस समय पर 3 लाख 20 हजार 940 पशु हैं। इनमें से 1 लाख 57 हजार 105 भैंसें हैं जबकि 1 लाख 12 हजार 199 गऊएं हैं। इसके अलावा घोड़े, गधे और खच्चरों की संख्या 3505 है। भेडें़, बकरियों और पालतू कुत्तों की संख्या इससे अलग है। पशु पालन विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार जिले के 42 गांवों में सिविल पशु अस्पताल चलाए जा रहे हैं और इन अस्पतालों में वैटर्नरी अफसर पशुओं का इलाज करते हैं जबकि जिले के 60 गांवों में सरकारी पशु डिस्पैंसरियों हैं और इन डिस्पैंसरियों में वैटर्नरी इंस्पैक्टर पशुओं का इलाज करते हैं।
वैटर्नरी अफसरों के पद हैं खाली
सिविल पशु अस्पतालों में 16 वैटर्नरी अफसरों के पद खाली हैं। कुल 44 पद हैं और इनमें से 18 ही भरे हैं जबकि पशु डिस्पैंसरियों में 6 वैटर्नरी इंस्पैक्टरों के पद खाली हैं। वैटर्नरी इंस्पैक्टरों के 66 में से 60 पद भरे हैं। क्लास फोर के 71 पदों में से 54 भरे हैं और 17 खाली हैं। पशु पालन विभाग का कहना है कि जिन गांवों में पशु अस्पताल या पशु डिस्पैंसरियां नहीं हैं, उन गांवों को पास के पशु अस्पतालों से जोड़ा गया है और हर गांव में समय से पशुओं को गलघोंटू की बीमारी से बचाने के लिए वैक्सीन मुहैया करवाई जा रही है।