सरकारी अस्पताल में डाक्टर न होने से नहीं बन रहे दिव्यांगता सर्टीफिकेट

Edited By bharti,Updated: 18 Nov, 2018 12:11 PM

divyangati certificate not being made by a doctor in government hospital

दिव्यांग व्यक्तियों के लिए समाज व समय के साथ चलना बड़ा कठिन और जोखिम भरा काम है। बहुत मेहनत ...

मुक्तसर साहिब (तनेजा): दिव्यांग व्यक्तियों के लिए समाज व समय के साथ चलना बड़ा कठिन और जोखिम भरा काम है। बहुत मेहनत व हिम्मत करनी पड़ती है क्योंकि समय की सरकारों के पास वैसे भी टाइम नहीं है। सभी वर्गों से संबंधित जागरूक और प्रगतिशील विचारों वाले व्यक्तियों का फर्ज बनता है कि समाज से पीछे रह रहे ऐसे लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए सरकारों पर दबाव डाला जाए ताकि वे भी अच्छी जिंदगी जी सकें। जानकारी के अनुसार जिला श्री मुक्तसर साहिब में 8 हजार से अधिक व्यक्ति दिव्यांग हैं, जबकि सरकारी आंकड़ों में यह संख्या 5132 दिखाई गई है। दिव्यांग पुरुषों व महिलाओं की संख्या बराबर ही बताई जा रही है, जबकि 2 हजार से अधिक बच्चे भी दिव्यांग हैं।

पैंशन की रकम 750 से बढ़ाकर 2500 रुपए की जाए
फिजीकली हैंडीकैप्ड वैल्फेयर एसोसिएशन जिला श्री मुक्तसर साहिब के जिला प्रधान कुलवीर सिंह गुरुसर ने सरकार से मांग की कि सरकार योग्यता अनुसार दिव्यांग व्यक्तियों को नौकरियां दे। उन्होंने कहा कि दिव्यांगों की 920 असामियां बैकलाग में पड़ी हैं और सरकार उनका इश्तिहार नहीं निकाल रही है। उन्होंने मांग की कि इश्तिहार निकालकर यह असामियां तुरंत भरी जाएं। पैंशन की रकम 750 से बढ़ाकर 2500 रुपए की जाए। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं में पहल के आधार पर सुनवाई की जाए। जितने दिव्यांग लोग बेरोजगार हैं, उनको स्वरोजगार चलाने के लिए बिना वापसी कर्ज दिया जाए।

डाक्टर ड्यूटियों पर उपस्थित हों
 मुक्तसर साहिब में स्थित जिला स्तरीय सरकारी अस्पताल में डाक्टरों की कमी कारण दिव्यांग व्यक्तियों के सर्टीफिकेट बनाने में भारी दिक्कत और परेशानी आ रही है। यदि सभी डाक्टर उक्त अस्पताल में ड्यूटियों पर उपस्थित हों तो दिव्यांगों को सर्टीफिकेट बनाने में मुश्किलें न आएगी। कुछ लोग तो जन्मजात ही दिव्यांग, गूंगे-बहरे, मंदबुद्धि हैं, जबकि कइयों को जन्म के बाद पोलियो आदि अन्य बीमारियों की मार पड़ गई परन्तु कई व्यक्ति सड़क हादसों या और घटनाओं में अपने अंग गंवा बैठे हैं। बहुत त्रासदी है कि कई घरों में पति-पत्नी दोनों ही दिव्यांग हैं, परन्तु फिर भी वे तंगी के साथ अपने घरों का गुजारा कर रहे हैं और बच्चों को पढ़ा रहे हैं।

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