Edited By Vaneet,Updated: 14 Jan, 2019 12:19 PM
वन नीति 1988 के अनुसार किसी देश की धरती के पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए उस देश के कुल क्षेत्रफल के मुकाबले 33 प्रतिशत हिस्से में जंगलों का होना जरूरी है, परंतु दूसरी तरफ वन विभाग की साल 2001 की रिपोर्ट पर नजर डालें तो अन्य देशों के मुकाबले...
फरीदकोट(राजन): वन नीति 1988 के अनुसार किसी देश की धरती के पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए उस देश के कुल क्षेत्रफल के मुकाबले 33 प्रतिशत हिस्से में जंगलों का होना जरूरी है, परंतु दूसरी तरफ वन विभाग की साल 2001 की रिपोर्ट पर नजर डालें तो अन्य देशों के मुकाबले हमारे देश में इसके कुल क्षेत्रफल के मुकाबले जंगलों का अस्तित्व केवल 20 प्रतिशत हिस्से तक ही सीमित होकर रह गया है।
इसकी पुष्टि भारतीय वन विभाग की इस रिपोर्ट से भी हो जाती है कि हमारे देश में जंगलों की होंद केवल 7,01,673 वर्ग किलोमीटर तक ही सीमित है जो देश के कुल भूगौलिक क्षेत्र का केवल 21.34 प्रतिशत है। अब यदि साल 2017 की वन विभाग की रिपोर्ट की तरफ देखें तो और भी निराशाजनक नतीजों के अनुसार हमारे देश में जंगलों की होंद में गत सालों में केवल एक प्रतिशत ही विस्तार हुआ है, जो दिन-प्रतिदिन बढ़ रही जनसंख्या के मुकाबले बिल्कुल नाममात्र है। अब यदि उन इलाकों का जिक्र करें जो पर्यावरण की संभाल के लिए जंगलों को प्राथमिकता दे रहे हैं तो इनमें लक्षदीप, मिजोरम, अंडेमान और निकोबार दीप समूह पहले नंबर पर आते हैं जहां धरती के कुल क्षेत्रफल के मुकाबले जंगल 800 प्रतिशत हैं। इसके मुकाबले गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि ऐसे राज्य भी हैं जो जंगलों से बिल्कुल खाली हैं।
ज्यादातर मामलों में नहीं हुई सख्त सजाएं
यह भी तथ्य सामने आए हैं कि हमारे देश में जंगलों को बचाने के लिए न तो देश की राज्य सरकारें और न ही विभागों की तरफ से कोई योग्य प्रयास किए जा रहे हैं। बेशक हमारे देश में 1994 में प्रीवैंशन ऑफ ट्रीज एक्ट 1994 लागू किया गया जिसके अंतर्गत पेड़ों को काटना जुर्म माना गया है। आंकड़ों की पर नजर डालें तो हमारे देश में 30719 आपराधिक मामले पेड़ काटने के दर्ज किए गए परंतु जहां तक इन मामलों में सजा का सवाल है रिपोर्ट के अनुसार अभी भी 85.02 प्रतिशत मामले लंबित पड़े हैं। हमारे देश के कानून का यह भी दुखद पहलू है कि पर्यावरण सुरक्षा के अंतर्गत जो सजा का सही नियम है उसके बदले बहुत से मामलों में 6 महीने की सजा और 5000 रुपए तक जुर्माना हुआ है। यही कारण है कि हमारे देश के कमजोर कानून ने वनों की अवैध ढंग से कटाई करने वालों के हौसले बुलंद कर दिए हैं और वह कानून को ठेंगे पर जानने लगे हैं। प्रीवैंशन ऑफ ट्रीज एक्ट के अनुसार यदि वृक्षों की अवैध ढंग से कटाई साबित हो जाती है तो इसलिए जिम्मेदार को 7 साल की कैद और जुर्माना दोनों ही हो सकते हैं। उक्त के अनुसार स्थिति कुछ और ही रूप धारण करती जा रही है।
धरती के तापमान में हो रही लगातार बढ़ौतरी
यह भी बता दें कि माहिरों ने भी धरती के बढ़ रहे तापमान, ओजोन के ब्लैक होल, वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण के लिए जंगलों की कटाई को ही जिम्मेदार ठहराया है। अब यदि इनकी संभाल के लिए किए जाने वाले प्रयासों का जिक्र करें तो सुरक्षा वल्र्ड अर्थ-डे को मनाने की शुरूआत 1970 में की गई और इसके बाद 192 देशों ने इस दिन को मनाने के लिए सहमति प्रकट करते सुरक्षा वल्र्ड-डे मनाने का फैसला लिया। बेशक बहु संख्या देशों में सुरक्षा वल्र्ड-डे मनाया जाता है, परंतु यह बड़े हैरानीजनक आंकड़े हैं कि दुनिया की धरती के कुल क्षेत्रफल के मुकाबले 1,30,000 हैक्टेयर जंगल अभी भी हर साल काटे जाने का सिलसिला निरंतर जारी है। यूनाइटेड नेशंज फूड एंड एग्रीकल्चरल आर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 18 मिलियन एकड़ जंगल हर साल काटे जाते हैं। अब यदि पिछले कुछ सालों की बात करें तो आर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट अनुसार साल 2000 से 2012 के दरमियान 2.3 मिलियन वर्ग किलोमीटर जंगल काटे गए, साल 2014 में 5012 वर्ग किलोमीटर, साल 2015 में 6207, साल 2016 में 7982 वर्ग किलोमीटर जंगलों की कटाई दर्ज की गई।
यह सिलसिला अब भी जारी होने की सूरत में साफ जाहिर हो जाता है कि हमारी धरती के पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए अति सहायक जंगल कैसे हर साल कटाई की भेंट चढ़ रहे हैं। यहां यह भी बता दें कि एफ.ए.ओ. (असिस्मैंट ऑफ डीफोरिस्टेशन) की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 1980 से 1995 तक दुनिया में 200 मिलियन हैक्टेयर जंगल अपना अस्तित्व खो चुके हैं, जबकि मौजूदा स्थिति इससे भी बदतर है। यही कारण है कि पिछले 100 सालों में धरती के तापमान में 00.03 डिग्री सैल्सियस से 00.06 डिग्री सैल्सियस तक विस्तार दर्ज किया गया है और यह विस्तार प्रदूषित पर्यावरण के कारण हर साल बढ़ता ही जा रहा है जिससे सॢदयों के मुकाबले गर्मियों का मौसम अधिक लंबा होता जा रहा है।
पर्यावरण की संभाल के लिए कैसे दें सहयोग
माहिरों के अनुसार आने वाले समय में यदि हर देश निवासी ने धरती के संतुलन को बचाने के लिए अपना थोड़ा-सा योगदान न डाला तो इसके निकट भविष्य में ही बुरे नतीजे भुगतने पड़ेंगे, जबकि इससे कहीं अधिक हमारी आने वाली पीढ़ी को हमारी लापरवाहियों का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। याद रहे कि यदि हर देशवासी जंगलों की होंद बचाने के लिए लकड़ी का कम उपयोग, कागज का सही प्रयोग, पेड़ के बदले पेड़, घरों के आसपास हरियाली में विस्तार और कानून की पालना करने का संकल्प कर ले तो हम अपनी धरती के संतुलन को संभालने के लिए निश्चय ही सहायक साबित हो सकते हैं।