Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Oct, 2017 12:35 AM
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव मध्य नवम्बर तक संभावित हैं। इस महीने के पूर्वाद्र्ध में तारीखों का ऐलान और आचार संहिता लागू होना...
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव मध्य नवम्बर तक संभावित हैं। इस महीने के पूर्वाद्र्ध में तारीखों का ऐलान और आचार संहिता लागू होना तय है। औपचारिक रूप से चुनावी गहमागहमी भी चरम पर है और इस महीने की 3 तारीख को बिलासपुर में भाजपा की विशाल रैली, जिसमें प्रधानमंत्री स्वयं पधार कर हिमाचल को नायाब तोहफे एम्स और ट्रिपल आई.टी. के शिलान्यास के रूप में देंगे।
भाजपा की हाल ही में सम्पन्न राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रैली तथा प्रधानमंत्री की बिलासपुर रैली के जवाब में कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मंडी रैली की सफलता के लिए कांग्रेस ने भी लंगर-लंगोटे कस लिए हैं। उधर प्रदेश में मिशन रिपीट के लिए कृतसंकल्प कांग्रेस में टिकट आबंटन की प्रक्रिया शुरू हो गई है और कांग्रेस की उच्चकमान द्वारा प्रदेश के बुजुर्ग नेता 6 बार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को खुला हाथ देकर कांग्रेस का चेहरा मान चुनाव में उतारा जा चुका है।
कांग्रेस ने अब स्वीकार कर लिया है कि प्रदेश में वीरभद्र सिंह का कोई विकल्प नहीं है और उनके नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में आने के लिए आश्वस्त है। हमेशा की तरह प्रदेश में अब की बार भी दोनों प्रमुख राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के मध्य ही कांटे की टक्कर होगी। भाजपा पिछले कई महीनों से जोरदार प्रचार अभियान चलाने में कांग्रेस से बहुत आगे है, लेकिन टिकटों के वितरण उपरांत पार्टी के भीतर उभरने वाले हालात तथा चुनावों में दरपेश मुद्दों से आम लोग किसके साथ खड़े रहते हैं, अतिमहत्वपूर्ण है।
एक पहलू यह भी है कि कांग्रेस प्रदेश में सत्ता में है और भाजपा का केन्द्र में सत्ताधारी गठजोड़ है। दोनों को चुनावी मुद्दे पटखनी दे सकते हैं। चुनावों में सबसे संवेदनशील विषय युवा सरोकार है। इस बार के चुनाव में प्रदेश में मतदान करने वालों में 29.5 प्रतिशत युवा मतदाता हैं। इनमें 40,567 युवा पहली बार अपने वोट का इस्तेमाल करेंगे। अढ़ाई लाख युवाओं की आयु 18-19 साल की है, जबकि 20 से 29 साल तक आयु वर्ग के युवा मतदाताओं की संख्या 12.3 लाख है। इन सबके लिए सबसे बड़ा सरोकार रोजगार है।
प्रदेश सरकार व केन्द्र सरकार ने कौशल विकास भत्ता सहित बेरोजगारी भत्ता और अन्य योजनाओं से युवाओं हेतु रोजगार सृजन के कई प्रयास किए भी हैं, पर आज भी इस पहाड़ी प्रदेश में नौजवान बेरोजगारों की संख्या 9 लाख है। प्रदेश में सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों, ‘न्यू इंडिया’ तथा हाल ही में विशेष औद्योगिक पैकेज से भी रोजगार के हालात नहीं सुधरे हैं। दोनों ही दल कटघरे में हैं और दोनों को बेरोजगार युवाओं को जवाब देना होगा। प्रदेश में नोटबंदी तथा जी.एस.टी. के इश्यू पर भी राज्यव्यापी आक्रोश को भाजपा नजरअंदाज नहीं कर सकती। कांग्रेस इसका पूरा-पूरा दोहन करने में सक्रिय है।
प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या भी 49 प्रतिशत है और महिला सुरक्षा तथा सशक्तिकरण में विफल राज्य सरकार को महिला शक्ति बख्शेगी नहीं। कानून व्यवस्था, सड़कों, पुलों के चरमराए ढांचे, प्रदेश को भारी कर्जों में डुबोकर सत्ता के आखिरी साल में लोकलुभावन घोषणाएं, केन्द्र व राज्य सरकार के परस्पर संबंध तथा समग्र विकास में फंड्स को लेकर खींचातानी जैसे कई और मुद्दे भी पार्टियों के चुनावी गणित को पलट सकते हैं। स्वच्छता ही सेवा है-चोटिल हुआ मुद्दा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में ‘स्वच्छता ही सेवा है’, के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ध्येय-आह्वान को धत्ता बताते हुए प्रदेश विश्वविद्यालय के तीनों बड़े होस्टलों में साफ-सफाई की दयनीय हालत, चरमराई व्यवस्था और गंदगी के आलम की शिकायत मिलते ही विश्वविद्यालय के अधिकुलपति एवं प्रदेश के यशस्वी राज्यपाल आचार्य देवव्रत औचक निरीक्षण हेतु पहुंचे और वहां के सारे परिदृश्य को स्वयं देखकर हत्प्रभ रह गए।
विश्वविद्यालय के कुलपति, तमाम जिम्मेदार अधिकारियों और संबंधित स्टाफ को तलब कर महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने डा. वाई.एस. परमार छात्रावास, टैगोर होस्टल तथा भगत सिंह होस्टल के हर फ्लोर पर कमरों, भोजनालय तथा शौचालयों तक के रखरखाव की चरमराई हालत का मुआयना किया। शर्मसार करने वाली स्वच्छता की बदहाली, गंदी जर्जर दीवारें, नल और बिजली की तारों की चरमराई स्थितियों से आहत राज्यपाल ने इसके लिए जिम्मेदार तमाम अफसरों को खूब डांटा और इन सबके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को निलम्बित कर आगामी 6 अक्तूबर तक व्यवस्था में सुधार करने के आदेश दिए हैं।
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में महामहिम राज्यपाल के गरिमामय पद की शपथ लेने के बाद आचार्य देवव्रत ने राजनीतिक विवादों से इतर रहते हुए अपनी आध्यात्मिक, सामाजिक पृष्ठभूमि का प्रमाण देते हुए प्रदेश में अपने 5 सूत्रीय एजैंडा में सहयोग मांगा था। इसमें सर्वोच्च प्राथमिकता वाला संपूर्ण स्वच्छता और पर्यावरण का मुद्दा था। उन्होंने इसके साथ पौधारोपण, वातावरण संतुलन, गौपालन को आर्थिकी के साथ जोड़कर विकास, जीरो बजट पर आधारित जैविक खेती व बागबानी, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान, कन्या भू्रण हत्या पर अंकुश तथा बेटियों के स्वास्थ्य, शिक्षा व सुरक्षा के लिए भी चिंता शामिल थी।
शिमला में सरकार और प्रशासन की नाक तले यदि संपूर्ण स्वच्छता जैसे सर्वोच्च विषय की स्थिति इस कदर शर्मनाक और दयनीय है तो समूचे प्रदेश में इसकी वास्तविकता क्या होगी? क्या प्रदेश सरकार, उच्चाधिकारी और जनप्रतिनिधि सारे प्रदेश में संपूर्ण स्वच्छता को सुनिश्चित करने के लिए महामहिम राज्यपाल जैसी पीड़ा संजोए मौके पर औचक निरीक्षण जैसी कवायद के लिए उनका अनुसरण करने और हालत सुधारने की जहमत फरमाएंगे?