Edited By Updated: 19 Apr, 2017 11:36 PM
कनाडा के रक्षा मंत्री के प्रतिष्ठित पद पर सुशोभित होने के बाद पहली बार भारत की या...
कनाडा के रक्षा मंत्री के प्रतिष्ठित पद पर सुशोभित होने के बाद पहली बार भारत की यात्रा पर आए हरजीत सिंह सज्जन खूब चर्चाओं में हैं। पंजाब में पैदा हुए वह प्रथम सिख हैं जो किसी अन्य देश के रक्षा मंत्री बने हैं और सामान्यत: अपने पूर्वजों की जन्मभूमि में उनका भव्य स्वागत होना ही चाहिए था। एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि कनाडा की सरकार में 4 सिख मंत्री हैं जबकि उनकी जन्मभूमि भारत की मोदी सरकार में भी इतने सिखों को प्रतिनिधित्व नहीं मिला हुआ है। कुल मिलाकर कनाडा की संसद में भारतीय मूल के 19 सांसद हैं।
फिर भी पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह द्वारा भारत यात्रा पर आए इन महानुभाव से न मिलने का फैसला लेने से बहुत बड़ा विवाद भड़क उठा है। मुख्यमंत्री ने यह स्टैंड लिया है कि केवल हरजीत सिंह सज्जन ही नहीं बल्कि उनके पिता भी खालिस्तान के समर्थक और हमदर्द थे। दौरे पर आए हुए कनाडाई रक्षा मंत्री ने मुख्यमंत्री द्वारा लगाए गए इन आरोपों का सीधा उत्तर देने से इन्कार कर दिया लेकिन इतना अवश्य कहा कि यहां देश को तोडऩे नहीं आए हैं।
कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के आरोपों ने प्रतिक्रियाओं की एक शृंखला को जन्म दिया। कांग्रेस नेता अपने मुख्यमंत्री के समर्थन में आ गए हैं और उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया है कि दौरे पर आए हुए मेहमान ने खालिस्तान के प्रति अपनी हमदर्दी से अभी तक दो टूक शब्दों में इन्कार नहीं किया है। दूसरी ओर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और दल खालसा जैसे छिटपुट चरमपंथी गुटों ने मुख्यमंत्री द्वारा लिए गए स्टैंड की जोरदार आलोचना की है। शिरोमणि कमेटी ने तो कनाडाई रक्षा मंत्री को सम्मानित करने का भी फैसला लिया है।
सज्जन के दौरे के संबंध में केन्द्र सरकार भी दुविधा में दिखाई दे रही थी। प्रारम्भ में इसने भारत यात्रा पर आने वाले समस्त उच्च विदेशी प्रतिनिधियों की तरह उन्हें भी ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ देने का फैसला लिया था, बाद में इसका इरादा बदल गया लेकिन अंततोगत्वा उन्हें यह सम्मान दे दिया गया। फिर भी भारतीय रक्षा मंत्री अरुण जेतली ने कनाडा के ओंटारियो प्रांत की संसद द्वारा हाल ही में 1984 के सिख विरोधी दंगों को ‘नर संहार’ करार दिए जाने पर अपनी सरकार की अप्रसन्नता व्यक्त की है।
यह प्राइवेट प्रस्ताव टोरंटो के समीपवर्ती ब्रैम्पटन-स्प्रिंगडेल क्षेत्र से प्रादेशिक संसद के सदस्य हरिन्द्र मल्ही द्वारा प्रस्तुत किया गया था और यह प्रस्ताव 34 वोटों से पारित हो गया था जबकि इसके विरोध में केवल 5 वोट पड़े थे। प्रादेशिक संसद में कुल 107 सदस्य हैं। सूत्रों का कहना है कि सज्जन ने खुद को और कनाडा सरकार को इस फैसले से इस आधार पर अलग कर दिया था कि इसका प्रस्ताव प्राइवेट हैसियत में प्रस्तुत किया गया था। फिर भी भारतीय सरकार ने यह तथ्य रेखांकित किया है कि इस प्रस्ताव में प्रयुक्त की गई शब्दाबली का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं और यह बहुत बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत की गई है।
कनाडाई रक्षा मंत्री से मुलाकात न करने के कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के स्टैंड के पीछे कारण तो कई होंगे लेकिन इनमें से एक तो यह है कि पंजाब में जब चुनाव होने वाले थे तो उन दिनों कैप्टन को अपनी कनाडा यात्रा रद्द करनी पड़ी थी। वह कनाडा के एन.आर.आइज को समर्थन में लाना चाहते थे लेकिन वहां की सरकार ने उन्हें बताया कि उनके देश का कानून विदेशी नेताओं को चुनाव प्रचार करने की अनुमति नहीं देता। मुख्यमंत्री का खालिस्तान और उसके समर्थकों के विरुद्ध स्टैंड बेशक प्रशंसनीय है, सज्जन के विरुद्ध कोई साक्ष्य न होने अथवा तात्कालिक रूप में उनके या उनकी सरकार के विरुद्ध कोई भड़काऊ कारण न होने की स्थिति में शिष्टाचार नाते भी उनसे मुलाकात न करने का उनका फैसला न्यायोचित नहीं।
दुर्भाग्य की बात है कि जाने-अनजाने कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने सज्जन से मिलने से इन्कार करके गड़े मुर्दे उखाड़ दिए हैं। भारत में सज्जन अपने देश के प्रतिनिधित्व के रूप में आए हैं और उन्होंने कभी भी खालिस्तान के समर्थन में बयानबाजी नहीं की। इस बात में कोई संदेह नहीं कि एन.आर.आइज का एक बहुत ही छोटा-सा वर्ग अभी भी खालिस्तानी महत्वाकांक्षाएं पाले हुए है लेकिन समूचे तौर पर टोरंटो के पंजाबी और भारतीय मूल के नागरिकों में इस मांग का कोई आधार नहीं। मुख्यमंत्री के स्टैंड ने अकारण ही एक भूले-बिसरे मुद्दे को फिर से फोकस में ला दिया है।
कनाडाई मंत्री से मुलाकात करने से इन्कार करके पंजाब के मुख्यमंत्री ने एन.आर.आइज समुदाय से दोबारा सम्पर्क जोडऩे का मौका खो दिया है। फिर भी यह सज्जन की उदारता ही है कि पंजाब सरकार के निष्ठुर रवैये के बावजूद इसे हर प्रकार का समर्थन और सहयोग प्रस्तुत किया है।