सड़कों पर वाहनों को बेलगाम दौड़ा रहे नाबालिग बच्चे

Edited By Vatika,Updated: 22 Apr, 2018 02:32 PM

vehicles on road

जिला ट्रैफिक पुलिस बेशक पूरा दिन सड़कों पर उतरकर लोगों को ट्रैफिक नियमों का पाठ पढ़ाने में व्यस्त रहती है लेकिन उसे महानगर में वाहन चला रहे सैंकड़ों नाबालिग नजर नहीं आते। इन बच्चों के हाथों में ही असल में हादसों की चाबी पकड़ा दी गई है। 10-12 साल के...

बठिंडा (परमिंद्र): जिला ट्रैफिक पुलिस बेशक पूरा दिन सड़कों पर उतरकर लोगों को ट्रैफिक नियमों का पाठ पढ़ाने में व्यस्त रहती है लेकिन उसे महानगर में वाहन चला रहे सैंकड़ों नाबालिग नजर नहीं आते। इन बच्चों के हाथों में ही असल में हादसों की चाबी पकड़ा दी गई है। 10-12 साल के बच्चों को स्कूटी व मोटरसाइकिलों पर चढ़ा दिया गया है। अभिभावकों ने भी इस बात की चिंता नहीं की कि उनके बच्चे इन वाहनों को किस प्रकार कंट्रोल करेंगे। किसी ने ये भी नहीं सोचा कि बच्चे किसी भी वक्त हादसों का शिकार हो सकते हैं। महानगर के लगभग हर स्कूल में ये 10-12 साल की उम्र के बच्चे अपनी स्कूटियों व मोटरसाइकिलों पर आते हैं लेकिन इस ओर न तो स्कूलों द्वारा ध्यान दिया जाता है व न ही ट्रैफिक पुलिस ही इस संबंध में कोई उचित कदम उठा रही है। 


ट्रैफिक पुलिस भी करती है केवल खानापूर्ति
बिना लाइसैंस दोपहिया वाहन चलाने वाले बच्चों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। हर रोज सैंकड़ों बच्चों को स्कूलों के बाहर इन वाहनों पर आते-जाते देखा जा सकता है लेकिन इस मामले में ट्रैफिक पुलिस केवल खानापूर्ति तक ही सीमित है। ट्रैफिक पुलिस के मुलाजिम इनमें से अधिकांश स्कूलों के बाहर या नजदीक ही तैनात रहते हैं लेकिन इस मामले में वह कोई कार्रवाई नहीं करते। कोई हादसा होने की सूरत में कुछ दिनों तक मुस्तैदी बरती जाती है लेकिन फिर वही सब चलता रहता है। नाबालिग स्कूली बच्चों द्वारा वाहन चलाने के इस रुझान को बंद करवाने के लिए जिला प्रशासन या ट्रैफिक पुलिस ने कोई नीति नहीं बनाई है। इसी कारण ये सिलसिला बिना रोक-टोक चल रहा है।

अपना समय बचाने के लिए अभिभावक खरीद देते हैं वाहन  
अधिकांश अभिभावकों ने अपना समय व सिरदर्दी समाप्त करने के लिए बच्चों को दोपहिया वाहन पकड़ा दिए हैं व ऐसा करके उन्होंने बच्चों की जान को खतरे में डाल दिया है। बेशक भागदौड़ वाली जिंदगी में हर किसी के पास समय कम है लेकिन फिर भी बच्चों की जिंदगी के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। अभिभावकों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए स्कूल वैन का प्रबंध करना पड़ता है। स्कूल वैन्स एक साथ 40-50 बच्चों को घर से ले जाती हैं व वापसी के दौरान रास्ते में ही बच्चों को 1 घंटे तक का समय लग जाता है। अगर अभिभावक स्कूल वैन का प्रबंध न करें तो उन्हें अपने कामकाज छोड़कर बच्चों को स्कूल ले जाना व उन्हें वापस लाना पड़ता है, जिससे उनका खुद का काम प्रभावित होता है। इन परेशानियों से बचने के लिए अभिभावक अपने नाबालिग बच्चों को ही स्कूटी या मोटरसाइकिल आदि खरीदकर देने लगे हैं। 

अधिकांश स्कूल भी नहीं देते ध्यान 
महानगर के अधिकांश स्कूलों द्वारा भी इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता कि बच्चे कैसे स्कूल पहुंच रहे हैं। स्कूलों का कहना है कि उनका काम स्कूलों के अंदर की व्यवस्था देखना है। बाहर केवल वह स्कूल वैन्स में आने वाले बच्चों का ध्यान रख सकते हैं। अन्य बच्चे किस प्रकार स्कूलों में पहुंच रहे हैं, ये देखना अभिभावकों की ड्यूटी है। स्कूलों की बात किसी हद तक सही हो सकती है क्योंकि अगर अभिभावक ही अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं तो स्कूलों को दोष देना ही गलत है। देखने में आता है कि कई दोपहिया वाहनों पर तो 2-2 बच्चे भी स्कूल आते-जाते हैं। कम उम्र के कारण वाहन को नियंत्रण में रख पाना उनके लिए बेहद टेढ़ा काम है। महानगर में इतना भारी ट्रैफिक है कि अच्छा-खासा इंसान भी मुश्किल से ड्राइविंग कर पाता है। ऐसे में बच्चों के हाथों में दोपहिया वाहन होने पर हर वक्त हादसे का खतरा बना रहता है। 
 

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