Edited By Vaneet,Updated: 14 Nov, 2018 12:51 PM
बाबू जी, हमें नही पता यह बाल दिवस क्या होता है। हमें सिर्फ यह पता है कि शहर की गंदगी में से अपने परिवार की आजीविका ढूंढनी है और पेट भरना है या फिर किसी होटल,चाय की दुकान,ढाबे या किसी घर में जूठे बर्तन धोने हैं
संगरूर/बरनाला(विवेक सिंधवानी,गोयल): बाबू जी, हमें नही पता यह बाल दिवस क्या होता है। हमें सिर्फ यह पता है कि शहर की गंदगी में से अपने परिवार की आजीविका ढूंढनी है और पेट भरना है या फिर किसी होटल,चाय की दुकान,ढाबे या किसी घर में जूठे बर्तन धोने हैं। यह दास्तान है बरनाला शहर में भारी तादाद में मौजूद बाल मजदूरों की। आज अगर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू हमारे बीच होते तो मासूम बच्चों के शोषण की दास्तान देखकर उनकी आंखें नम हो जाती।
बाल मजदूरों का कहना है कि बच्चों को स्कूल की वर्दी में देखकर उनके मन में भी चाह उठती है कि वे भी स्कूल में जाएं तथा सुंदर कपड़े पहनें लेकिन हमारे भाग्य में तो सिर्फ मजदूरी, काम करना व गंदगी में से पैसे कमाकर पेट भरना है।
शहर में भारी संख्या में बाल मजदूर सुबह व रात के समय गलियों व बाजारों में से कागज, प्लास्टिक, लोहा, कांच की बोतलें सहित अन्य सामान कंधे पर लाद कर ले जाते हुए देखे जा सकते हैं। केंद्र व प्रदेश सरकारें समय-समय पर बाल मजदूरी को रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे करती हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
प्रशासन व श्रम विभाग भी दावे करने में पीछे नही है। बेशक आज 14 नवम्बर को बाल दिवस पर बच्चों को देश का भविष्य व कर्णधार कहकर कई बच्चों को सम्मानित किया जाएगा लेकिन गरीबी की मार झेल रहे बच्चों की तरफ शायद ही किसी की नजर पड़े। ऐसी स्थिति में बचपन सुधारने के दावे महज दावे ही बने हुए हैं।