ड्रैगन की लपेट में डगमगाया भारत का स्टील स्क्रू उद्योग

Edited By swetha,Updated: 23 Apr, 2019 01:08 PM

steel screw industry

एक तरफ देश की सरकारें भारतीय चीजों को अपनाने और विदेशी चीजों को छोडऩे की लोगों से अपील करती हैं, लेकिन देश के निर्माता और उपभोक्ता कैसे स्थिति का सामना करने में सक्षम हों? इसके लिए न तो कोई योजना है और न सरकार के प्रयास। ऐसी ही दुविधा की स्थिति का...

अमृतसर(इन्द्रजीत): एक तरफ देश की सरकारें भारतीय चीजों को अपनाने और विदेशी चीजों को छोडऩे की लोगों से अपील करती हैं, लेकिन देश के निर्माता और उपभोक्ता कैसे स्थिति का सामना करने में सक्षम हों? इसके लिए न तो कोई योजना है और न सरकार के प्रयास। ऐसी ही दुविधा की स्थिति का सामना कर रहे हैं देश के स्टील स्क्रू निर्माता उद्योग। यह उद्योग 250 कारखानों से लुढ़कते हुए 100 के नीचे आंकड़े तक पहुंच गया है। अमृतसर में स्थित यह स्क्रू निर्माता इंडस्ट्री पूरे देश की खपत को पूरा कर रही थी। 

वहीं  इस मंडी पर चीन का एकाधिकार हो चुका है, नतीजतन भारत की यह इंडस्ट्री लगभग तबाह हो चुकी है। इस इंडस्ट्री की आज हालत यह है कि जिस कीमत पर उसकी लोहे की खरीद है उस कीमत पर चीन बना हुआ प्रोडक्ट (माल) भारत की मंडियों में बेच रहा है। उधर अन्य देशों में तो चीन की सप्लाई इस कीमत से भी कम है। इससे भी बड़ी बात है कि भारत को सप्लाई देने वाले अमृतसर स्थित कारखाने जो 40 प्रतिशत से भी कम रह गए हैं। इन कारखानों में भी माल की प्रोडक्शन पहले से 60 प्रतिशत से भी कम है, वहीं कारखानों में काम करने वाले मजदूर भी नाममात्र रह गए हैं। कारखानेदार की व्यथा यह भी है कि बंद कारखानों के बावजूद बैंकों का लोन उनके सिर पर चढ़ा हुआ है। हालांकि यह उद्योग पूरी तरह से दिवालिया हो चुका है और सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण कोई व्यक्ति हाथ उठाकर कहने को तैयार भी नहीं है कि मैं तबाह हो चुका हूं। लेकिन कारखानों की स्थिति इस उद्योग की बर्बादी का मुंह बोलता प्रमाण है।

दोहरी मार के शिकार निर्माता 
अमृतसर के स्टील स्क्रू निर्माताओं की बड़ी समस्या है कि यहां पर दूसरे प्रदेशों से मंगवाने वाले रॉ मैटीरियल पर दोहरा ट्रांसपोर्टेशन खर्च पड़ता है। एक तरफ मैटीरियल साऊथ के क्षेत्रों से मंगवाना पड़ता है, वही बना हुआ माल भी उन्हीं क्षेत्रों में बेचना पड़ता है लेकिन चाइना का माल बंदरगाहों के रास्ते सीधा उन्हीं क्षेत्रों पर पहुंचता है।

अमृतसर में लेबर महंगी
अमृतसर में इंडस्ट्री का ग्राफ गिरने के कारण यहां पर दूसरे प्रदेशों से आने वाली सामूहिक लेबर दूसरे प्रदेशों में पलायन करने लगी है। इसी कारण लेबर की भारी कमी आ रही है, यहां के स्थानीय लोग लेबर के लिए कारखानों को रास इसलिए नहीं आ रहे कि इनका वेतन दूसरे प्रदेशों की लेबर से दोगना है।

देश में कीमत पर अंतर कितना? 
वर्तमान समय में देश के अंदर स्क्रू बनाने वाली तार की कीमत 39.5 रुपए प्रति किलो है। इस पर मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट अलग है, जिसके मुताबिक निर्माता को इसकी कीमत 55 रुपए प्रति किलो से अधिक पड़ रही है, लेकिन चीन का माल 42 रुपए किलो राष्ट्रीय मार्कीट में बिक रहा है।

जी.एस.टी. ने बिगाड़ा उद्योग का कारोबार 
निर्माताओं का कहना है कि जी.एस.टी. लागू होने से पूर्व देश में चीन की बनी हुई तार आती थी, जिसकी कीमत 30 रुपए प्रति किलो से भी कम थी। अब चीन अपना बना हुआ माल भारत में भेजता है। प्रदेश के निर्माता जो लुधियाना और मछीवाड़ा में स्थित हैं, इस सामान को बनाने वाली तार 39.5 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं और जी.एस.टी. अलग है, जिसकी दर 18 प्रतिशत है। पहले वेट सिस्टम के समय में इस पर केवल 3.85 प्रतिशत टैक्स पड़ता था, वहीं वेट सिस्टम के समय में चीन की तार भारत में मात्र 30 रुपए प्रति किलो आती थी। बड़ी बात है कि अब पंजाब के निर्माता रॉ मैटीरियल जहां 40 रुपए प्रति किलो से कम बेचते हैं उधर देश के अन्य बड़े निर्माता जो विशाखापट्टनम इत्यादि क्षेत्र में स्थित हैं, की कीमत पंजाब के रॉ मैटीरियल निर्माताओं से भी अधिक है। ऐसी स्थिति में चीन हमारे देश की उन मंडियों के बीच माल धड़ल्ले से बेच रहा है जहां पर कभी अमृतसर की मार्कीट का माल बिकता था।

 

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