लकड़बग्घों की गिनती घटने से पर्यावरण की समस्या बढ़ी, विश्व में संख्या मात्र 10 हजार

Edited By Vatika,Updated: 29 Nov, 2019 02:23 PM

environmental problem increased due to reduced number of hyena

पर्यावरण की स्वच्छता के लिए जिस प्रकार मानव जनित जहरीली गैस रहित वातावरण जरूरी है ठीक उसी प्रकार धरती पर फैली व्यापक स्तर पर गंदगी और बदबूदार वातावरण को संतुलित रखने के लिए प्राकृतिक जीवोंका जिंदा रहना भी जरूरी है जो धरती पर अपना अस्तित्व छोड़ चुके...

अमृतसर (इंद्रजीत): पर्यावरण की स्वच्छता के लिए जिस प्रकार मानव जनित जहरीली गैस रहित वातावरण जरूरी है ठीक उसी प्रकार धरती पर फैली व्यापक स्तर पर गंदगी और बदबूदार वातावरण को संतुलित रखने के लिए प्राकृतिक जीवोंका जिंदा रहना भी जरूरी है जो धरती पर अपना अस्तित्व छोड़ चुके हैं।

जमीनी जीवों में कई जीव विलुप्त हो चुके हैं। इनमें मुख्य तौर पर मनुष्य का रक्षक जीव है जिसे जमीन का सफाई कर्मी भी कहा जाता है। यह हाइना है जिसे लकड़बग्घा भी कहते हैं। लेकिन पिछले समय में यह जीव धरती से बराबर कम होता जा रहा है और वर्तमान समय में इसकी विश्व में संख्या मात्र 10 हजार रह चुकी है, वहीं पंजाब जैसे प्रदेश में तो यह जीव बिल्कुल ही समाप्त हो चुका है। इसके विलुप्त होने से पर्यावरण की समस्या बढ़ गई है। पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि मरे हुए जीवों का मांस अधिक देर तक धरती पर न रहे। इस के लिए प्रकृति की तरफ से गिद्ध, चील, सूअर, चूहा व अन्य कई प्राणी हैं। इन सबसे अधिक कारगर जीव लकड़बग्घा है। यह उन मरे हुए जीवों को भी खा जाता है जो कई-कई महीने तक वातावरण में बदबू फैला रहे होते हैं। यहां तक कि छप्पड़ों में महीनों पुरानी मरी हुई मछलियां जो इतनी बदबूदार होती हैं कि इन्हें चील, कौवे ,सूअर इत्यादि कोई जीव भी खाने को तैयार नहीं होते, यह समस्या लकड़बग्घे दूर करते हैं। लकड़बग्घे के बारे में तो विश्व के वैज्ञानिकों ने हैरतअंगेज तथ्य दिए हैं कि यह जीव मरे हुए जीवों की खालें, चमड़े के बैग, हड्डियां और पूरे शरीर के अवशेष हज्म कर जाता है। वहीं टिड्डी दल के आक्रमण के उपरांत जब यह मर कर ढेरों के रूप में जमीन पर वातावरण को खराब कर रही होती हैं तो लकड़बग्घे इन्हें भी अपने शरीर में खींच कर पेट भर लेते हैं।

विश्व में गिनती कितनी
18वीं शताब्दी में इन लकड़बग्घों की विश्व में गिनती 10 लाख से अधिक थी। लेकिन 1950 के करीब इनकी गिनती 2.5 लाख थी और इस समय विश्व में लकड़बग्घों की गिनती 10 हजार से भी नीचे है। वर्ष 1980 तक देश में की गई लकड़बग्घों की जीव गणना में इनकी गिनती 3000 के करीब आई थी जिसमें झारखंड में 325, पंजाब में 141, हिमाचल में 149, मणिपुर में 155, मध्य प्रदेश में 133, नागालैंड में 159 व इसी क्रम में अन्य प्रदेशों में भी देखी गई थी। लेकिन इसके बाद हालांकि लकड़बग्घों की विशेष तौर पर देश में गिनती तो नहीं हुई पर जिस प्रकार विश्व में गिनती कम हुई है उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि देश में इस समय लकड़बग्घों की संख्या 1 हजार भी नहीं है। वहीं जंगलात विभाग के अनुसार पंजाब में शायद एक भी लकड़बग्घा वर्तमान समय में मौजूद नहीं है।

क्यों कम हुई इनकी संख्या
लकड़बग्घों की संख्या कम होने का मुख्य कारण मरे हुए जीवों के अंदर खाद्य पदार्थों में मौजूद वह कैमीकल हैं जो फसलों और अन्य चीजों में कीटनाशक के तौर पर डाले जाते हैं। मरे हुए जानवरों के मांस व शरीर के अन्य अवशेषों में कीटनाशक के घातक अंश पाए जाते हैं। इन्हीं के कारण गिद्ध और चीलें भी समाप्त हुई हैं। इसी कारण लकड़बग्घों की संख्या भी निरंतर कम होती गई।

कई महत्वपूर्ण प्रजातियां लुप्त
लकड़बग्घों की गिनती बेहद कम हो जाने के साथ-साथ एक तथ्य यह भी है कि इनमें कई महत्वपूर्ण प्रजातियां समाप्त हो चुकी हैं। यह प्रजातियां इतनी शक्तिशाली थीं कि यह कई बार झुंड के रूप में शेरों पर भी आक्रमण कर देती थीं। यहां तक कि व्याघ्र प्रजाति के जीव अपने बच्चों को उनसे बचा कर रखते थे। लेकिन अब इन जातियों में सामान्य प्रजातियां जिनमें धारीदार और चीतल शामिल हैं, छुटपुट ही दिखाई देते हैं, जबकि अन्य घातक और शक्तिशाली प्रजातियां अब समाप्त हो चुकी हैं। विश्व-वैज्ञानिकों के मुताबिक लकड़बग्घों की कुल 123 जातियां हैं।

 

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