विभिन्न विवादों के कारण चीफ खालसा दीवान जा रहा पतन की ओर

Edited By swetha,Updated: 19 Jun, 2018 08:23 AM

dispute in chief khalas dewan

सिख पंथ की सिरमौर संस्था चीफ खालसा दीवान को किसी समय पर बुद्धिजीवियों, पंथ सेवकों की संस्था माना जाता था जो अब विभिन्न विवादों के कारण पतन की ओर जा रही है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की हजूरी में 16 जून को मीटिंग दौरान हुए हंगामे ने जहां सभी हदें पार कीं...

अमृतसर(ममता): सिख पंथ की सिरमौर संस्था चीफ खालसा दीवान को किसी समय पर बुद्धिजीवियों, पंथ सेवकों की संस्था माना जाता था जो अब विभिन्न विवादों के कारण पतन की ओर जा रही है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की हजूरी में 16 जून को मीटिंग दौरान हुए हंगामे ने जहां सभी हदें पार कीं और एक बार प्रधान डा. संतोख सिंह को मजबूर होकर इस्तीफा देकर वापस लेने का भी ऐलान करना पड़ा, वहीं इसके साथ दीवान की विरोधी ताकतों को एक बार फिर से इसमें दखलअंदाजी करने का मौका भी मिल गया। दीवान में चल रहे ऐसे हालातों के कारण कभी भी इस संस्था का प्रबंध सरकारी हाथों में जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

चड्ढा की अध्यक्षता के समय पर शुरू हुआ दीवान का पतन
चीफ खालसा दीवान का प्रबंध किसी समय पर धार्मिक प्रवृत्ति और दीवान की मर्यादा और सिद्धांत पर खरे उतरने वाले बुद्धिजीवियों के हाथों में रहा जिनका मुख्य लक्ष्य सभी सुख सुविधाएं छोड़कर दीवान के विकास में योगदान डालना और साथ ही इस प्रबंध के नीचे चलते यतीमखाने के विकास के लिए भी काम करना था। सूत्रों के अनुसार 21वीं सदी के पहले दशक में दीवान का पतन उस समय पर शुरू हो गया जब दीवान पर शराब माफिया, लैंड माफिया तथा सैंड माफिया के सरगना माने जाते चरनजीत सिंह चड्ढा काबिज हो गए और उन्होंने सबसे पहला कार्य दीवानपरस्त भाग सिंह अणखी और एक बुद्धिजीवी तथा गुरु नानक देव यूनिवॢसटी के पूर्व वाइस चांसलर हरभजन सिंह सोच को दीवान से बाहर करने का किया क्योंकि वे चड्ढा की मनमानियां चलने नहीं देते थे। इसी तरह शिरोमणि कमेटी के पूर्व सचिव रहे महेन्द्र सिंह के बेटे अवतार सिंह को भी इसी कारण से ही चड्ढा ने बाहर का रास्ता दिखाया।

चड्ढा धड़े के डा. संतोख सिंह का विरोध भी लगातार जारी
बीते वर्ष चड्ढा की अश्लील वीडियो सामने आई जो ऐसा कुछ बयान कर गई जो दीवान की रिवायतों से कोसों दूर था और चड्ढा को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा और दीवान की कार्यकारी कमेटी ने चड्ढा को प्राथमिक मैंबरशिप से खारिज कर दिया। इस तरह चड्ढा के तानशाही साम्राज्य का पतन तो हो गया परंतु चड्ढा धड़े के ही पदाधिकारी डा. संतोख सिंह प्रधान बनने में कामयाब हो गए। डा. संतोख सिंह के प्रधान बनने के रास्ते कोई असान नहीं थे। विरोधी पक्ष द्वारा उनका लगातार विरोध जारी रहा जोकि 16 जून की मीटिंग में खुल कर सामने आया। 

स्पैशल इनवाइटी सदस्यों का मुद्दा डाल रहा है मीटिंगों में खलल
दीवान की मीटिंगों में आज सिर्फ एक ही मुद्दा है कि स्पैशल इनवाइटी मैंबरों के साथ सौतेलों जैसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है। चड्ढा के साम्राज्य के समय वे लोग स्पैशल इनवाइटी शामिल किए गए जो चड्ढा के खास थे लेकिन जब चड्ढा पर मुसीबत पड़ी तो सबसे अधिक विरोध भी उन्होंने ही किया। स्पैशल इनवाईटी का मामला चड्ढा साम्राज्य दे के साथ ही खत्म हो गया क्योंकि दीवान का विधान ऐसे किसी भी मैंबर की नियुक्ति की अनुमति नहीं देता। बीते दिनों श्री गुरु ग्रंथ साहिब की हजूरी में दीवान की कार्यकारी कमेटी में जिस ढंग से हंगामा होने की रिपोर्टें मिली हैं उनसे स्पष्ट है कि कुछ लोग दीवान विरोधी ताकतों के हाथों में खेल रहे हैं। जानकारी के मुताबिक यदि 20 जून को होने वाली मीटिंग में फिर ऐसा हंगामा होता है तो उसके गंभीर निष्कर्ष निकल सकते हैं।

स्पैशल इनवाइटी की दीवान के संविधान में कोई व्यवस्था नहीं: डा. संतोख सिंह
दीवान के प्रधान डा. संतोख सिंह को जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मीटिंग शुरू होते ही स्पैशल इनवाइटियों की ओर से हंगामा करने पर माहौल बिगड़ा जोकि असहनीय था जबकि चढ्ढा ने निजी तौर पर ये स्पैशल इनवाइटी बनाए थे। उन्होंने कहा कि स्पैशल इनवाइटी की दीवान के संविधान में कोई व्यवस्था नहीं है परन्तु पता नहीं क्यों कुछ लोग दीवान का जानबूझ कर नुक्सान करने के लिए बिना बुलाए ही मीटिंग में आ जाते हैं। उन्होंने कहा कि यदि दीवान का कोई नुक्सान होता है तो ये लोग जिम्मेदार होंगे।

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