90 साल पहले आज के दिन जैसे ही लाहौर में ‘सांडर्स’ की हत्या हुई, अमृतसर में लग गया था ‘कफ्र्यू’

Edited By swetha,Updated: 17 Dec, 2018 12:56 PM

british rule

इतिहास के 90 साल पहले 17 दिसंबर 1928 को हुई सांडर्स की हत्या की खबर जैसे ही अमृतसर पहुंची तो शहर में ‘कफ्र्यू’ लग गया। जगह-जगह छापे पडऩे लगे। क्रांतिकारियों की जब धड़पकड़ तेज हुई तो आजादी के परवाने भूमिगत हो गए।

अमृतसर(सफर): इतिहास के 90 साल पहले 17 दिसंबर 1928 को हुई सांडर्स की हत्या की खबर जैसे ही अमृतसर पहुंची तो शहर में ‘कफ्र्यू’ लग गया। जगह-जगह छापे पडऩे लगे। क्रांतिकारियों की जब धड़पकड़ तेज हुई तो आजादी के परवाने भूमिगत हो गए।

अमृतसर के इस्लामाबाद स्थित 12 मकानों पर भी ब्रिटिश हुकूमत ने तलाशी करवाई थी। 12 मकान क्रांतिकारियों की शरणस्थली हुआ करते थे। आजादी की मांग जहां अमृतसर के जलियांवाला बाग में नरसंहार 13 अप्रैल 1919 के बाद बुलंद हुई वहीं लाला लाजपत राय की मौत के बाद जलियांवाला बाग में देश भर के क्रांतिकारियों को एकजुट करने के लिए ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन भी किया गया। अमृतसर जहां गुरुओं की बसाई नगरी है वहीं इस नगरी ने देश को आजादी दिलाने के लिए घर-घर से शूरवीरों को एकमंच भी प्रदान किया। 

‘पंजाब केसरी’ के साथ बातचीत में इतिहासकार देवदर्द कहते हैं कि आजादी की लड़ाई की रूपरेखा अमृतसर में पहली बार जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद बनी और उसके बाद अमृतसर क्रांतिकारियों की नगरी बन गई, मेरे पास कई किताबें हैं जो इस बात की पुष्टि करती हैं। आजादी के पहले 2 बार एम.पी. रहे सोहन सिंह जोश ने भी इन बातों का उल्लेख किया है। 17 दिसंबर का दिन देश की आजादी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 30 अक्तूबर 1928 के दिन साइमन कमीशन के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले लाला लाजपत राय की मौत का बदला शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अपने 2 साथियों राजगुरु व सुखदेव के साथ मिलकर लिया वहीं अंग्रेज हुकूमत को बता दिया कि अजादी के दीवानों ने जो कसम लाला लाजपत राय की मौत पर 17 नवंबर 1928 को ली थी वह मात्र 30 दिन में पूरी कर दी। 

लाला लाजपत राय के शहीद होने के ठीक 1 महीने बाद 17 दिसंबर 1928 का दिन क्रांतिकारियों ने चुना। सब कुछ प्लाङ्क्षनग से हो रहा था, थोड़ी सी चूक हो गई। गोली जेम्स ए स्कॉट पर चलानी थी जो उस समय सुपरिंटैंडैंट थे लेकिन निशाना अस्सिटैंट सुपरिंटैंडैंट ऑफ पुलिस जॉन पी सांडर्स बन गए। सांडर्स जब लाहौर के पुलिस हैडक्वार्टर से निकल रहे थे तो भगत सिंह व उनके दोनों साथियों ने उन पर गोलियां चला दीं। हत्या के बाद तीनों पर देशद्रोह का केस चला। 7 अक्तूबर 1930 को तीनों को फांसी पर लटकाने का फैसला सुनाया गया। 23 मार्च 1931 को तीनों को फांसी पर लटका दिया गया।

इंदौर के म्यूजियम में रखा है पिस्तौल

भगत सिंह ने लाला जी का बदला लेने हेतु जिस पिस्तौल से गोलियां दाग कर सांडर्स को मारा था, वह इंदौर के सी.एस.डब्ल्यू.टी. म्यूजियम में रखा है। 32 एम.एम. की कोल्ट ऑटोमैटिक गन को दुनिया से लोग देखने के लिए आते हैं। 

देश के लाल व आजादी के ‘लाला’ थे लाजपत राय

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1965 को पंजाब के मोगा जिले में अग्रवाल परिवार में हुआ और वह देश के लिए 17 नवंबर 1928 को कुर्बान हो गए। लाला लाजपत राय देश के लाल और आजादी के ‘लाला’ थे। 1 महीने बाद 17 दिसंबर 1928 को उनकी मौत का जब बदला लिया गया तो क्रांतिकारियों ने लड्डू बांटकर खुशियां मनाई थीं।

लाला लाजपत राय को ‘पंजाब केसरी’ भी कहा जाता है। पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की उन्होंने स्थापना की थी। लाला लाजपत राय ने महॢष दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज का प्रचार-प्रसार किया। जब लाला जी पर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा लाठियां बरसाई गईं तो उन्होंने हर लाठी सहते हुए कहा था कि ‘मेरे शरीर पर पडऩे वाली हर लाठी ब्रिटिश हुकूमत के ताबूत का कील साबित होगी’। लाला जी के बलिदान के 20 साल बाद ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया। आजादी के सूरज की रोशनी में लोगों ने 15 अगस्त 1947 को जश्र मनाया। 

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