विजयदशमी पर RSS प्रमुख मोहन भागवत का संबोधन, चीन से निपटने को तैयार रहे भारत

Edited By Tania pathak,Updated: 26 Oct, 2020 01:34 PM

rss chief mohan bhagwat s address on vijayadashami

श्रीलंका, बंगलादेश, नेपाल जैसे पड़ोसी देशों, जो हमारे मित्र हैं, के साथ हमें अपने संबंधों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने के लिए अपनी गति तेज करनी चाहिए...

जालंधर (मृदुल): राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयदशमी उत्सव पर रविवार को नागपुर में देश को संबोधित किया। कोरोना महामारी के दिशा-निर्देशों के कारण संघ ने इस कार्यक्रम का आयोजन इस साल सीमित रखा था जिसमें 50 स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया। 

भागवत ने कहा कि भारत को चीन से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसके लिए भारत को बेहतर सैन्य तैयारी करने की जरूरत है। चीन ने महामारी के बीच में हमारी सीमाओं का अतिक्रमण किया लेकिन चीनी घुसपैठ पर भारत की प्रतिक्रिया से वह सकते में है। उस देश की विस्तारवादी प्रकृति से पूरी दुनिया अवगत है और कई देश चीन के सामने खड़े  हैं। उन्होंने इसके लिए ताइवान व वियतनाम का उदाहरण दिया। हमारी सेना की अटूट देशभक्ति व अदम्य वीरता, हमारे शासनकत्र्ताओं के स्वाभिमानी रवैए तथा भारत के लोगों के दुर्दम्य संकल्प व धैर्य का जो परिचय चीन को पहली बार मिला है, उससे उसके भी ध्यान में यह बात आनी चाहिए। इससे उसके रवैए में सुधार होना चाहिए, परंतु नहीं हुआ तो जो परिस्थिति आएगी, उसमें हम लोगों की सजगता, तैयारी व दृढ़ता कम नहीं पड़ेगी, यह विश्वास आज राष्ट्र में सर्वत्र दिखता है।

श्रीलंका, बंगलादेश, नेपाल जैसे पड़ोसी देशों, जो हमारे मित्र हैं, के साथ हमें अपने संबंधों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने के लिए अपनी गति तेज करनी चाहिए। इस कार्य में बाधा उत्पन्न करने वाले विवाद के मुद्दों को हल करने का शीघ्र प्रयास करना पड़ेगा।  हम सभी से मित्रता चाहते हैं। 
समाज में किसी प्रकार से अपराध की अथवा अत्याचार की कोई घटना हो ही नहीं, अत्याचारी व आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों पर पूरा नियंत्रण रहे और फिर भी घटनाएं होती हैं तो दोषी व्यक्ति तुरंत पकड़े जाएं।  इसके साथ ही,  समाज को संविधान को गलत तरीके से पेश करने वालों को पहचानना व उनके षड्यंत्रों को नाकाम करना तथा भ्रमवश उनका साथ देने से बचना सीखना पड़ेगा।
 
पिछले विजयदशमी उत्सव से अब तक बीते समय में चर्चा योग्य घटनाएं कम नहीं हुईं। दीपावली के पश्चात् 9 नवम्बर को श्रीरामजन्मभूमि के मामले में अपना असंदिग्ध निर्णय देकर सर्वोच्च न्यायालय ने इतिहास बनाया। भारतीय जनता ने इस निर्णय को संयम और समझदारी का परिचय देते हुए स्वीकार किया। मंदिर निर्माण का भूमिपूजन 5 अगस्त को संपन्न हुआ। देश की संसद में नागरिकता अधिनियम संशोधन कानून पूरी प्रक्रिया को लागू करते हुए पारित किया गया। कुछ पड़ोसी देशों से सांप्रदायिक कारणों से प्रताडि़त होकर विस्थापित किए जाने वाले बंधु, जो भारत में आएंगे, उनको मानवता के हित में शीघ्र नागरिकता प्रदान करने का यह प्रावधान था। कानून का विरोध करने की चाहत रखने वाले लोगों ने देश के मुसलमान भाइयों के मन में इसके खिलाफ जहर भर दिया। उसको लेकर जो प्रदर्शन हुए उनमें उपद्रव करने वाले तत्व घुस गए। देश का वातावरण तनावपूर्ण बन गया तथा मनों में साम्प्रदायिक सौहार्द पर आंच आने लगी। उपद्रवी तत्वों द्वारा इन बातों को उभारकर विद्वेष व हिंसा फैलाने के षड्यंत्र पृष्ठभूमि में चल रहे हैं।

कोरोना महामारी के चलते विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत संकट की इस परिस्थिति में अधिक अच्छे प्रकार से खड़ा हुआ दिखाई दिया है।  शासन/प्रशासन ने तत्परतापूर्वक इस संकट से समस्त देशवासियों को सावधान किया, सावधानी के उपाय बताए और उपायों पर अमल भी अधिकतम तत्परता से हो, इसकी व्यवस्था की। सामान्य जनता में यद्यपि उसके कारण अतिरिक्त भय का वातावरण बना, सावधानी बरतने में, नियम व्यवस्था का पालन करने में अतिरिक्त दक्षता भी समाज ने दिखाई, यह लाभ भी हुआ। 

संघ प्रमुख ने कहा कि प्रशासन के कर्मचारी, विभिन्न उपचार पद्धतियों के चिकित्सक तथा सुरक्षा और सफाई सहित सभी काम करने वाले कर्मचारी उच्चतम कत्र्तव्यबोध के साथ रुग्णों की सेवा में जुटे रहे। नागरिकों ने भी अपने समाज बंधुओं की सेवा के लिए स्वयंस्फूर्ति के साथ जो भी समय की आवश्यकता थी, उसको पूरा करने में प्रयासों की कमी नहीं होने दी। एकजुटता व संवेदनशीलता का परिचय देते हुए जितना बड़ा संकट था, उससे अधिक बड़ा सहायता का उद्यम खड़ा किया। 

व्यक्ति के जीवन में स्वच्छता, स्वास्थ्य तथा रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाली अपनी कुछ परंपरागत आदतें व आयुर्वेद जैसे शास्त्र भी इस समय उपयुक्त  सिद्ध हुए। स्वतंत्रता के बाद धैर्य, आत्मविश्वास व सामूहिकता की यह अनुभूति अनेक ने पहली बार पाई है। समाज के उन सभी सेवाप्रेमी नामित, अनामिक, जीवित या बलिदान हो चुके बंधु भगिनियों का, चिकित्सकों का, कर्मचारियों का, समाज के सभी वर्गों से आने वाले सेवा परायण घटकों को श्रद्धापूर्वक शत्-शत् नमन है। 

कोरोना के कारण जिन विद्यालयों को शुल्क नहीं मिला, उन विद्यालयों के पास शिक्षकों को वेतन देने के लिए पैसा नहीं है। जिन अभिभावकों के काम बंद हो जाने के कारण बच्चों के विद्यालयों का शुल्क भरने के लिए धन नहीं है, वे लोग समस्या में पड़ गए हैं इसलिए विद्यालयों का प्रारम्भ, शिक्षकों के वेतन तथा बच्चों की शिक्षा के लिए सेवा सहायता करनी पड़ेगी। 

संघ प्रमुख ने कहा कि विस्थापन के कारण रोजगार चला गया, नए क्षेत्र में रोजगार पाना है, नया रोजगार पाना है। उसका प्रशिक्षण चाहिए। लौटकर गए हुए सब विस्थापित रोजगार पाते हैं, ऐसा नहीं है। वहीं काम छोड़ चले गए बंधुओं की जगह पर उसी काम को करने वाले दूसरे बंधु सब जगह नहीं मिले हैं। अत: रोजगार का प्रशिक्षण व रोजगार का सृजन करना पड़ेगा।   

संघ के स्वयंसेवक मार्च से ही संकट के संदर्भ में समाज में आवश्यक सब प्रकार के सेवा की आपूर्ति करने में जुट गए हैं। समाज के अन्य बंधु-बांधव भी लंबे समय सक्रिय रहने की आवश्यकता को समझते हुए अपने प्रयास जारी रखेंगे, यह विश्वास है। 

कोरोना वायरस के बारे में पर्याप्त जानकारी विश्व के पास नहीं है। यह रूप बदलने वाला विषाणु है, बहुत शीघ्र फैलता है। वहीं हानि की तीव्रता में कमजोर है, इतना ही हम जानते हैं। इसलिए लंबे समय तक इसके साथ रहकर बीमारी से बचना और समाज में बंधुओं को बचाने का काम करते रहना पड़ेगा। मन में भय रखने की आवश्यकता नहीं, सजगतापूर्वक सक्रियता की आवश्यकता है। 

महामारी के विरुद्ध संघर्ष में समाज का जो नया रूप उभरकर आया है, उसके और कुछ पहलू हैं। सम्पूर्ण विश्व में ही अंतर्मुख होकर विचार करने का नया क्रम चला है। एक शब्द बार-बार सुनाई देता है-न्यू नॉर्मल। कोरोना महामारी के चलते जीवन थम-सा गया था। कई नित्य की क्रियाएं बंद हो गईं। कुछ कम मात्रा में चलीं, लेकिन चलती रहीं। झरनों, नालों, नदियों का पानी स्वच्छ होकर बहता हुआ देखा। खिड़की के बाहर बाग-बगीचों में पक्षियों की चहक फिर से सुनाई देने लगी। अधिक पैसों के लिए चली अंधी दौड़ में, हमने अपने आपको जिन बातों से दूर कर लिया था, कोरोना परिस्थिति के प्रतिकार में वही बातें काम की होने के नाते हमने उनको फिर स्वीकार कर लिया और उनके आनंद का नए सिरे से अनुभव लिया। संस्कृति के मूल्यों का महत्व फिर से सबके ध्यान में आ गया है और अपनी परंपराओं में देश-काल-परिस्थिति सुसंगत आचरण का फिर से प्रचलन कैसे होगा, इसकी सोच में बहुत सारे कुटुम्ब पड़े हुए दिखाई देते हैं। 

विश्व के लोग अब फिर से कुटुम्ब व्यवस्था के महत्व, पर्यावरण के साथ मित्र बनकर जीने के महत्व को समझने लगे हैं। यह सोच कोरोना की मार की प्रतिक्रिया में तात्कालिक सोच है या शाश्वत रूप में विश्व की मानवता ने अपनी दिशा में थोड़ा परिवर्तन किया है यह बात तो समय बताएगा। 
आज तक बाजारों के आधार पर संपूर्ण दुनिया को एक करने का जो विचार प्रभावी था, उसके स्थान पर अपने-अपने राष्ट्र को उसकी विशेषताओं सहित स्वस्थ रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय जीवन में सकारात्मक सहयोग का विचार प्रभावी होने लगा है। 

स्वदेशी का महत्व फिर से सब लोग बताने लगे हैं। हिन्दुत्व ऐसा ही एक शब्द है, जिसके अर्थ को धर्म से जोड़कर संकुचित किया गया है। संघ की भाषा में उस संकुचित अर्थ में उसका प्रयोग नहीं होता। वह शब्द अपने देश की पहचान को, अध्यात्म आधारित उसकी परंपरा के सनातन सातत्य तथा समस्त मूल्य सम्पदा के साथ अभिव्यक्ति देने वाला शब्द है, इसलिए संघ मानता है कि यह शब्द भारतवर्ष को अपना मानने वाले, उसकी संस्कृति के वैश्विक व सर्वकालिक मूल्यों को आचरण में उतारना चाहने वाले तथा यशस्वी रूप में ऐसा करके दिखाने वाली उसकी पूर्वज परंपरा का गौरव मन में रखने वाले सभी 130 करोड़ समाज बंधुओं पर लागू होता है। उस शब्द के विस्मरण से हमको एकात्मता के सूत्र में पिरोकर देश व समाज से बांधने वाला बंधन ढीला होता है। इसीलिए देश व समाज को तोडऩा चाहने वाले, हमें आपस में लड़ाने की चाहत रखने वाले, इस शब्द, जो सबको जोड़ता है, को अपने तिरस्कार व टीका-टिप्पणी का पहला लक्ष्य बनाते हैं। हिन्दू किसी पंथ, सम्प्रदाय का नाम नहीं है, किसी एक प्रांत का अपना उपजाया हुआ शब्द नहीं है, किसी एक जाति की बपौती नहीं है, किसी एक भाषा का पुरस्कार करने वाला शब्द नहीं है। वह इन सब विशिष्ट पहचानों को कायम स्वीकृत व सम्मानित रखते हुए, भारत भक्ति के तथा मनुष्यता की संस्कृति के विशाल प्रांगण में सबको बसाने वाला, सबको जोडऩे वाला शब्द है। इस शब्द पर किसी को आपत्ति हो सकती। आशय समान है तो अन्य शब्दों के उपयोग पर हमें कोई आपत्ति नहीं है।

संघ जब कहता है कि हिन्दुस्तान हिन्दू राष्ट्र है। इस बात का उच्चारण करता है तो उसके पीछे कोई राजनीतिक अथवा सत्ता केंद्रित संकल्पना नहीं होती। अपने राष्ट्र का हिंदुत्व है। उस शब्द की भावना की परिधि में आने व रहने के लिए किसी को अपनी पूजा, प्रान्त, भाषा आदि कोई भी विशेषता छोडऩी नहीं पड़ती। केवल अपना ही वर्चस्व स्थापित करने की इच्छा छोडऩी पड़ती है। स्वयं के मन से अलगाववादी भावना को समाप्त करना पड़ता है। भारत की विविधता के मूल में स्थित शाश्वत एकता को तोडऩे का घृणित प्रयास इसी प्रकार, हमारे तथाकथित अल्पसंख्यक तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों को झूठे सपने तथा कपोल-कल्पित द्वेष की बातें बताकर चल रहा है। ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ ऐसी घोषणाएं देने वाले लोग इस षड्यंत्रकारी मंडली में शामिल हैं, नेतृत्व भी करते हैं। राजनीतिक स्वार्थ, कट्टरपन व अलगाव की भावना, भारत के प्रति शत्रुता तथा जागतिक वर्चस्व की महत्वाकांक्षा, इनका एक अजीब सम्मिश्रण भारत की राष्ट्रीय एकात्मता के विरुद्ध काम कर रहा है। यह समझकर धैर्य से काम लेना होगा। भड़काने वालों के अधीन न होते हुए, संविधान व कानून का पालन करते हुए, अहिंसक तरीके से व जोडऩे के ही एकमात्र उद्देश्य से हम सबको कार्यरत रहना पड़ेगा।  
 
व्यापक संवाद के आधार पर एक नई शिक्षा नीति घोषित हुई है। उसका संपूर्ण शिक्षा जगत से स्वागत हुआ है, हमने भी उसका स्वागत किया है। वोकल फॉर लोकल यह स्वदेशी संभावनाओं वाला उत्तम प्रारंभ है, परन्तु इन सबका यशस्वी क्रियान्वयन पूर्ण होने तक बारीकी से ध्यान देना पड़ेगा। 
सहमति के आधार पर किए निर्णय बिना परिवर्तन के तत्परतापूर्वक जब लागू होते हुए दिखते हैं, तब यह समन्वय और सहमति का वातावरण और मजबूत होता है। घोषित नीतियों का क्रियान्वयन आखिरी स्तर तक किस प्रकार हो रहा है, उसके बारे में सजगता की आवश्यक होती है। नीति निर्माण के साथ-साथ उसके क्रियान्वयन में भी तत्परता व पारदर्शिता रहने से नीति में अपेक्षित परिवर्तनों के लाभों को पूर्ण मात्रा में पा सकते हैं।

कोरोना की परिस्थिति में नीतिकारों सहित देश के सभी विचारवान लोगों का ध्यान, देश की आर्थिक दृष्टि में कृषि उत्पादन को विकेंद्रित करने वाले छोटे व मध्यम उद्योग, रोजगार सृजन, स्वरोजगार, पर्यावरण मित्रता तथा उत्पादन के सभी क्षेत्रों में शीघ्र स्वनिर्भर होने की आवश्यकता की तरफ आकर्षित किया है। इन क्षेत्रों में कार्यरत हमारे छोटे-बड़े उद्यमी, किसान आदि सभी इस दिशा में आगे बढ़कर देश के लिए सफलता पाने के लिए उत्सुक हैं। बड़े देशों की प्रचंड आर्थिक शक्तियों से स्पर्धा में शासन को उन्हें सुरक्षा कवच देना होगा। कोरोना की परिस्थिति के चलते 6 महीनों के अंतराल के बाद फिर खड़ा होने के लिए सहायता देने के साथ ही पहुंच भी सुनिश्चित करनी होगी। राष्ट्र के विकास व प्रगति के बारे में हमें अपनी भाव भूमि को आधार बनाकर, अपनी पृष्ठभूमि में, अपने विकास पथ का आलेखन करना पड़ेगा। उस पथ का गंतव्य हमारे राष्ट्रीय संस्कृति व आकांक्षा के अनुरूप ही होगा। सबको सहमति की प्रक्रिया में सकारात्मक रूप से हम सहभागी करा लें, अचूक, तत्परतापूर्ण और जैसा निश्चय होता है बिल्कुल वैसा, योजनाओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित करें। आखिरी आदमी तक इस विकास प्रक्रिया का लाभ पहुंचे, मध्यस्थों व दलालों द्वारा लूट बंद होकर जनता सीधा विकास प्रक्रिया में सहभागी व लाभान्वित हो। इसको देखेंगे तभी हमारे स्वप्न सत्यता में उतर सकते हैं, अन्यथा उनके अधूरे रह जाने का खतरा बना रहता है।

उन्होंने कहा कि अपने आचरण में परिवर्तन लाने का क्रम बनाकर, नित्य इन सब विषयों के प्रबोधन के उपक्रम चलाकर, हम अपनी आदत के इस परिवर्तन को कायम रखकर आगे बढ़ा सकते हैं। प्रत्येक कुटुम्ब इसकी इकाई बन सकता है। ऐसे छोटे-छोटे उपक्रमों  द्वारा व्यक्तिगत जीवन में सद्भाव, शुचिता, संयम, अनुशासन सहित मूल्याधारित आचरण का विकास कर सकते हैं। उसके परिणामस्वरूप हमारा सामूहिक व्यवहार भी नागरिक अनुशासन का पालन करते हुए परस्पर सौहार्द बढ़ाने वाला व्यवहार हो जाता है। प्रबोधन  द्वारा समाज के सामान्य घटकों का मन अपनी अंतर्निहित एकात्मता का आधारस्वर हिन्दुत्व को बना कर चले, तथा देश के लिए पुरुषार्थ में अपने राष्ट्रीय स्वरूप का आत्मभान, सभी समाज घटकों की आत्मीयतावश परस्पर निर्भरता, हमारी सामूहिक शक्ति सब कुछ कर सकती है, यह आत्मविश्वास तथा हमारे मूल्यों के आधार पर विकास यात्रा के गंतव्य की स्पष्ट कल्पना जागृत रहती है तो, निकट भविष्य में ही भारतवर्ष को सम्पूर्ण दुनिया की सुख-शांति का युगानुकूल पथ प्रशस्त करते हुए, बन्धुभाव के आधार पर मनुष्य मात्र को वास्तविक स्वतंत्रता व समता प्रदान कर सकने वाला भारतवर्ष इस नाते खड़ा होता हुआ हम देखेंगे।

ऐसे व्यक्ति तथा कुटुम्बों के आचरण से सम्पूर्ण देश में बंधुता, पुरुषार्थ तथा न्याय नीतिपूर्ण व्यवहार का वातावरण चतुर्दिक खड़ा करना होगा। यह प्रत्यक्ष में लाने वाला कार्यकत्र्ताओं का देशव्यापी समूह खड़ा करने के लिए ही 1925 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है। इस प्रकार की संगठित स्थिति ही समाज की सहज स्वाभाविक स्वस्थ अवस्था है। इसी के लिए हमारे महापुरुषों ने प्रयत्न किए। स्वतंत्रता के पश्चात इस गंतव्य को ध्यान में लेकर ही उसको युगानुकूल भाषा में परिभाषित कर उसके व्यवहार के नियम बताने वाला संविधान हमें मिला है। उसको यशस्वी करने के लिए पूरे समाज में यह स्पष्ट दृष्टि, परस्पर समरसता, एकात्मता की भावना तथा देश हित सर्वोपरि मानकर किया जाने वाला व्यवहार इस संघ कार्य से ही खड़ा होगा। इस पवित्र कार्य में प्रामाणिकता से, नि:स्वार्थ बुद्धि से व तन-मन-धन पूर्वक देशभर में लक्षावधि स्वयंसेवक लगे हैं। आपको भी उनके सहयोगी कार्यकत्र्ता बनकर देश के नवोत्थान के इस अभियान के रथ में हाथ लगाने का आह्वान करता हुआ मैं अपने शब्दों को विराम देता हूँ।

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