Edited By Updated: 27 Feb, 2017 02:40 PM
होशियारपुर में स्थित लगभग 500 साल पुराना इतिहास अपने में समेटे रानी की समाधि केंद्र व राज्य सरकार की बेरुखी की वजह से अब खंडहर में तबदील होती जा रही है। डेरा बाबा चरण शाह परिसर के साथ लगते करीब एक कनाल रकबे में फैले रानी की समाधि स्थल की खूबसूरती को...
होशियारपुर(अमरेन्द्र): होशियारपुर में स्थित लगभग 500 साल पुराना इतिहास अपने में समेटे रानी की समाधि केंद्र व राज्य सरकार की बेरुखी की वजह से अब खंडहर में तबदील होती जा रही है। डेरा बाबा चरण शाह परिसर के साथ लगते करीब एक कनाल रकबे में फैले रानी की समाधि स्थल की खूबसूरती को चार चांद लगाने वाले ऐतिहासिक स्मारक लगातार उपेक्षा का दंश झेलते रहने से अब जर्जर हो चुके हैं और उनकी ईंटें जहां दरक रही हैं, वहीं कांगड़ा शैली की तर्ज पर बना बड़ा गुंबद व चारों ही मीनारों में दरारें पड़ चुकी हैं।स्मारकों का संरक्षण करने वाली संस्था भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इनकी सुध नहीं ले रहा है। ऐसे में शहर वासियों के मन में डर है कि कहीं यह ऐतिहासिक धरोहर इतिहास बनकर न रह जाए।
क्या है रानी के समाधि स्थल का इतिहास
गौरतलब है कि होशियारपुर में स्थित इस प्राचीन व ऐतिहासिक धरोहर के बारे में आज की युवा पीढ़ी को कोई जानकारी नहीं है। आज से करीब 500 साल पूर्व कपूरथला रियासत की रानी उदासीन संप्रदाय के प्रवर्तक श्रीचंद जी महाराज के शिष्य बाबा फूल शाह जी महाराज की अनन्य भक्त थीं। एक बार जब वह बाबा जी के दर्शन करने होशियारपुर आईं तो पता चला कि बाबा फूल शाह जी इस दुनिया को छोड़ चुके हैं।
इस बात का पता चलते ही रानी इतनी व्यथित हो गईं कि अन्न-जल का त्याग कर बाबा जी के धूने वाले स्थल के पास ही प्राण त्याग दिए। रानी की इच्छानुसार कपूरथला रियासत की तरफ से इसी स्थान पर अंतिम संस्कार करने के पश्चात उनके समाधि स्थल की दीवारों व छतों पर कांगड़ा व नानकशैली की दुर्लभ चित्रकारी करवाई गई। उदासीन संप्रदाय के जानकारों के अनुसार रानी के समाधि स्थल के निचले हिस्से में बने छोटे-छोटे गुफानुमा कमरे, जिसे स्थानीय भाषा में भौरा कहा जाता है, में संत समाज एकांत में रह तपस्या में लीन रहा करता था।
बेहतरीन वास्तुकला का है उदाहरण
करीब 500 साल पुराना रानी का समाधि स्थल अब समय की मार की वजह से खंडहर में बदलता चला जा रहा है। समाधि स्थल के अंदर दीवरों व छतों पर कुदरती रंगों से कांगड़ा शैली से बनी दुर्लभ चित्रकारी अब जहां अपना अस्तित्व खो चुकी है, वहीं गुंबद व मीनारें कभी भी गिरने को तैयार हैं। करीब एक दशक पहले तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन मंत्री अंबिका सोनी की पहल पर इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण के लिए योजना बनी थी लेकिन संरक्षण का काम हो नहीं सका। योजना यह भी बनी थी कि संरक्षण का काम इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हैरिटेज (इंटैक) से कराया जाए लेकिन बात सिरे नहीं चढ़ पाई।