Edited By Updated: 23 Feb, 2017 11:19 AM
इनैलो की तरफ से 23 फरवरी को एस.वाई.एल. नहर खोदने की घोषणा और सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को दिए आदेश से आने वाले दिनों में सियासत और गर्माएगी। वहीं 11 मार्च के बाद सत्ता में आने वाली सरकार भी इस आग के सेंक से बची नहीं रहेगी।
जालंधरःइनैलो की तरफ से 23 फरवरी को एस.वाई.एल. नहर खोदने की घोषणा और सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को दिए आदेश से आने वाले दिनों में सियासत और गर्माएगी। वहीं 11 मार्च के बाद सत्ता में आने वाली सरकार भी इस आग के सेंक से बची नहीं रहेगी। इनैलो की घोषणा के मद्देनजर पंजाब सरकार की तरफ से जबरदस्त घेराबंदी की गई है। जहां पंजाब में नहर की सुरक्षा के लिए पांच हजार पुलिस कर्मियों के अलावा अद्र्ध-सैनिक बलों की 15 कंपनिया तैनात की गई हैं। वहीं हरियाणा में भी अर्ध-सैनिक बलों की 5 कंपनियां तैनात हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पंजाब सरकार के पास क्या रास्ता बचा इस पर एक्सपर्ट की राय मानें तो सुप्रीम कोर्ट का यह कोई आदेश नहीं है, केवल ऑब्जर्वेशन है। अभी 2 मार्च को इस पर बहस होनी बाकी है। आगे जाकर पंजाब सरकार क्यूरेटिव पटीशन भी डाल सकती है।
न हरियाणा मान रहा न सुप्रीम कोर्ट पंजाब की बात‘
न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी’ ये शब्द पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने राज्य विधानसभा में गत 10 मार्च को उस समय कहे थे जब उन्होंने सतलुज-यमुना ङ्क्षलक (एस.वाई.एल.) कैनाल के लिए किसानों से एक्वायर की गई 5,376 एकड़ जमीन उसके मालिकों को लौटाने का बिल सदन में पेश किया था। मुख्यमंत्री का दावा था कि इस विवादित प्रोजैक्ट के लिए ली गई जमीन को उनके मालिकों को वापस करने से यह समस्या जड़ से खत्म हो गई है लेकिन तब से लेकर अब तक के घटनाक्रम ने दिखा दिया है कि यह समस्या अब भी ज्यों की त्यों ही बनी हुई है। हालांकि पंजाब ने भू-मालिकों को जमीन वापस कर रैवेन्यू रिकार्ड में भी दिखा दिया है कि जमीन पर अब सरकार का कब्जा नहीं रहा इसलिए सरकार एस.वाई.एल. का निर्माण कार्य शुरू नहीं कर सकती परंतु इस बात को न तो हरियाणा और न ही सुप्रीम कोर्ट मान रहा है।
एस.वाई.एल. समस्या की जड़ वर्ष 1966 में पंजाब के भाषा के आधार पर हुए पुनर्गठन से हुई थी। पंजाब हमेशा से ही रावी-ब्यास नदी जल हरियाणा को दिए जाने के विरुद्ध रहा है। उसका कहना है कि राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त रायपेरियन पिं्रसीपल के आधार पर हरियाणा का पंजाब की नदियों के पानी पर कोई हक नहीं है। उधर हरियाणा का कहना है कि वह पंजाब का उत्तराधिकारी राज्य है, इसलिए उसका पंजाब की नदियों के जल पर उतना ही अधिकार है जितना पंजाब का है।
पंजाब में चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन का माहौल बना हुआ है। वहीं 11 मार्च को मतगणना के पश्चात जो भी पार्टी सत्ता में आई उसे सबसे पहले एस.वाई.एल. की समस्या से जूझना होगा। हरियाणा के इनैलो द्वारा 23 फरवरी को इस्माइलाबाद में एस.वाई.एल. नहर की जबरदस्ती खुदाई करने के ऐलान से पंजाब व हरियाणा में टकराव की स्थिति बन गई है। उधर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक बार फिर पंजाब को आदेश दिया है कि दोनों राज्यों के बीच एस.वाई.एल. नहर का निर्माण अवश्य किया जाए।
अंतर्राज्यीय बैठक
केंद्र सरकार ने वर्ष 1955 में पंजाब, राजस्थान व जम्मू-कश्मीर की अंतर्राज्यीय बैठक में निर्धारित किया था कि रावी-ब्यास में कुल 15.85 मिलियन एकड़ फीट (एम.ए.एफ.) पानी उपलब्ध है जिसे राजस्थान (8 एम.ए.एफ.), पंजाब (7.2 एम.ए.एफ.) और जम्मू-कश्मीर (0.65 एम.ए.एफ.) में बांट दिया गया है। हरियाणा के अस्तित्व में आने के बाद केंद्र ने पंजाब के विरोध के बावजूद वर्ष 1976 में नोटीफिकेशन जारी कर हरियाणा को 3.5 एम.ए.एफ. जल एलोकेट कर दिया जिसे पंजाब से हरियाणा ले जाने के लिए एस.वाई.एल. कैनाल बनाने की योजना तैयार की गई।
निर्माण कार्य
8 अप्रैल 1982 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पटियाला जिले के कपूरी गांव में 214 किलोमीटर लंबी एस.वाई.एल. के लिए जमीन में टक लगा कर निर्माण कार्य का विधिवत उद्घाटन किया। एस.वाई.एल. की 122 कि.मी. लंबाई पंजाब में तथा 92 कि.मी. हरियाणा में है। इससे पहले इंदिरा गांधी ने पंजाब के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह, हरियाणा के मुख्यमंत्री भजन लाल तथा राजस्थान के मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता भी करवाया।
मामला लंबित
तब से लेकर अब तक मामला अदालतों का ही चक्कर लगा रहा है। वर्ष 2002 तथा 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एस.वाई.एल. पर निर्माण कार्य पूरा करने के आदेश दिए लेकिन पंजाब ने विधानसभा में पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमैंट एक्ट पारित कर एस.वाई.एल. के भविष्य पर बड़ा प्रश्रचिन्ह लगा दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस एक्ट को गैर-संवैधानिक करार दिए जाने के बाद यह मामला एक बार फिर गर्मा गया है। पंजाब द्वारा एस.वाई.एल. के लिए एक्वायर की गई जमीन को उनके मालिकों को लौटाने तथा इसे डी-नोटीफाइड किए जाने के बाद यह मामला और पेचीदा हो गया है।
अकाली मोर्चा
रावी-ब्यास में उपलब्ध जल का एक बार फिर से आकलन कर 17.17 एम.ए.एफ. निर्धारित किया गया जिसे पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच क्रमश: 4.22 एम.ए.एफ., 3.5 एम.ए.एफ. और 8.6 एम.ए.एफ. बांट दिया गया। अकाली दल ने एस.वाई.एल. के निर्माण के विरोध में कपूरी में मोर्चा आरंभ कर दिया।
राजीव-लौंगोवाल समझौता
जुलाई 24, 1985 को प्रधानमंत्री राजीव गांधी तथा अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लौंगोवाल के बीच एक समझौता हुआ जिसके तहत अकाली दल ने एस.वाई.एल. पर निर्माण कार्य पुन: आरंभ करना मान लिया। सुप्रीम कोर्ट के जज वी. बालाकृष्णा इराडी ने 1987 में पंजाब व हरियाणा दोनों के हिस्से को बढ़ा कर क्रमश: 5 एम.ए.एफ. व 3.83 एम.ए.एफ. कर दिया।