Edited By Updated: 20 Feb, 2017 11:54 AM
किसी भी देश के सर्वपक्षीय विकास, खुशहाली व अमन के लिए सबसे बड़ी रुकावट बेरोजगारी, बढ़ रही आबादी, भ्रष्टाचार व आर्थिक संकट होता है। इनमें से यदि हम निष्पक्षता से देखें तो बेरोजगारी ही प्रमुख कारण बनती है ...
बरनाला (विवेक सिंधवानी, गोयल): किसी भी देश के सर्वपक्षीय विकास, खुशहाली व अमन के लिए सबसे बड़ी रुकावट बेरोजगारी, बढ़ रही आबादी, भ्रष्टाचार व आर्थिक संकट होता है। इनमें से यदि हम निष्पक्षता से देखें तो बेरोजगारी ही प्रमुख कारण बनती है क्योंकि जब पढ़े-लिखे व अनपढ़ युवकों को रोजगार नहीं मिलेगा तो वे भटक जाते हैं। खाली मन शैतान का घर बनकर देश की अमन-शांति व विकास के लिए ही खतरा नहीं बनता बल्कि समाज व परिवार के लिए भी संकट का कारण बन जाता है। इसलिए बेरोजगारी को किसी देश के लिए सबसे बड़ा श्राप कह सकते हैं।ये विचार यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष अश्विनी कुमार आशु भूत ने बेरोजगारी बारे परिचर्चा करते हुए प्रकट किए। भारत में भी बेरोजगारी का मुख्य कारण आबादी में विस्फोटक वृद्धि होना व रोजगार के साधन सीमित होना कहा जा सकता है जिसके लिए सरकारी, गैर-सरकारी प्रबंध को इस बारे सोचना पड़ेगा।
भारत में हर चढ़ते सूरज 65 हजार बच्चे पैदा होते हैं : धौला
कांग्रेस पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष जगजीत सिंह धौला का कहना है कि यू.एन.ओ. की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर चढ़ते सूर्य 65 हजार बच्चे पैदा होते हैं इसीलिए तेजी से बढ़ रही आबादी को रोकने व पैदा होने वाले बच्चों के लिए रोजगार के साधन उपलब्ध करवाने के लिए जितना समय सरकार भविष्य की योजनाएं सही रूप में तैयार नहीं करेगी उतना समय हम अमरबेल की तरह बढ़ रही बेरोजगारी पर काबू नहीं पा सकेंगे।
बेरोजगारों का गुस्सा देश के लिए बड़ा खतरा : चौधरी
समाज सेवी राजू चौधरी का कहना है कि विकास की मध्यम रफ्तार लघु व कुटीर उद्योगों के प्रति सरकार की लापरवाही, दोष पूर्ण शिक्षा प्रणाली, कार्यकारों में गति की कमी व राजनीतिक भ्रष्टाचार के अलावा दर्जनों ही अन्य अनैतिक कार्य बेरोजगारी के फैलाव में सहायक बन हरे हैं। यदि समय रहते इसकी तरफ ध्यान न दिया तो बेरोजगारों का गुस्सा कभी भी अशांति व अहिंसा का रूप धारण करके देश के लिए बड़े खतरे का कारण बन सकता है।
बेरोजगारी ने युवकों में अनिश्चित भविष्य व अनुशासनहीनता पैदा करनी शुरू की : शर्मा
रोटरी क्लब के अध्यक्ष राज कुमार शर्मा का कहना है कि बेरोजगारी ने युवकों में अनिश्चित भविष्य व अनुशासनहीनता पैदा करनी शुरू कर दी है जोकि लोक राज्य सिस्टम के लिए खुला चैलेंज कही जा सकती है। आज अनगिनत पढ़े-लिखे व अनपढ़ भारतीय रोजगार की प्राप्ति के लिए दर-दर खाक छानते फिरते हैं। सरकारी मशीनरी व समाज सेवी संस्थाओं का प्राथमिक कत्र्तव्य बेरोजगारी के बारे में चिंतित होकर इसके हल के लिए आगे आना होगा।
भारत में बेरोजगारी के 3 रूप हैं : काका
बरनाला वैल्फेयर क्लब के अध्यक्ष राकेश कुमार काका ने कहा कि बेरोजगारी विश्व व्यापी व खास तौर पर औद्योगिक देशों में चक्करीय रूप में व्यापक है। भारत में इसके 3 रूप देखने को मिलते हैं। मौसमी, छुपी हुई व अलोप। ये तीनों रूप हम ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में प्रत्यक्ष रूप में देख सकते हैं। 2005 के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में पढ़े-लिखे व अनपढ़ बेरोजगारों की सैना 17 करोड़ से बढ़ चुकी थी। अमरबेल की तरह बढ़ रही बेरोजगारी के विकराल रूप के दर्शन हम किसी भी सरकारी या गैर-सरकारी अदारे में नौकरी के लिए बुलाए 10 उम्मीदवारों की जगह 20 हजार के पहुंचने को भलीभांति देख सकते हैं।