Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Sep, 2017 09:44 AM
वैसे तो अब प्रत्येक धर्म में सियासत भी हो रही है व धंधा भी, जो आश्चर्यजनक है, परन्तु दुनिया भर में सत्कार कमाने वाली दस्तार को भी
भटिंडा (बलविंद्र): वैसे तो अब प्रत्येक धर्म में सियासत भी हो रही है व धंधा भी, जो आश्चर्यजनक है, परन्तु दुनिया भर में सत्कार कमाने वाली दस्तार को भी धंधाकारों ने अपने धंधे में शामिल कर लिया है, जो कि शर्म की बात भी है, क्योंकि सिख नेता इस तरफ ध्यान ही नहीं दे रहे।
..........पर किसी को मत बताना कि पंजाब में दस्तार सिखाने के भी पैसे लेते हैं!
‘‘मेरे कालेज के गेट से निकलते एक युवक को देखा कि उसने उघड़-दुघड़ जैसी पगड़ी बांधी हुई थी। मुझे अच्छा नहीं लगा तो मैंने कहा कि भाई अगर पगड़ी बांधना सीख लें तो पगड़ी जरूर अच्छी लगेगी। अगर कहो तो कालेज में रोज मैं ही सिखा दिया करूंगा। फिर उसके शब्दों ने मुझे निराश कर दिया कि ‘‘बिल्कुल सीख लेंगे, लेकिन पहले बताओ कि पैसे कितने लोगो’’ मैंने कहा कि तुम पंजाबी तो नहीं फिर भी पगड़ी बांधना सीखोगे? एक और बात आपको किसने कहा दिया कि दस्तार सिखाने के भी पैसे लिए जाते हैं। उस बिहारी ने दस्तार को ताज बताते हुए एक ही सांस में मुझे आधा दर्जन ऐसे स्थान बता दिए जहां दस्तार सिखाने की भी मोटी रकम वसूल की जाती है। और तो और विवाह-शादी पर दस्तार बंधवाने के लिए आते युवकों से भी कई सिख युवक मोटी कमाई कर रहे हैं। मैंने उसे अपने गले से लगाते हुए कहा कि भाई मैं तुझे दस्तार तो नि:शुल्क ही सिखा दूंगा, पर किसी को बाहर जाकर मत बताना कि मेरे पंजाब में दस्तार सिखाने के भी पैसे लिए जाते हैं। ’’
ये हैं दस्तार के धंधाकार सिख
अजीत रोड पर दूसरे जिलों से एक युवक बहुत प्रसिद्ध है, जिसकी अकादमी में दस्तार सिखाने के लिए 12 दिनों के 1500 रुपए लिए जाते हैं। यहां पर विवाह-शादी के अवसर पर दूल्हे को घर जा कर दस्तार बांधने का रेट 2151 रुपए है जबकि अन्यों को एक बार दस्तार बांधने की फीस 200 रुपए प्रति व्यक्ति वसूल की जाती है। दस्तार से कमाई करने वाले यह लोग बहुत ही चालाक भी हैं, जो इसको सिख धर्म की सेवा करार देकर बड़े-बड़े लाभ कमा चुके हैं। इनका इंचार्ज तो इसी आड़ में जर्मनी इत्यादि देशों की सैर भी कर चुका है।
ये हैं सिख धर्म के निष्काम सेवक
गुरुद्वारा साहिब सिंह सभा भटिंडा में एक अकादमी करीब 5 वर्षों से चल रही है, जहां जगतार सिंह, सोनू व दीप सिंह निष्काम सेवा कर रहे हैं। दीप सिंह, जिसकी आयु 18 वर्ष है, का कहना था कि दस्तार के पैसे लेना सिखी बेचने के बराबर है। एक सच्चा सिख जान दे सकता है, पर अभी सिखी को नहीं बेचता। दीप सिंह ने दुख प्रकट किया कि जो युवक आजकल दस्तार के पैसे ले रहे हैं, उन्होंने दस्तार की सिखलाई गुरुद्वारा साहिब से ली थी जो अब सिख धर्म के नाम पर पैसे कमा रहे हैं ,जोकि अति निंदनीय है।
निंदनीय तो है, पर क्या कर सकते हैं : संत दादूवाल
संत बलजीत सिंह दादूवाल का कहना था कि दस्तार बांधने की कमाई खाना बहुत ही निंदनीय है, पर वह कुछ भी नहीं कर सकते। क्योंकि प्रत्येक धार्मिक कार्य में पैसे लेने की रीति-सी बन गई है। दस्तार सिखाना सबसे बड़ी सेवा है क्योंकि युवक वर्ग भटक रहा है, अगर यह सेवा की जाए तो बहुत से युवक सिखी के रास्ते पर चलने के लिए तैयार हैं परन्तु ऐसा नहीं हो रहा। उन्होंने दस्तार की कमाई खाने वालों के लिए यह शर्म की बात कही। उन्होंने समूह सिख युवकों को अपील की कि वह दस्तार के धंधाकारों को जवाब देने के लिए एक-दूसरे को दस्तार बांधनी खुद सिखाएं ताकि आम युवक व लोग इन लोगों का शिकार न बनें।