पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में रोजाना उतार-चढ़ाव से ट्रांसपोर्टर परेशान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jan, 2018 10:11 AM

transporter disturbs daily prices of petroleum products

पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में रोजाना उतार-चढ़ाव से ट्रांसपोर्टर परेशान हैं। पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में रोजाना फेरबदल होने से ट्रांसपोर्टर यह अनुमान लगाने में असफल रहे हैं कि उन्हें कितना मालभाड़ा वसूल करना है।

जालंधर (धवन): पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में रोजाना उतार-चढ़ाव से ट्रांसपोर्टर परेशान हैं। पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में रोजाना फेरबदल होने से ट्रांसपोर्टर यह अनुमान लगाने में असफल रहे हैं कि उन्हें कितना मालभाड़ा वसूल करना है। अभी उन्हें हर सप्ताह मालभाड़े को लेकर अनुमान लगाना पड़ता है। गत वर्ष 16 जून तक पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतें एक अवधि में ही तय होती थीं। 1 जून 2017 के बाद से डीजल की कीमतों में लगभग 5 रुपए प्रति लीटर की बढ़ौतरी हो चुकी है। 1 जून को डीजल की कीमत राजधानी दिल्ली में 57.13 रुपए प्रति लीटर हुआ करती थी परन्तु अब यह दाम बढ़कर 62 रुपए प्रति लीटर को पार कर चुके हैं। 

 

ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के बाल मलकीत सिंह ने बताया कि रोजाना पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में फेरबदल अर्थव्यवस्था तथा हमारे समाज के लिए भी उचित नहीं है। नोटबंदी के बाद से पहले ही ट्रांसपोर्टरों का धंधा चौपट हो चुका है क्योंकि नोटबंदी व जी.एस.टी. के बाद इंडस्ट्री व व्यापार की हालत काफी खस्ता है। एसोसिएशन ने मांग की कि जून 2007 में कच्चे तेल के दाम 68.19 डालर प्रति बैरल हुआ करते थे। उस समय दिल्ली में डीजल की कीमत 30.76 रुपए प्रति लीटर हुआ करती थी। 


जुलाई 2008 में कच्चे तेल की कीमत 132.47 डालर प्रति बैरल को छू गई। उस समय डीजल के दाम 34.86 रुपए प्रति लीटर थे जोकि मौजूदा भाव की तुलना में आधे थे। अब कच्चे तेल के दाम 68.51 डालर प्रति बैरल चल रहे हैं तो डीजल के दाम 62.25 रुपए प्रति लीटर हो चुके हैं। इस तरह डीजल की कीमतों में जमीन-आसमान का अंतर आ चुका है जिसकी तरफ केंद्र की भाजपा सरकार को ध्यान देना चाहिए। 


उन्होंने कहा कि 85 प्रतिशत छोटे ट्रक ट्रांसपोर्टर काम करते हैं। उनकी हालत काफी खराब हो चुकी है। उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा कि दक्षिण पूर्वी एशिया में केवल भारत ही ऐसा देश है जहां पर पैट्रोल व डीजल के दाम सबसे अधिक हैं। पड़ोसी देशों को भी कच्चा तेल एक समान भाव से मिल रहा है परन्तु इन देशों की सरकारों ने कच्चे तेल पर टैक्सों का ज्यादा बोझ नहीं डाला हुआ है। भारत में पिछले समय में केंद्र की भाजपा सरकार ने कई बार  एक्साइज ड्यूटी में बढ़ौतरी की परन्तु उस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव कम थे। अब कच्चे तेल के भाव बढ़ रहे हैं तो केंद्र सरकार को एक्साइज ड्यूटी में कमी लाने की तरफ ध्यान देना चाहिए। 

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