Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Aug, 2017 09:22 AM
‘अंधा बांटे रेवडिय़ां मुड़ मुड़ अपनों को दे’ कहावत गुरु नानक देव विश्वविद्यालय प्रबंधन पर सटीक बैठती है।
अमृतसर(संजीव): ‘अंधा बांटे रेवडिय़ां मुड़ मुड़ अपनों को दे’ कहावत गुरु नानक देव विश्वविद्यालय प्रबंधन पर सटीक बैठती है। हर वर्ष की तरह इस बार भी कैंपस की होस्टल मैसों के ठेके पुराने ठेकेदारों को देकर जहां यूनिवर्सिटी प्रबंधन व ठेकेदारों के बीच की सांठ-गांठ के संकेत मिले हैं, वहीं कई वर्षों से मैसों व कैंटीनों के ठेका आबंटन में हो रहे गड़बड़ी के भी सामने आने की संभावना दिखाई दे रही है। पंजाब केसरी की टीम द्वारा जब कैंपस की मैसों के ठेका आबंटन संबंधी जमीनी स्तर पर खोजबीन की गई तो बहुत से हैरानीजनक पहलू सामने आए।
इसमें नियम तो बनाए गए थे, मगर उन्हें तोड़ा गया। होस्टल मैसों के ठेकों की सूची के जारी होने से पहले ही पुराने ठेकेदार इस बात का दावा कर रहे थे कि इस बार भी ठेका उन्हीं को मिलेगा। मगर हो सकता है कि थोड़ी बहुत राशि बढ़ानी पड़े। अब दूसरी ओर कैंपस की कैंटीनों के पुराने ठेकेदार भी यही दावा कर रहे हैं कि इस बार भी ठेका उन्हीं को मिलना है, जबकि अभी तक उनकी लिस्ट जारी नहीं हुई। होस्टल मैसों के ठेका आबंटन की प्रक्रिया से पारदर्शिता जैसे शब्द तो दिखाई ही नहीं दिए, जब इस बारे में प्रबंधन से बात की गई तो ठेका आबंटन की प्रक्रिया को उन्होंने सही ठहराया, जबकि प्रबंधन द्वारा सही ठहराया जाने वाला ठेका आबंटन कहीं न कहीं भ्रष्टाचार की ओर ईशारा कर रहा है। इसके तथ्य सामने लाने के लिए निष्पक्ष जांच की जरूरत है।
विद्यार्थियों की है खाने पर शिकायत
जब विश्वविद्यालय के होस्टलों में रह रहे विद्यार्थियों से मिलने वाले खाने संबंधी बातचीत की गई तो उन्होंने इसका स्तर बहुत बढिय़ा नहीं बताया। उनका कहना था कि अधिक मात्रा में खाना बनने के कारण क्वालिटी पूरी तरह से नहीं आ पाती। कुछ एक ने तो यहां तक कहा कि रात का खाना कैंटीन या बाहर से खाना ही बेहतर है। कई बार इस बारे में वह मैस के ठेकेदार व प्रबंधन को शिकायत भी करते हैं मगर उसका असर कुछ दिन ही रहता है। यहां यह वर्णनीय है कि मैस की डाइट 23 रुपए में फिक्स की गई है जिसे हर छात्र को अनिवार्य रूप से देना होता है।
ठेका आबंटन की प्रक्रिया
हर वर्ष की तरह इस बार भी होस्टल मैसों व कैंपस कैंटीनों के ठेके देने के लिए चाहवान उम्मीदवारों हेतु टैंडरों संबंधी विज्ञापन जारी किए गए, जिसके उपरांत 200 व 1000 हजार रुपए की सरकारी फीस लेकर टैंडर जारी हुए। उम्मीदवारों द्वारा ठेका हासिल करने के लिए अपनी-अपनी कोटेशनें भर कर यूनिवर्सिटी प्रबंधन को दे दी गईं।
मगर इस पूरी प्रक्रिया की उस समय बलि चढ़ गई जब यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने सभी उम्मीदवारों को नैगोसेशन के लिए बुलाया और पुराने ठेकेदारों द्वारा बढ़ाए गए रेटों को पास कर दिया। यहां एक बार फिर पारदर्शिता को भारी ठेस लगी, जबकि दूसरी ओर यूनिवर्सिटी प्रबंधन इस पर क्वालिटी व सुरक्षा का हवाला देकर पर्दा डालने का प्रयास कर रहा है।
ठेका आबंटन की इंटरव्यू भी संदिग्धता के घेरे में
सील कोटेशन लेने के उपरांत ठेका आबंटन के लिए यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने चाहवान उम्मीदवारों को इंटरव्यू के लिए बुलाया तो जरूर, मगर यह इंटरव्यू भी शक के घेरे में है। जहां डीन स्टूडैंट वैल्फेयर द्वारा कोटेशनों में भरी गई राशि को बढ़ाने के लिए तो कहा गया, मगर किसी भी उम्मीदवार से उसके द्वारा बढ़ाई जा रही राशि को लिखित रूप से नहीं लिया गया। अब पुराने ठेकेदारों द्वारा दी जा रही ठेका राशि किन मापदंडों पर तय की गई यह भी यूनिवर्सिटी प्रबंधन के लिए एक गंभीर जांच का विषय है। होस्टल मैसों व कैंटीनों के ठेकों संबंधी की गई खोजबीन के दौरान बहुत से सुलगते सवाल सामने आए, जो मिलीभगत व भ्रष्टाचार के संकेत दे रहे थे, मगर इनकी सच्चाई जांच के उपरांत ही सामने आ सकती है।