Edited By Updated: 23 Mar, 2017 12:23 AM
अकाली सरकार के समय माइनिंग माफिया की ओर से अवैध वसूली को कांग्रेस ने .....
जालंधर(पुनीत): अकाली सरकार के समय माइनिंग माफिया की ओर से अवैध वसूली को कांग्रेस ने जोर-शोर से उठाया, लेकिन अब कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भी अवैध वसूली बंद नहीं हो पाई जिसके चलते राज्य की जनता को महंगी रेत-बजरी खरीदनी पड़ रही है। कांग्रेस की सरकार आने के बाद लोगों में उम्मीद जगी थी कि रेत माइनिंग माफिया पर शिकंजा कसा जाएगा और राज्य के लोगों को सस्ती रेत-बजरी उपलब्ध हो पाएगी लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है।
पठानकोट में विभिन्न स्थानों पर लगे क्रशरों के पास पक्के माल पर रॉयल्टी वसूल की जा रही है, जबकि नियमों के मुताबिक कच्चे माल पर ही रॉयल्टी वसूल की जा सकती है। जानकार बताते हैं कि कच्चे माल पर 120 रुपए प्रति सैंकड़ा रॉयल्टी वसूलने का प्रावधान है लेकिन इसके बावजूद पक्के माल पर प्रति सैंकड़ा 350 से लेकर 400 रुपए व इससे अधिक की वसूली की जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक एक ट्रक यदि 10 सैंकड़े माल भरकर लेकर जाता है तो उससे 4,000 रुपए व इससे अधिक की वसूली की जा रही है।
वहीं यदि 16 टायर वाले बड़े ट्रक की बात की जाए तो उससे 8,000 रुपए की गुंडा वसूली की जाती है। माइनिंग माफिया ने वाहनों के वापस जाने वाले रास्ते में स्थायी नाके लगा रखे हैं और क्रशरों से माल भरकर वापस जाने वाले वाहनों से गुंडा वसूली की जा रही है। ट्रकों से अवैध वसूली करने वाले वाहन चालकों को किसी तरह की पक्की पर्ची नहीं देते। रुपयों की मांग करने वाले गुंडा तत्वों ने अपने स्थायी नाकों में 10 से 15 युवकों को बिठा रखा है और विरोध करने वालों से गलत व्यवहार किया जाता है। क्रशर मालिकों का कहना है कि उन्हें इस अवैध वसूली से निजात दिलाई जाए, क्योंकि इस तरह की वसूली से जहां जनता को महंगे दामों में रेत-बजरी खरीदनी पड़ रही है वहीं इससे उनके कामकाज पर भी प्रभाव पड़ रहा है।
कच्ची पर्ची देकर करते हैं वसूली
गुंडा वसूली का पता पर्ची देखकर ही लग जाता है क्योंकि जो पर्ची वाहन चालकों को दी जाती है उसमें न तो किसी फर्म का नाम अंकित होता है और न ही उस पर किसी का नाम या पता लिखा है। गुंडा तत्वों द्वारा की जा रही उक्त वसूली को लेकर यदि प्रशासन द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाएं तो लोगों को बड़ी राहत मिल सकती है।
हिमाचल की पॉलिसी दे सकती है राहत
पंजाब में कांग्रेस सरकार बनने के बाद दूसरे राज्यों से बढिय़ा सिस्टम को अपनाने की बातें हो रही हैं, इसी क्रम में माइनिंग पर हिमाचल की पॉलिसी अपना कर जनता के साथ-साथ क्रशर मालिकों को राहत दी जा सकती है। हिमाचल में ठेकेदारी सिस्टम नहीं है, वहां क्रशर मालिकों को जमीन अलाट कर दी जाती है और क्रशर द्वारा इस्तेमाल की गई बिजली के मुताबिक वसूली की जाती है। रूटीन में एक क्रशर का महीने का 1 से डेढ़ लाख रुपए का बिजली का बिल आता है और सरकार चाहे तो बिजली बिलों में माइनिंग चार्जिस लगा कर राशि वसूल कर सकती है।