Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Sep, 2017 10:08 AM
अध्यापक विद्यार्थियों के जीवन के वास्तविक कुम्हार होते हैं जो न सिर्फ हमारे जीवन को आकार देते हैं, बल्कि हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम पूरी दुनिया में अंधकार होने के बाद भी प्रकाश की तरह जलते रहें।
होशियारपुर(अमरेन्द्र): अध्यापक विद्यार्थियों के जीवन के वास्तविक कुम्हार होते हैं जो न सिर्फ हमारे जीवन को आकार देते हैं, बल्कि हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम पूरी दुनिया में अंधकार होने के बाद भी प्रकाश की तरह जलते रहें।
हमारे जीवन में माता-पिता से ज्यादा अध्यापक की भूमिका होती है क्योंकि वो हमें सफलता की ओर मोड़ते हैं। अध्यापक अपने जीवन में खुश और सफल तभी होते हैं जब उनका विद्यार्थी अपने कार्यों से पूरे देश व समाज में नाम कमाता है। अपने अध्यापकों के इस महान कार्यों के बराबर हम उन्हें कुछ भी नहीं लौटा सकते।
हमें पूरे दिल से ये प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम अपने अध्यापक का सम्मान करेंगे क्योंकि बिना अध्यापक के इस दुनिया में हम सभी अधूरे हैं। हमें अपने अध्यापकों से मिले सभी अच्छे सुविचारों का पालन करना चाहिए यही उनके लिए सबसे बड़े सम्मान की बात है।
वहीं, देश में केरल के एर्नाकुलम के बाद सबसे अधिक साक्षर जिले में शामिल होशियारपुर के एक भी अध्यापक का नाम इस बार नैशनल अवार्ड की सूची में नहीं है। यह अलग बात है कि पंजाब शिक्षा विभाग की तरफ से आयोजित स्टेट अवार्ड की सूची में जहां होशियारपुर का दबदबा कायम रहा, वहीं पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड हो या सी.बी.एस.ई., मैरिट सूची में होशियारपुर जिले का हर साल दबदबा कायम रहा करता है।
अध्यापक ने बदल दी जीवन की सोच
गवर्नमैंट कालेज से 34 साल की सेवा के बाद रिटायर्ड हुए प्रिं. देशवीर शर्मा ने बताया कि वह हिमाचल के छोटे से गांव कांगू में 8वीं कक्षा में पढ़ाई करते समय तक अंग्रेजी विषय में काफी कमजोर विद्यार्थी थे। उन्होंने बताया कि इसी दौरान जे.बी.टी. अध्यापक रमेश चोपड़ा 15 दिनों के लिए स्कूल में आए। सिर्फ 15 दिनों में उन्होंने हमें अंग्रेजी ग्रामर में इतना पारंगत कर दिया कि बाद में मैं बी.एससी. करने के बाद 1973 में एम.ए. अंग्रेजी विषय से पढ़ाई करते हुए यूनिवॢसटी टापर बना। मैं उनकी देन को जिंदगी भर भुला नहीं सकता।
बचपन से ही साइंस के प्रति था लगाव : तिवारी
सरकारी स्कूल से बतौर रिटायर्ड हैडमास्टर स्टेट अवार्डी अध्यापक जतिन्द्र तिवारी ने कहा कि सरकारी स्कूल भूंगा में पढ़ाई के दौरान बचपन से ही साइंस के प्रति मेरा काफी लगाव था। इसी दौरान साइंस अध्यापक सुखदेव शर्मा व हैडमास्टर अमरीक सिंह द्वारा दी गई साइंस व वातावरण की बारीकियों संबंधी जानकारी ने मेरे दिल व दिमाग पर इस कदर प्रभाव डाला कि जीवन में साइंस अध्यापक बनने की ठान ली। बाद में साइंस अध्यापक बनने पर साइंस एक्टिविटी को प्रोत्साहित करते हुए अपने स्कूल के बच्चों को भी साइंस के प्रति जागरूक करने लगा।
क्लासरूम में हुआ करता था बैकबैंचर स्टूडैंट : सैनी
पावर कॉम होशियारपुर सर्कल के डिप्टी चीफ इंजीनियर एच.एस. सैनी का कहना है कि स्कूली पढ़ाई के दौरान क्लासरूम में मैं बैकबैंचर स्टूडैंट हुआ करता था। मिडल के बाद जब सरकारी स्कूल घंटाघर में दाखिला लिया तो वहां उसके पिताजी हरबक्श सिंह अध्यापक पद पर तैनात थे। इसके बाद पिताजी ने घर व स्कूल दोनों ही जगह मुझे इस कदर प्रेरित किया कि मैं आज इस स्थान पर पहुंच पाया।