दम तोड़ रहा स्वच्छता अभियान, करोड़ों रुपए हुए बर्बाद

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Nov, 2017 09:47 AM

swach bharat abhiyan

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा जोर-शोर से देश भर में स्वच्छता अभियान 2 अक्तूबर 2014 को शुरू किया गया था, जिस पर करोड़ों रुपए खर्च भी हुए परंतु यह सिलसिला कुछ समय ही चला। अब यह अभियान दम तोड़ता जा रहा है। बठिंडा नगर निगम की ओर से भी इस अभियान के लिए...

बठिंडा (विजय): केंद्र की मोदी सरकार द्वारा जोर-शोर से देश भर में स्वच्छता अभियान 2 अक्तूबर 2014 को शुरू किया गया था, जिस पर करोड़ों रुपए खर्च भी हुए परंतु यह सिलसिला कुछ समय ही चला। अब यह अभियान दम तोड़ता जा रहा है। बठिंडा नगर निगम की ओर से भी इस अभियान के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए गए परंतु उसका नतीजा जस का तस है। एक बार फिर नगर निगम ने देश में 4 जनवरी से शुरू हो रहे स्वच्छ भारत सर्वे के लिए 7 एम्बैसेडर का चयन किया है। ज्ञात हो कि पिछले साल बठिंडा को स्वच्छ सर्वे में पंजाब में दूसरा और पूरे भारत में 132वां स्थान हासिल हुआ था। पहले स्थान की बाजी मोहाली ने मार ली थी लेकिन इस साल बठिंडा का हर आम और खास आदमी चाहता है कि शहर साफ-सफाई में पहला स्थान प्राप्त करे। इसकी आधिकारिक घोषणा भी की जा चुकी है। स्वच्छ सर्वे अभियान शुरू होने में सिर्फ एक माह ही बाकी है। इसी को ध्यान में रखते हुए शहर की जमीनी हकीकत का जायजा लेने के लिए ‘पंजाब केसरी’ की टीम ने शहर की हर कालोनी में जाकर देखना चाहा कि एक वर्ष में शहर में कितनी सफाई हुई है। कचरे का प्रबंधन किस तरह से हो रहा है। नगर निगम ने 25 लाख रुपए खर्च कर शहर में डस्टबिन लगाए थे जिनका अभी कोई नामो-निशान नहीं है। निगम ने डस्टबिन तो लगा दिए परन्तु वे जब पूरे भर जाते तो कूड़ा निकालने का कोई प्रबंध नहीं था जिस कारण महंगे डस्टबिन चोर चुरा कर ले गए। 

धूल चाट रही हैं स्वच्छता अभियान की फाइलें
स्व‘छता अभियान को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए, कई योजनाएं बनीं, बजट में भी प्रावधान रखा गया लेकिन यह कुछ समय तक ही सीमित रहा। अब इस अभियान की फाइलें धूल चाट रही हैं यहीं हाल शहर का है जहां गंदगी फैली हुई है। नगर निगम बठिंडा ने लगाए गए विज्ञापनों में साफ-सफाई के संदेश दिए हैं। इन विज्ञापनों पर भी लाखों रुपए खर्च किए गए हैं। 


शपथ तो ली पर अमल नहीं
स्वच्छता पखवाड़ा हर सरकारी कार्यालय, स्कूल, कालेजों व विश्वविद्यालयों में मनाया जाता है। अफसर कर्मचारी, टीचर, कुलपति व स्टूडैंट सभी शपथ लेते हैं कि हम अपने आसपास के वातावरण की सफाई रखेंगे। कचरे को डस्टबिन में डालेंगे, गीले कचरे को नीले डिब्बे में व सूखे को पीले डिब्बे में डालेंगे लेकिन जैसे ही स्वच्छता अभियान का पखवाड़ा खत्म होता है तो सभी इसे भूल जाते हैं। 


सफाई कर्मी अपना कत्र्तव्य भूल कर आंदोलन के रास्ते पर 
अपनी मांगों को लेकर सफाई कर्मी आंदोलन के रास्ते पर चल पड़ते हैं जबकि वे अपना कत्र्तव्य भूल जाते हैं। उनके सामने केवल एक ही बात रहती है कि उनकी मांगे मानी जाएं। उनको स्व‘छता अभियान से कुछ लेना-देना नहीं। वे तो केवल सरकारी अफसरों के आदेशों का ही पालन करते हैं। सफाई कर्मियों के कारण ही स्व‘छता अभियान को बल मिलता है परन्तु इन्हीं के कारण वह दम भी तोड़ जाता है। 


करोड़ों खर्च किए पर नगर निगम के नतीजे जीरो
प्रधानमंत्री द्वारा जब स्वच्छता अभियान की शुरूआत की गई तो नगर निगमों, नगर पालिकाओं व नगर सेवकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जिस पर करोड़ों रुपए खर्च भी किए गए। अगर इसे जारी रखा जाता तो इसके नतीजे बेहतर होने थे परन्तु नेताओं ने केवल फोटो खिंचवाने तक ही इसे सीमित रखा, जिस कारण इस अभियान को भी अन्य अभियानों की तरह ग्रहण लग गया।


पूरे भारत में बठिंडा का 132 रैंक
भले ही स्वच्छ सर्वेक्षण 2017 के अनुसार मोहाली पहले स्थान, बठिंडा दूसरे और लुधियाना तीसरे स्थान पर आता है। पूरे भारत में बठिंडा का 1&2 रैंक है, लेकिन स्व‘छता अभियान से संबंधित किसी तरह की जानकारी बङ्क्षठडा एम.सी.डी. की वैबसाइट पर उपलब्ध नहीं है। 

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