Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Aug, 2017 01:36 PM
फंड की कमी कारण 2 साल से लटका रहा माडर्न स्लाटर हाऊस बनाने का प्रोजैक्ट स्मार्ट सिटी मिशन के तहत भी सिरे नहीं चढ़ पाया।
लुधियाना (हितेश): फंड की कमी कारण 2 साल से लटका रहा माडर्न स्लाटर हाऊस बनाने का प्रोजैक्ट स्मार्ट सिटी मिशन के तहत भी सिरे नहीं चढ़ पाया। जिस योजना को लेकर अब नए सिरे से रूपरेखा तय होगी। यहां बताना उचित होगा कि नगर निगम द्वारा मौजूदा समय के दौरान चलाए जा रहे स्लाटर हाऊस पर सारा काम मैनुअल होता है। इसके मद्देनजर आधुनिक स्लाटर हाऊस लगाने की योजना तो काफी पहले बन गई थी। लेकिन पहले तो डी.पी.आर. बनाने व उसे रिवाइज करने के चक्कर में काफी समय खराब हो गया। फिर फंड की कमी कारण उस पर अमल नहीं हो पाया। इन हालातों के मद्देनजर केन्द्र सरकार ने माडर्न स्लाटर हाऊस बनाने का प्रोजैक्ट मंजूर करते हुए 2 साल पहले ग्रांट की पहली किस्त भी मंजूर कर दी। लेकिन काम पूरा करने के लिए तय की गई डैड लाइन बीतने के बाद भी अब तक टैंडर नहीं लग पाए। इसकी वजह यह है कि निगम के पास केन्द्र की ग्रांट में हिस्सा डालने के लिए पैसा नहीं है। न ही किसी प्राइवेट कम्पनी ने दिलचस्पी दिखाई। इसका हल निकालने के लिए माडर्न स्लाटर हाऊस बनाने का प्रोजैक्ट स्मार्ट सिटी मिशन में शामिल करने का फैसला किया। लेकिन कई महीने बीतने के बाद वहां से कोई मदद मिलने बारे इंकार हो गया है। इससे परेशान अफसरों ने आगामी रणनीति तय करने बारे गत दिवस मीटिंग की। इस दौरान निगम के लेवल पर ही प्रोजैक्ट पूरा करने से जुड़े पहलुओं पर चर्चा की गई। उसके आधार पर आगे का फैसला होगा।
बीमारी वाला मांस खाने को मजबूर हैं लोग
नियमों के मुताबिक मांस की बिक्री से पहले उसका मैडीकल तौर पर चैकअप होना जरूरी है लेकिन महानगर में जितने बड़े पैमाने पर मुर्गे, बकरों व सूअरों की ब्रिकी होती है, उसके मुकाबले स्लाटर हाऊस पर नाममात्र ही कटाई हो रही है। जबकि नियमों पर इस कारण अमल नहीं हो रहा कि जितने मांस की बिक्री होती है। स्लाटर हाऊस पर उतने मांस की कटाई की कैपेस्टी नहीं है। इस कारण लोग बिना मैडीकल चैकअप के खुले में काट कर बेचा जा रहा बीमारी वाला मांस खाने को मजबूर हैं।
केन्द्र ने ब्याज सहित वापस मांगी हुई है ग्रांट
जब केन्द्र में एन.डी.ए. की सरकार बनी तो फूड प्रोसैसिंग मंत्रालय हरसिमरत बादल के पास आने पर स्लाटर हाऊस का केस भेजा गया। जिसे मंजूरी देने सहित 2015 में पहली किस्त तक रिलीज कर दी गई। इसमें नगर निगम को अपना हिस्सा डालकर 2 साल के भीतर काम पूरा करने का टारगेट दिया गया। लेकिन यह डैडलाइन खत्म होने के बावजूद टैंडर ही लग पाए। यहां तक कि कंसल्टैंट के साथ एग्रीमैंट भी नहीं किया जा सका। इस पर निगम ने टाइम लिमिट बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा तो केन्द्र ने 10 फीसदी ब्याज के साथ ग्रांट ही वापस मांग ली। इस पर फैसला हुआ कि एक हफ्ते में टैंडर लगा दिए जाएंगे लेकिन उस पर अमल नहीं हो पाया।
सरकार से मदद न मिलने पर बचेगा लोन लेने का विकल्प
माडर्न स्लाटर हाऊस के निर्माण में फंड की कमी आड़े आने के मद्देनजर निगम ने प्राइवेट कम्पनियों की मदद लेने बारे भी विचार किया। लेकिन पहले किसी ने सहमति नहीं जताई, क्योंकि यहां छोटे जानवरों के मांस की कटाई होने से आमदन कम होगी और प्रोजैक्ट पर लागत ज्यादा आनी है तथा उनकी एक्सपोर्ट भी नहीं हो सकती है। बाद में यह बात सामने आई कि केन्द्र द्वारा मंजूर की गई ग्रांट में पी.पी.पी. मोड अपनाने का पहलु शामिल नहीं है। इसी बीच केन्द्र द्वारा ग्रांट वापस मांगने के मुद्दे पर लोकल बॉडीज के एडीशनल चीफ सैक्रेटरी द्वारा बुलाई मीटिंग में निगम अफसरों ने फंड की कमी का रोना रोया। इस पर सरकार ने मदद करने का भरोसा दिलाते हुए तुरंत काम शुरू करने के लिए कहा था। इसके बावजूद अब तक कोई ग्रांट नहीं आई। अगर यही हाल रहा तो निगम के पास सिर्फ लोन लेने का विकल्प ही बचेगा। इसे लेकर अफसरों को आस है कि स्लाटर हाऊस फीस में काफी इजाफा होने के चलते आमदनी बढऩे से किस्तों की वापसी होने की आसानी होगी।
कोर्ट ने भी दिए हुए हैं आदेश
आधुनिक स्लाटर हाऊस बनाने के आदेश कोर्ट ने 2012 में जारी किए थे। इसके मुताबिक मांस की कटाई खुलेआम या गंदगी के माहौल में न हो क्योंकि उससे खुले में मांस की वेस्टेज फैंकने से आसपास के लोगों को परेशानी होने सहित बिना मैडीकल टैस्ट कटाई होने के कारण खराब हालत वाला मांस खाने से लोगों पर बीमारी की चपेट में आने का खतरा मंडराता रहता है। हालांकि इन आदेशों का हवाला देते हुए निगम द्वारा अवैध रूप से मांस की कटाई करने वालों पर कार्रवाई भी की जाती है। लेकिन माडर्न स्लाटर हाऊस के अभाव में वह टारगेट हासिल नहीं हो पा रहा।
इस वजह से नहीं मिली स्मार्ट सिटी के तहत मंजूरी
-केन्द्र के एक विभाग ने पहले से दी हुई है ग्रांट
-फूड प्रोसैसिंग मंत्रालय ने मंजूर किया प्रोजैक्ट
- अब शहरी विकास मंत्रालय से मांगी गई मदद
-एक ही प्रोजैक्ट के लिए 2 विभागों से नहीं मिलती ग्रांट
-प्रोजैक्ट के लिए कंसल्टैंट भी है अलग