Edited By Updated: 24 Jan, 2017 12:44 AM
इस बार के विधानसभा चुनाव में कूदी छोटी पार्टियों ...
जालंधर(इलैक्शन डैस्क): इस बार के विधानसभा चुनाव में कूदी छोटी पार्टियों ने चुनाव लडऩे के इच्छुक उम्मीदवारों की मुराद पूरी कर दी है। यह छोटी पार्टियों का ही जलवा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में रिकार्ड 1,146 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। हालांकि इस बार आजाद उम्मीदवारों की संख्या 2 गत चुनावों के मुकाबले कम है लेकिन इसके बावजूद कुल उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है। गत चुनाव में उम्मीदवारों की संख्या 1,078 थी।
इस हिसाब से चुनाव मैदान में उम्मीदवारों के उतरने का वर्ष 2012 का रिकार्ड टूट गया है। इससे पहले 2007 में 1,043 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे जबकि 2002 में यह संख्या 923 और 1997 में 693 थी। इस बार 304 आजाद उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं जबकि गत चुनाव में 418 और 2007 में 431 उम्मीदवार मैदान में थे। इस बार चुनाव लडऩे के शौकीन उम्मीदवारों ने आजाद चुनाव लडऩे की बजाय छोटी पाॢटयों की तरफ से चुनाव मैदान में उतरने को प्राथमिकता दी है।
2007-431 उम्मीदवार मैदान में
2012-418 उम्मीदवार मैदान में
अब 304 उम्मीदवार मैदान में
चुनाव मैदान में कई नई पार्टियां
इस बार दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी (आप) तो पंजाब में मैदान में उतरी ही है, वहीं ‘आप’ से टूट कर बनी सुच्चा सिंह छोटेपुर की ‘अपना पंजाब पार्टी’, लुधियाना के बैंस ब्रदर्स की ‘लोक इंसाफ पार्टी’, पटियाला से सांसद धर्मवीर गांधी का पंजाब फ्रंट, शिवसेना जैसी कई पाॢटयां भी चुनाव में भाग्य आजमा रही हैं। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में सत्तासीन ‘तृणमूल कांग्रेस’ (टी.एम.सी.) भी चुनाव मैदान में है।
आजाद उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत कम
हालांकि पंजाब में हर चुनाव में सैंकड़ों उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरते हैं लेकिन इसके बावजूद इनमें से अधिकतर तो ‘वोट कटुआ’ (वोट तोडऩे वाले) ही साबित होते हैं। वर्ष 1985 के बाद पंजाब में हुए 6 चुनावों में अभी तक दहाई की संख्या में भी आजाद उम्मीदवार नहीं जीत सके हैं। 2002 के विधानसभा चुनाव में जरूर 9 उम्मीदवार जीत हासिल करने में सफल रहे थे, उस दौरान कुल 274 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे। इसके अलावा 1997 में 244 में से 6, 2007 में 431 में से 5 और पिछले चुनाव में 418 में से 3 आजाद उम्मीदवार चुनाव जीते थे।
छोटी पार्टियों को प्राथमिकता क्यों
चुनाव लडऩे के शौकीन उम्मीदवारों को नामांकन प्रक्रिया से लेकर चुनाव चिन्ह हासिल करने तक की प्रक्रिया के लिए वकीलों की सेवाएं लेनी पड़ती हैं और नामांकन के बाद चुनाव चिन्ह हासिल करना आजाद उम्मीदवार के लिए टेढ़ी खीर होता है लेकिन पार्टी चिन्ह पर चुनाव लडऩे की स्थिति में चुनाव चिन्ह हासिल करने की माथापच्ची से बचाव हो जाता है। लिहाजा इस बार चुनाव लडऩे के शौकीनों का रुझान छोटी पाॢटयों की तरफ ज्यादा है।