अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है शेरे पंजाब से जुड़ी यादगार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jul, 2017 03:49 PM

sher e punjab maharaja ranjit singh

अमृतसर में राम बाग के अंदर शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1819 ईस्वी में निर्मित आलीशान समर पैलेस की सरकार की बेरुखी के

रूपनगर(विजय): अमृतसर में राम बाग के अंदर शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1819 ईस्वी में निर्मित आलीशान समर पैलेस की सरकार की बेरुखी के कारण हो रही दुर्दशा के विवरण सामने आने से इतिहास व विरासत के प्रति आस्था रखने वाले लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। 

सतलुज को माना गया था सिख साम्राज्य की सीमा
इसी प्रकार रूपनगर में स्थापित महाराजा रणजीत सिंह से जुड़ी यादगार अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। 1849 में सतलुज दरिया के किनारे महाराजा रणजीत सिंह तथा लॉर्ड विलियम बैंटिक के बीच रूपनगर में एक अहम संधि हुई जिसमें सबसे अहम समझौते के दौरान सतलुज दरिया को सिख साम्राज्य की सीमा मान लिया गया। रूपनगर शहर से दक्षिण व पूर्वी हिस्सा ब्रिटिश सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया तथा पश्चिम-उत्तरी हिस्सा सिख साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। सतलुज की यह सीमा रूपनगर से लेकर तत्कालीन पंजाब तक चली गई। इस समझौते के दौरान सतलुज दरिया के किनारे ऊंची पहाड़ी पर एक चौकी स्थापित की गई जिसे सरहदी चौकी माना गया। इस चौकी पर अष्टधातु का बहुकीमती तथा कई फुट ऊंचा निशान साहिब स्थापित किया गया जिसको सिख शासन की सीमा की निशानी का प्रतीक माना गया। 

शाही मुलाकात के स्थान का मिला है दर्जा
सिखी शासन का सरहदी इलाका होने के कारण सतलुज दरिया के आसपास के इस क्षेत्र तथा शहर रूपनगर को ऐतिहासिक पक्ष से महाराजा रणजीत सिंह के जीवन के हिस्से का एक अहम अंग माना जाता रहा है। यहां की विरासत को संभालने में सरकारें बुरी तरह नाकाम रही हैं। महाराजा रणजीत सिंह व लॉर्ड विलियम बैंटिक की मुलाकात वाले स्थान को महाराजा रणजीत सिंह बाग व शाही मुलाकात स्थान का दर्जा प्रदान किया गया है जिसका निर्माण 28 जून, 1997 को तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा करवाया गया था पर यह अहम यादगार आज बुरी तरह समस्याओं का शिकार है। 

अष्टधातु का निशान साहिब गायब, लोहे का लगाकर की खानापूर्ति
सरहदी चौकी पर स्थापित अष्टधातु का निशान साहिब जो जमीन से 400 गज की ऊंचाई पर स्थापित किया गया था, कुछ अर्से से गायब हो गया है। इतिहास के प्रति जानकारी रखने वाले लोगों का तर्क है कि उक्त निशानी को किसी ने चोरी कर लिया है। कुछ बुजुर्ग लोगों का कहना है कि उन्होंने कीमती अष्टधातु से निर्मित निशान साहिब स्वयं देखा हुआ है। 19 अक्तूबर, 2001 को इस स्थान को महाराजा रणजीत सिंह नैशनल हैरीटेज हिल पार्क का दर्जा भले ही प्रदेश सरकार द्वारा दिया गया है पर इसकी संभाल के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए। लोहे का लंबा पाइप लगा कर उस पर लोहे का ही केसरी निशान साहिब लगा कर उसके सिखी शासन की निशानी होने का दावा किया गया है। उक्त स्थान तक पहुंचने का रास्ता काफी खस्ता है और इसके निर्माण को लेकर भी कोई प्रयास नहीं किया गया है। 
 

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