Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Sep, 2017 11:11 AM
जैसा भारत बनाने को लेकर शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव सहित हजारों शूरवीरों ने शहादत का जाम पिया था, वैसा भारत बनना तो
फिरोजपुर(मल्होत्रा): जैसा भारत बनाने को लेकर शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव सहित हजारों शूरवीरों ने शहादत का जाम पिया था, वैसा भारत बनना तो दूर की बात, शहीदों की याद में बनाए जाने वाले म्यूजियम को लेकर पिछले 70 साल से राजनीति हो रही है। मात्र अफसरशाही की कलम, नेताओं की जुबान और शहीदों की सोच पर पहरा देने वाले लोगों के नारे ही अभी तक गूंज रहे हैं और कार्रवाई न के बराबर है। शहीदों के शहर के नाम से जाने जाते फिरोजपुर के तूड़ी बाजार में स्थित उक्त इमारत, जहां पर शहीद-ए-आजम भगत सिंह अपने साथियों सहित अंग्रेजों का मुकाबला करने के लिए बम बनाते थे और तमाम गतिविधियां चलाते थे, इस इमारत को म्यूजियम बनाने के लिए लंबे समय से संघर्ष जारी है लेकिन 70 साल के इतिहास में कार्रवाई एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी, जितने भी डी.सी., कमिश्रर यहां आते हैं वे मात्र अखबारों की सुर्खियां बटोर कर चलते बनते हैं और यही हाल राजनेताओं का है।
क्या है इमारत का इतिहास
वर्ष 1928-29 में क्रांतिकारी डा. गया प्रसाद ने डा. बी.एस. निगम के नाम पर इस इमारत को किराए पर लिया था। इसके नीचे उन्होंने डा. बी.एस. निगम के नाम से अस्पताल खोला, जबकि ऊपरी कमरों को रिहायश के तौर पर किराए पर लिया था। यहीं पर क्रांतिकारी भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, महावीर प्रसाद सहित कई क्रांतिकारी आते रहे और इसे सीक्रेट हैडक्वार्टर के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा। इस समय उक्त इमारत पर श्री कृष्णा भक्ति सत्संग ट्रस्ट की मलकीयत है।
2015 में अकाली-भाजपा सरकार ने जारी किया था प्राथमिक नोटीफिकेशन
शहीदों की सोच पर पहरा देने वाले लोगों, संगठनों की बदौलत सरकार की नींद 2015 में टूटी और पंजाब सरकार ने इस इमारत को ऐतिहासिक धरोहर घोषित करने के लिए प्राथमिक नोटीफिकेशन जारी कर एतराज मांगे थे। इस नोटीफिकेशन पर किसी ने कोई एतराज पेश नहीं किया, जिसके बाद नियमों अनुसार इमारत को धरोहर घोषित किया जाना बनता था लेकिन सरकार प्राथमिक नोटीफिकेशन के आगे कार्रवाई नहीं कर सकी।
कहीं कांग्रेसियों के बयान भी सिर्फ कागजी दावे साबित न हों
अब प्रदेश में कांग्रेस सरकार गठित होने पर पुरातत्व विभाग का काम बेबाक नेता नवजोत सिंह सिद्धू के पास है और 12 सितम्बर को राज्य स्तरीय सारागढ़ी दिवस समारोह में वह मंच से घोषणा कर चुके हैं कि शहीदों से संबंधित इमारत को संभालने के लिए सरकार पहल करेगी। अब देखना यह होगा कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार शहीद-ए-आजम की यादगार को संभालने एवं इसे विरासत बनाने में सफल सिद्ध होती है या फिर पूर्व अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार की तरह कांग्रेसियों के बयान भी सिर्फ कागजी दावे ही साबित होते हैं।