दलित कार्ड पर फिट नहीं बैठ रहा आर.एस.एस. का हिंदू एकीकरण फार्मूला

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Jan, 2018 09:50 AM

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गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनाव की घोषणा के कुछ दिन बाद आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र है

जालंधर (राकेश बहल, सोमनाथ कैंथ): गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनाव की घोषणा के कुछ दिन बाद आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र है, जो भारतीय हैं उनके पूर्वज भी इसी भूमि के हैं, लिहाजा सब हिंदू कहलाएंगे। उन्होंने यह बयान हिंदू एकीकरण मिशन को पूरा करने के लिए दिया है लेकिन हिंदू एकीकरण का फार्मूला महाराष्ट्र में पहुंचते-पहुंचते फेल होता प्रतीत हो रहा है। बीते मंगलवार को महाराष्ट्र में दलित और मराठा के बीच हिंसक टकराव हुआ है। जात-पात के नाम पर हो रहे हिंसक टकराव के चलते दलित कार्ड का फार्मूला हिंदू एकीकरण मिशन पर फिट होता प्रतीत नहीं हो रहा है। 

 


आर.एस.एस. प्रमुख ने ऐसा क्यों कहा, इसके पीछे राजनीतिक कारण यह समझा जा रहा था कि गुजरात में कांग्रेस 3 जातियों को इक_ा करके चुनाव लड़ रही थी जबकि भाजपा वहां पर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण चाहती थी इसीलिए मतदान से पहले ङ्क्षहदू एकीकरण की बात आगे आई। 


इस समय देश के कई कोनों में आरक्षण को लेकर अलग-अलग आंदोलन चल रहे हैं। हरियाणा में जाट आरक्षण को लेकर 2008 से आंदोलन चल रहा है। राजस्थान में भी ऐसे ही हालात बने हुए हैं। हिंदू समाज की कई जातियां अब अपने लिए आरक्षण की मांग कर रही हैं। कर्नाटक में तो अलग धर्म की मांग तक उठ चुकी है। संघ हिंदुओं में हो रहे जातीय संघर्ष को लेकर ङ्क्षचतित है क्योंकि उसको ऐसा लगता है कि हिंदुओं के जातियों में विभाजित होने का नुक्सान सीधे हिंदुओं को ही होगा।  

 


संघ के इस मिशन के पीछे 2019 में सत्ता हासिल करना
संघ के हिंदू एकीकरण के पीछे मिशन 2019 है। संघ को पता है कि अगर देश का हिंदू विभाजित होता है तो इसका नुक्सान भाजपा को भी होगा। भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव में इससे नुक्सान होगा। गुजरात चुनाव में भी जातिगत राजनीति होने के कारण भाजपा की सीटें कम हुई हैं। अब जाति की आग दूसरे राज्यों में भी पहुंच रही है। भाजपा यू.पी. में हिंदू एकीकरण के कारण ही सत्ता में आई है लेकिन पिछले महीने हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में बसपा की वापसी ने भाजपा के लिए खतरे का संकेत दे दिया है। अगर भाजपा उत्तर प्रदेश में 2014 जितनी सीटें नहीं जीत पाई तो भाजपा का सत्ता में बने रहना कठिन होगा। जाति की आग महाराष्ट्र तक पहुंच गई है। महाराष्ट्र में भाजपा ने 2014 का चुनाव शिवसेना के साथ मिलकर लड़ा था। इस चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को करारी हार दी थी लेकिन अब भाजपा के शिवसेना के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि शिवसेना 2019 का चुनाव भाजपा से अलग होकर लड़े। ऐसे में जाति संघर्ष से भाजपा को नुक्सान हो सकता है। संघ को पता है कि भाजपा के सत्ता से बाहर होने से उसको भी नुक्सान होगा। 


यू.पी.ए. के कार्यकाल में संघ को घेरने की रणनीति केंद्र सरकार ने तैयार कर ली थी। हिंदू आतंकवाद को लेकर संघ पर शिकंजा कसने की तैयारी थी। अगर 2014 के चुनाव में भाजपा केंद्र में सत्ता में न आती तो इस बात की प्रबल संभावना थी कि संघ के कई प्रचारकों से एन.आई.ए. पूछताछ करती। संघ प्रमुख मोहन भागवत भी उस समय सरकार के निशाने पर थे। सूत्रों का कहना है कि संघ को यह फीडबैक मिली है कि अगर हिंदुओं का एकीकरण नहीं हुआ तो भाजपा हिंदू मतों का ध्रुवीकरण नहीं कर पाएगी क्योंकि वर्तमान में पहले से अल्पसंख्यकों ने भाजपा के प्रति ध्रुवीकरण कर लिया है। गुजरात चुनाव में तो एक बिशप ने भाजपा को वोट न देने का वीडियो मैसेज भी जारी कर दिया था।


ओ.बी.सी. पर भी खास नजर, आने वाला बजट बढ़ेगा 


गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ओ.बी.सी. कार्ड खेला, जिसमें वह सफल भी रही। इसी सफलता के चलते अब मिशन-2019 के मद्देनजर भाजपा के निशाने पर दलित वोट बैंक है। मिशन-2019 को पूरा करने के लिए भाजपा अभी से इस वोट बैंक को साधने की कोशिश में जुट गई है और इसके लिए प्लाङ्क्षनग तैयार कर ली गई है। साल 2018 के आम बजट में सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित योजनाओं के लिए आबंटन राशि में भारी वृद्धि करने की तैयारी कर रही है। इसका एक बड़ा कारण दलित मतदाताओं को अपनी तरफ  करना है।  भाजपा सूत्रों का कहना है कि भाजपा हर हाल में दलित समुदाय को अपनी तरफ  आकॢषत करना चाहती है इसलिए बजट को बढ़ाने के लिए कहा गया है। वित्त मंत्रालय ने भी सभी विभागों से कहा है कि 2018-19 के बजट आबंटन का मुख्य आधार गरीब तबकों के लिए योजनाएं ही होंगी। आम बजट फरवरी महीने में पेश होना है। 

 

ये हैं इसके राजनीतिक कारण 
दलित समुदाय के समर्थन का गणित भाजपा भुनाना चाहती है। इसलिए भाजपा हाईकमान ने यह फैसला किया है कि दलित समुदाय को अपनी तरफ आकॢषत किया जाए। दलित कार्ड खेलते हुए ही भाजपा ने दलित समुदाय के नेता को राष्ट्रपति बनाया था। अब केन्द्रीय योजनाओं में ज्यादा राशि रखकर यह साबित करने का प्रयास किया जाएगा कि भाजपा ही दलितों के हितों का ध्यान रख सकती है। 

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