Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Oct, 2017 11:31 AM
एक के बाद एक लगातार हो रही हिंदूू नेताओं की हत्याओं से न तो पंजाब पुलिस और न ही सरकार ने कोई सबक सीखा है, जबकि पंजाब केसरी की तरफ से की गई जांच में सामने आया है कि ज्यादातर हत्याएं और हमले 70 किलोमीटर के रेडियस में हुए हैं। लुधियाना में मंगलवार को...
लुधियाना/जालन्धर(महेश, ऋषि, रविंदर शर्मा): एक के बाद एक लगातार हो रही हिंदूू नेताओं की हत्याओं से न तो पंजाब पुलिस और न ही सरकार ने कोई सबक सीखा है, जबकि पंजाब केसरी की तरफ से की गई जांच में सामने आया है कि ज्यादातर हत्याएं और हमले 70 किलोमीटर के रेडियस में हुए हैं। लुधियाना में मंगलवार को दिन-दिहाड़े कत्ल किए गए भाजपा नेता रविंद्र गोसाईं के मामले में पंजाब पुलिस की लापरवाही खुलकर सामने आई है। इंटैलीजैंस बयूरो (आई.बी.) ने 15 दिन पहले ही राज्य के सभी एस.एस.पीज व पुलिस कमिश्नरों को इस बात का इनपुट भेजा था कि लुधियाना के रविंद्र गोसाईं व जालंधर के एक शिवसेना नेता पर कभी भी कातिलाना हमला हो सकता है। इसके बावजूद भाजपा नेता की सिक्योरिटी नहीं बढ़ाई गई। इसके परिणामस्वरूप आज रविंद्र गोसाईं हत्यारों का आसान टारगेट बन गए।
अंदरखाते पंजाब में धीरे-धीरे आतंकवाद चुपचाप से दोबारा सरगर्म हो रहा है। खास तौर पर यह आतंकवाद हिंदूू नेताओं को अपना निशाना बना रहा है। पिछले साल जालंधर में आर.एस.एस. नेता जगदीश गगनेजा की हत्या भी इसी आतंकी गेम का एक हिस्सा थी। हैरानी की बात यह रही कि तमाम कोशिशों के बाद भी पुलिस गगनेजा हत्याकांड के आरोपियों को अभी तक गिरफ्तार नहीं कर पाई है। मामला सी.बी.आई. के पास है, मगर सी.बी.आई. भी एक साल में हत्यारों के बारे में कोई इनपुट नहीं ढूंढ पाई है।
हत्याकांड के तरीके एक जैसे, मोटरसाइकिलों का भी एक ही रंग
बीते साल से अब तक जो हत्याएं हुई हैं उनमें कई समानताएं हैं। चाहे आर.एस.एस. के सह सरसंघ चालक जगदीश गगनेजा की हत्या हो या अमित अरोड़ा और पास्टर सलमान मसीह का मर्डर, हत्यारे हर वारदात में दो ही थे। इन सभी मामलों में हत्यारों की उम्र 20 से 30 साल के बीच है। इन हत्याओं में हत्यारे 32 बोर की रिवॉल्वर का इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि रजिन्द्र गोसाईं की हत्या में 2 रिवॉल्वर इस्तेमाल हुए हैं जिनमें एक 30 बोर का है। इन वारदातों में पीले रंग के मोटरसाइकिल इस्तेमाल हो रहे हैं।
आतंकवादी संगठन कर रहे नवयुवकों का प्रयोग
आतंकवादी संगठन ऐसे युवकों से इन आतंकवादी वारदातों को अंजाम दिला रहे हैं जिनका कोई पुराना रिकार्ड नहीं है। आतंकवाद से युवकों को जोडऩे के लिए फेसबुक सहित दूसरे सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है। इन युवकों का कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं होता है। इसलिए वारदात के बाद ये गायब हो जाते हैं।
मोटरसाइकिल से आतंक की वापसी का आगाज तो नहीं यह वारदात
आतंकवाद की शुरूआत बुलेट मोटरसाइकिलों पर आतंकी हमलों से हुई थी। तब भी पहले हिन्दू नेताओं को निशाना बनाया गया था। अब फिर मोटरसाइकिलों का प्रयोग हत्याओं के लिए किया जा रहा है। अब बुलेट मोटरसाइकिलों की जगह दूसरे मोटरसाइकिलों ने ले ली है।