Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Oct, 2017 11:29 AM
डेंगू बुखार के मामले सेहत विभाग द्वारा रिपोर्ट किए गए मामलों से कई गुना अधिक होते हैं, जबकि नैशनल वैक्टर बोर्न डिसीज कंट्रोल प्रोग्राम उपलब्ध क्लीनिकल डाटा में से सिर्फ 35 प्रतिशत डेंगू के मामलों को उजागर करता है।
लुधियाना (सहगल): डेंगू बुखार के मामले सेहत विभाग द्वारा रिपोर्ट किए गए मामलों से कई गुना अधिक होते हैं, जबकि नैशनल वैक्टर बोर्न डिसीज कंट्रोल प्रोग्राम उपलब्ध क्लीनिकल डाटा में से सिर्फ 35 प्रतिशत डेंगू के मामलों को उजागर करता है। कम आंकड़ों की रिपोर्ट से सरकार डेंगू की स्थिति पर सही फैसले लेने में विफल रहती है। ऑल इंडिया मैडीकल इंस्टी४यूट ऑफ मैडीकल साइंसिज तथा इंडियन कौंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च की संयुक्त रिसर्च से यह अहम खुलासा हुआ है।
यह अव्यवस्था सारे देश में व्याप्त है। यही कारण है कि कम दर्शाए गए आंकड़ों के कारण लोग बचाव नहीं कर पाते और डेंगू की वैक्सीन संबंधी खोज कार्यों में भी सुस्ती आती है। जनरल ऑफ इन्फैक्शन एंड पब्लिक हैल्थ के ताजा अंक में प्रकाशित उक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि डेंगू के हर मामले की रिपोर्ट को सेहत विभाग को देना यकीनी बनाया जाए। इसके लिए इलैक्ट्रॉनिक रिपोर्टिंग की भी व्यवस्था हो। इस सिलसिले में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने मंगलवार को सभी राज्यों को डेंगू को नोटीफाइएबल डिसीज घोषित करने को कहा है।
गौरतलब है कि इस सिलसिले में पंजाब में पहले ही नोटीफिकेशन जारी हो चुका है, परंतु सेहत विभाग के रवैये के कारण कई अस्पताल भी डेंगू के मामले में रिपोर्ट करने में कतराते हैं। उनका कहना है कि सेहत विभाग डेंगू पॉजिटिव आने के मामले में इतने सवाल व ऐतराज करता है कि उन्हें कहना पड़ता है कि यह डेंगू नहीं वायरल का केस है, ऐसे में वे क्यों रिपोर्टिंग करें?
मामले छिपाने से होते हैं हालात विस्फोटक : विशेषज्ञ
विशेषज्ञों का मानना है कि डेंगू के मामले छिपाने से स्थिति बिगड़ती है और हालात विस्फोटक होकर महामारी वाले बन जाते हैं, क्योंकि 65 प्रतिशत मामले में सेहत विभाग फोकल स्प्रे व बचाव कार्य नहीं करता। मसलन जिले में 3,000 के करीब मामले सामने आने पर 329 डेंगू के मामलों की पुष्टि की गई। गाइडलाइन के अनुसार 329 मरीजों के घरों सहित आसपास के 20 घरों में स्प्रे किया गया ताकि बीमारी न फैले परंतु 2,671 मरीजों के मामलों में ऐसा नहीं किया गया। इससे बीमारी फैलने के चांस कई सौ गुना बढ़ गए और ऐसा हुआ भी, जिससे लुधियाना में हालात महामारी वाले बन गए तथा अस्पतालों में हाऊसफुल वाली स्थिति बनी हुई है।
अस्पतालों की रिपोर्ट में होती है कांट-छांट
क्रॉस चैकिंग के नाम पर सेहत विभाग अस्पतालों की रिपोर्ट की कांट-छांट कर देता है। उदाहरण के तौर पर सेहत विभाग ने लुधियाना में 652 लोगों में डेंगू की पुष्टि की है। इनमें से 388 लुधियाना के रहने वाले हैं, जबकि अकेले दयानंद अस्पताल ही 1,850 से अधिक मरीजों में डेंगू की पुष्टि कर चुका है। जिले में 3,000 के करीब डेंगू के मरीज सामने आ चुके हैं।
डेंगू से 20 मरीजों की हो चुकी है मौत
महानगर लुधियाना में डेंगू से 20 से अधिक मरीजों की मौत हो चुकी है। दयानंद अस्पताल 18 मरीजों की डेंगू से मौत होने की रिपोर्ट सेहत विभाग को भेज चुका है परंतु किसी एक मरीज की मौत की पुष्टि सेहत विभाग द्वारा नहीं की गई।
गाइडलाइंस की अनदेखी
सरकार द्वारा समय-समय पर डेंगू संबंधी जारी की गई गाइडलाइंस का न तो सेहत विभाग पालन कर रहा है और न ही निजी अस्पताल। हालांकि गाइडलाइन में डेंगू के संदिग्ध मरीजों के घरों के आसपास भी स्प्रे करने को कहा गया है परंतु न तो पूरे पॉजिटिव मामलों की रिपोर्ट तैयार की जाती है और न ही संदिग्ध मरीजों के घरों के आसपास स्प्रे किया जा रहा है। अस्पतालों के पॉजिटिव मरीजों में से ही सेहत विभाग संदिग्ध मरीजों की सूची तैयार करता है। किसी भी अस्पताल से संदिग्ध मरीजों की सूची नहीं मांगी जाती। दूसरे हर डेंगू के मरीज को मच्छरदानियों में रखने को कहा गया है परंतु न तो सरकारी अस्पतालों और न ही निजी अस्पतालों में डेंगू के मरीजों को मच्छरदानियों में रखा जा रहा है।
अस्पतालों पर डेंगू के मामले सार्वजनिक करने पर रोक क्यों
सेहत विभाग द्वारा अस्पतालों पर डेंगू के मामले सार्वजनिक करने पर रोक लगाई गई है और अस्पताल प्रबंधकों पर नाजायज दबाव बनाया जाता है ताकि सेहत विभाग जो आंकड़े सार्वजनिक करे, वही सच माने जाएं। इसे प्रैस पर आधारित बैन भी माना जा रहा है और लोगों के सच जानने के अधिकार पर भी यह दमन का एक हिस्सा है। ऐसा लोगों की आम राय है।