Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Feb, 2018 12:21 PM
कपूरथला की सियासत में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले राणा गुरजीत सिंह ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जब प्रदेश में उनकी ही पार्टी की सरकार होगी तो उनके सितारे गर्दिश में पहुंच जाएंगे। राजनीति में कभी हार न खाने वाले राणा गुरजीत सिंह को अपनों से ही...
जालंधर (रविंदर शर्मा): कपूरथला की सियासत में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले राणा गुरजीत सिंह ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जब प्रदेश में उनकी ही पार्टी की सरकार होगी तो उनके सितारे गर्दिश में पहुंच जाएंगे। राजनीति में कभी हार न खाने वाले राणा गुरजीत सिंह को अपनों से ही मार पड़ रही है। बात अभी महज 11 महीने पुरानी ही है, जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी। सरकार बनते ही राणा गुरजीत सिंह के सपनों को पंख लग गए थे।
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह के करीबी रहे राणा गुरजीत सिंह को कैबिनेट में जगह मिल गई थी। दोआबा से अकेले राणा ही सरकार में अपना दबदबा दिखा रहे थे। धीरे-धीरे उनकी पार्टी की अंदरूनी राजनीति में भी पकड़ मजबूत होने लगी थी। एक समय था जब राणा गुरजीत सिंह खुद को डिप्टी सी.एम. से लेकर सी.एम. तक बनने के सपने देखने लगे थे।
राणा गुरजीत सिंह ने दोआबा समेत माझा के भी कई विधायकों के अपने पक्ष में करने के लिए डिनर डिप्लोमैसी तक शुरू कर दी थी। मगर अचानक राणा गुरजीत सिंह की किस्मत ने तब पलटी मारी जब रेत खनन बोली मामले में उनका नाम सामने आया। हालांकि शुरूआती महीनों में वह रेत खनन मामले के खेल में बचते नजर आए, क्योंकि मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने साथ देते हुए इस मामले में आयोग बिठा दिया और आयोग ने बाद में क्लीन चिट भी दे दी। मगर विपक्ष ने इस मामले को लेकर हल्ला तेज कर दिया। इसके बाद राणा गुरजीत सिंह का बेटा ई.डी. के मामले में क्या फंसा। खुद पर विपक्ष के हमले तेज होते देख राणा गुरजीत सिंह ने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को भेज दिया। मगर मुख्यमंत्री ने भी पूरी यारी निभाते हुए 14 दिन तक इस्तीफा अपनी जेब में ही रखे रखा। मगर जब बात राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तक पहुंची तो तुरंत कड़ा एक्शन लिया गया और रातों-रात राणा गुरजीत सिंह का इस्तीफा मंजूर कर लिया गया।
पहले कैबिनेट से बाहर, फिर ई.डी. का घेरा और अब इंकम टैक्स विभाग ने भी राणा की कम्पनियों पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। चारों तरफ से घिरे राणा गुरजीत सिंह राजनीति के ऐसे चौराहे पर पहुंच गए हैं, जिनका अब वापस आना बेहद मुश्किल लग रहा है। उनका राजनीतिक करियर भी अब हिचकोले लेने लगा है। इतनी बुरी दुर्गति तो राणा गुरजीत सिंह के करियर की तब नहीं हुई, जब प्रदेश में अकाली-भाजपा सरकार थी, मगर अपनी सरकार आते ही राणा गुरजीत सिंह के बुरे दिन शुरू हो गए।