वी.सी. दफ्तर के खर्चों पर चलेगी कैंची!

Edited By Updated: 23 Jan, 2017 09:32 AM

punjabi university patiala

पंजाबी यूनिवर्सिटी के  आर्थिक हालातों को देखते हुए नए बजट में एक बार फिर से वी.सी. दफ्तर के खर्चों में और कटौती की जा सकती है।

पटियाला (प्रतिभा) : पंजाबी यूनिवर्सिटी के  आर्थिक हालातों को देखते हुए नए बजट में एक बार फिर से वी.सी. दफ्तर के खर्चों में और कटौती की जा सकती है। साल 2016-17 के बजट में वाइस चांसलर दफ्तर के कुल खर्च में से 50 हजार रुपए से अधिक की कटौती की गई थी क्योंकि यूनिवर्सिटी की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं चल रही है। ऐसे में आर्थिक संकट से गुजर रही पंजाबी यूनिवर्सिटी इस बार भी वी.सी. आफिस के खर्चों पर कैंची चला सकती है।

नई बनी सरकार पर टिकेगी बजट की नजर
चूंकि नया बजट नई सरकार बनने के बाद ही पेश होना है। तो इस बार भी नई सरकार पर बजट की नजर रहेगी। सरकार किस पार्टी की बनेगी, इस बारे अभी कोई कुछ भी नहीं कह सकता। सरकार अगर बजट बढ़ा देती है तो शायद यूनिवर्सिटी को कोई फायदा मिले। हालांकि पिछले लगातार कई सालों से घाटे का बजट पेश कर रही यूनिवॢसटी ने अपने कई खर्चे घटाने का फैसला किया था। हालांकि सभी फैसलों पर अमल नहीं हो सका। पर वी.सी. दफ्तर के खर्चे कम करने के लिए बजट में कमी जरूर कर दी गई है। ऐसे में इस बार भी इसी बात की संभावना बढ़ रही है कि इस बार भी वी.सी. दफ्तर के बजट में कमी की जा सकती है।


सरकार से 50 करोड़ रुपए की ग्रांट भी पूरी नहीं मिली
वहीं  यूनिवर्सिटी को सरकार से मौजूदा सैशन के लिए मांगी गई 50 करोड़ रुपए की ग्रांट भी इस बार नहीं मिली क्योंकि सरकार की शर्त थी कि रिटायरमैंट के बाद कर्मचारियों की दोबारा भर्ती नहीं होगी। तभी पी.यू. को ग्रांट का पूरा हिस्सा मिलेगा। पर  यूनिवर्सिटी प्रशासन इसके खिलाफ जाते हुए लगातार रिटायर हो चुके अफसरों, मुलाजिमों को एक्सटैंशन देकर दोबारा भर्ती कर रही है। ऐसे में सरकार ने जो बजट  यूनिवर्सिटी को देना था वो नहीं दिया है।

 

नए सैशन का बजट अगले 10 दिन में बनना शुरू हो सकता है 
सूत्रों के मुताबिक अगले 10 दिनों में यूनिवर्सिटी नए सैशन के लिए बजट बनाना शुरू करने जा रही है। इसके लिए सभी डिपार्टमैंट्स से उनकी रिक्वायरमैंट्स और बजट के बारे में जानने की प्रक्रिया भी जल्द शुरू होने जा रही है। हालांकि यूनिवर्सिटी का इस बार भी बजट घाटे वाला ही होगा। ऐसे में हो सकता है कि फिर से खर्चों में कटौती करने के लिए कोई योजना बने। लेकिन हर बार योजना बनने के बाद भी खर्च कम नहीं हो रहे हैं।
 

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