Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Jun, 2017 08:38 AM
पंजाब दिनों-दिन भू-जल के गिरते स्तर को लेकर जल संकट की ओर बढ़ रहा है। हालत यह हो चुकी है कि पंजाब में कुल 138 वाटर ब्लॉक्स में से केवल 22 ब्लॉक ही सेफ रह गए हैं। चिंता के इस विषय पर अब तक किसी सरकार ने कोई संजीदगी नहीं दिखाई तो इसमें कोई शक नहीं कि...
सन्दौड़ (रिखी) : पंजाब दिनों-दिन भू-जल के गिरते स्तर को लेकर जल संकट की ओर बढ़ रहा है। हालत यह हो चुकी है कि पंजाब में कुल 138 वाटर ब्लॉक्स में से केवल 22 ब्लॉक ही सेफ रह गए हैं। चिंता के इस विषय पर अब तक किसी सरकार ने कोई संजीदगी नहीं दिखाई तो इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले समय में पंजाब रेगिस्तान बन जाएगा और पानी की बूंद-बूंद के लिए आने वाली पीढिय़ां तरसेंगी।
पानी के दुरुपयोग पर हो सजा
समाजसेवी इन्द्रजीत सिंह मुंडे ने कहा कि जो लोग पानी को फिजूल समझ कर इसका दुरुपयोग करते हैं, उनके लिए सख्ती के साथ कानूनी बने और लागू हो। वातावरण के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाने चाहिएं जिससे बारिश अधिक पड़े और पानी हारवैस्ट होकर धरती में समा सके। भू-जल को बचाने के लिए किसानों को डा. जसविन्दरपाल सिंह कृषि माहिर की तरफ से सलाह दी जाती है कि धान की कम समय लेने वाली पी.आर. -124, पी.आर. -123, पी.आर. -121, पी.आर. -122, पी.आर. -113 और पी.आर. -114 किस्मों की पनीरी की लगवाई 15 जून से और ज्यादा कम समय लेने वाली किस्मों पी.आर. -126 और पी.आर. -115 की लगवाई 20 जून से खेतों में शुरू करो। बासमती किस्मों पी.बी. बासमती-2, 3, पूसा-1121,1509 जो कम पानी लेती हैं, की बिजवाई की सिफारिश की जाती है। पिछले साल किसानों की तरफ से सीधी बिजाई के अंतर्गत 890 एकड़ धान की फसल लगाई गई जोकि इस साल ओर भी बढऩे की संभावना है। धान की सीधी बिजाई करने के साथ पानी की काफी बचत होती है।
क्या कहना है समाज सेवियों का
इस संबंधी पानी बचाओ मंच के लिए काम कर रही संस्था के नेता रजिन्दरजीत सिंह कालाबूला का कहना है कि सरकार हर गांव में हारवैस्टर व्यवस्था लगाए जिससे बारिश का पानी धरती में समा सके और लोग अपनी आदतें बदलें व पानी की कीमत समझ कर उसका प्रयोग सीमित करें।
धान की फसल के लिए तकरीबन पड़ती है 20 पानियों की जरूरत
धान की फसल के लिए तकरीबन 20 पानियों की जरूरत पड़ती है और धान के लिए कुल पानी की खपत 1510 मी.मी. या 1.5 मीटर होती है जोकि सावन की फसल के बाकी बीजने वाली सभी फसलों की अपेक्षा अधिक होती है। किसानों को सावन की फसल की कम पानी लेने वाली फसलों जैसे गन्ने, कपास/नरमा, मक्का, मूंग की दाल, अरहर, मूंगफली, बाजरा, सोयाबीन और मिर्च आदि बीजने की सलाह दी जाती है। किसान इन फसलों की तरफ तब ही उत्साहित होंगे यदि इनके भाव अच्छे होंगे।
2015-16 दौरान भू-जल का स्तर 2 मीटर घटा
खेतीबाड़ी अफसर धूरी और शेरपुर डा. जसविंद्र पाल सिंह ग्रेवाल ने बताया कि डायनामिक ग्राऊंड वाटर रिसोॢसज ऑफ पंजाब स्टेट की तरफ से पंजाब के 138 ब्लाकों का सर्वे किया गया। उनकी रिपोर्ट अनुसार पंजाब के 110 ब्लाक ओवर एक्सप्लॉयटिड, 4 ब्लाक क्रिटीकल, 2 ब्लाक सैमी क्रिटीकल और 22 ब्लाक सेफ डाले गए। संगरूर के धूरी और शेरपुर ब्लाक ओवर एक्सप्लॉयटिड-नोटीफाइड कैटेगरी में डाले गए जिस कारण वहां के इलाकों में कोई भी उद्योग नहीं लगाया जा सकता और 4 हैक्टेयर या इससे अधिक जमीन वाले किसान को मोटर कनैक्शन नहीं दिया जा सकता।
डा. ग्रेवाल ने बताया कि डायनामिक ग्राऊंड वाटर रिसोॢसज ऑफ पंजाब स्टेट की तरफ से सर्वे हर 5 साल बाद किया जाता है। साल 2006 से 2016 दौरान किए सर्वे अनुसार यह तथ्य सामने आया कि भू-जल स्तर 1.14 मीटर औसतन हर साल घटा। साल 2015 -16 दौरान भू-जल का स्तर सबसे अधिक 2 मीटर घटा। उन्होंने यह भी बताया कि धूरी-शेरपुर ब्लाक में 4 हैक्टेयर या इससे कम जमीन वाले किसान बिजली मोटरों के कनैक्शन लेना चाहते हैं तो उनको जिला एडवाइजरी समिति संगरूर में विचारने उपरांत ही बिजली कनैक्शन देने या न देने बारे फैसला किया जाता है। इस समिति का नोडल अफसर सैंट्रल ग्राऊंड वाटर अथॉरिटी का नुमाइंदा होता है। माननीय डिप्टी कमिश्नर संगरूर इस समिति के चेयरमैन हैं, मुख्य कृषि अफसर संगरूर और ज्योलॉजिस्ट संगरूर इस समिति के मैंबर हैं। ईसापुर पुछकटा, अलीपुर और रूडग़ड़ह भुन की मिलती चारागाहों में इलाकों का सबसे गहरा पानी पाया जा रहा है।
गांवों के वाटर वर्क्स बेलगाम
बहुत से गांवों के वाटर वक्र्स जिनको पंचायतों के हवाले कर दिया गया है, वे भी बेलगाम ही हैं जिनकी तरफ से सांझे स्थानों पर चलती टूटियां, जितना समय पानी छोड़ा जाता है, बिना प्रयुक्त किए ही चलती रहती हैं।
सरकारों को करने चाहिएं भू-जल स्तर को ऊंचा उठाने के प्रयास
सरकारों को भी केन्द्र और क्षेत्र स्तर पर भू-जल को बचाने और हारवैस्टर व्यवस्था समेत माहिरों की राय के साथ भू-जल के स्तर को ऊंचा उठाने के प्रयास करने चाहिएं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि पंजाब में इस समय कुल 15,294 जल स्कीमें चल रही हैं जिनमें से 13,586 भू-जल के साथ और 1808 नहरी पानी के साथ संबंधित हैं। वाटर वक्र्स विवाग की रिपोर्टों के अनुसार पंजाब के कुल वाटर वक्र्स में से 4248 वाटर वक्र्स का पानी न पीने योग्य हो चुका है और जो 69 प्रतिशत पानी हमारे पास है, हम उसको भी जल्द खत्म करन पर तुले हुए हैं।
लगातार घट रहा है भू-जल
‘डायनामिक ग्राऊंड वाटर रिसोर्सज’ अथारिटी की रिपोर्टों के अनुसार पंजाब का एक बड़ा हिस्सा कृषि विभाग ने ‘डार्क’ जोन घोषित कर दिया है। रिपोर्टों के आंकड़ों अनुसार भूजल लगातार घट रहा है और हर साल घटता ही जा रहा है।
नहरी पानी का अधिक से अधिक हो प्रबंध
पानी बचाने के लिए पिछले लम्बे समय से यत्नशील समाजसेवी गुरदयाल सिंह शीतल ने कहा कि फसलों के लिए अधिक से अधिक नहरी पानी को प्रयोग करना चाहिए। इसलिए सरकार हर क्षेत्र में नहरी पानी का प्रबंध करे और भू-जल सिर्फ जिंदगी जीने के लिए ही इस्तेमाल किया जाए।
कितना पानी लेती है धान की फसल और कैसे करें धान का हल?
पानी का इतना तेजी के साथ नीचे जाने का मुख्य कारण किसानों की तरफ से लंबे समय में पकने वाली धान की किस्मों पूसा-44 और पिल्ली पूसा लगाना है। रिपोर्टों अनुसार एक किलोग्राम चावल पैदा करने के लिए तकरीबन 4000 लीटर पानी का उपभोग होती है।
पक्की मंडी व्यवस्था से बिना धान की फसल छोडऩा मुश्किल
किसान नेता निर्मल सिंह और सुरिन्दर सिंह ने कहा कि किसानों को पता है कि धान की फसल के लिए बहुत ज्यादा पानी चाहिए होता है परन्तु किसानों के पास इसके बिना कोई हल नहीं है क्योंकि गेहूं धान से बिना अन्य फसलों का पक्का मंडीकरण नहीं है। अन्य फसलों का पक्का मंडीकरण होना चाहिए।
पानी अब खत्म होने के किनारे पर
सवाल यह है कि यह स्तर आखिर कब तक घटेगा? आखिर कब तक लोग घरों और खेती वाली मोटरों में पाइपों के टुकड़े डालकर पानी का प्रयोग करते रहेंगे? शायद इन सवालों का जवाब एक ही है कि यह अनमोल पानी जिसको हम आए दिन बिना कारण ही बहाए जा रहे हैं जिसमें कारों, पशुओं, घरों को धोने और खेतों में धरती के सीने में से निकाला पानी बहाते जा रहे हैं, अब खत्म होने के किनारे पर है और जहां इसको संभालने की जरूरत है वहां अपनी आदतों भी बदलनीं पड़ेंगी।