Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Oct, 2017 12:58 PM
पंजाबी यूनिवर्सिटी के फाइनांस अफसर और कंट्रोलर की पोस्ट संभाल रहे डा. बलजीत सिंह सिद्धू 30 सितम्बर को रिटायर हो गए हैं। 4 साल फाइनांस अफसर का कार्यभार संभालने वाले सिद्धू जाते-जाते स्टाफ-मुलाजिमों का 4 माह के लिए भला करके गए हैं क्योंकि पिछले कई माह...
पटियाला (प्रतिभा, जोसन): पंजाबी यूनिवर्सिटी के फाइनांस अफसर और कंट्रोलर की पोस्ट संभाल रहे डा. बलजीत सिंह सिद्धू 30 सितम्बर को रिटायर हो गए हैं। 4 साल फाइनांस अफसर का कार्यभार संभालने वाले सिद्धू जाते-जाते स्टाफ-मुलाजिमों का 4 माह के लिए भला करके गए हैं क्योंकि पिछले कई माह से वेतन लेट आने की वजह से परेशान चल रहे अफसर-मुलाजिमों को अब आने वाले 4 माह में वेतन की समस्या नहीं होगी।
वहीं नए फाइनांस अफसर
कौन होंगे, इसके बारे में फिलहाल कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है। जानकारी के मुताबिक वाइस चांसलर डा. बी.एस. घुम्मण 8 तारीख से विदेश जा रहे हैं। ऐसे में या तो उससे पहले फाइनांस अफसर किसी को लगाया जाएगा या फिर किसी को चार्ज दिया जाएगा।
इस बार 29 को मिल गया वेतन
फाइनांस अफसर डा. सिद्धू ने कार्यकाल खत्म होने से पहले ही 97 करोड़ रुपए के करीब राशि जमा कर दी है। इसमें से काफी बड़ा हिस्सा यूनिवॢसटी से जुड़े कालेजों से मिला है, जोकि फंड यूनिवॢसटी को आने होते हैं। इसके अलावा जहां कहीं से भी यूनिवर्सिटी के पैसे आने थे, उन्होंने सारे इकट्ठे कर दिए हैं। यही वजह है कि इस बार वेतन के लिए यूनिवॢसटी अथॉरिटी ने 1 तारीख का भी इंतजार नहीं किया और स्टाफ को 29 तारीख को ही वेतन दे दिया।
अब नए फाइनांस अफसर पर होगा सब मैनेज करने का बोझ
डा. सिद्धू के बाद अब जो भी नए फाइनांस अफसर बनाए जाएंगे, उन पर सब मैनेज करने का बोझ होगा क्योंकि यूनिवॢसटी के हालात बहुत ज्यादा ठीक नहीं हैं। पिछले माह का वेतन भी वाइस चांसलर डा. बी.एस. घुम्मण के 278 कालेजों को आने वाली फीस में से यूनिवर्सिटी को मिलने वाले फंड जल्द मंगवाने की वजह से दी गई। उस दौरान 30 करोड़ रुपए के करीब फंड यूनिवर्सिटी को मिल गए थे। इस बार भी कालेजों से जो भी बाकी फंड्स रह गए थे, वह मंगवा लिए गए हैं। इसलिए आने वाले 3-4 माह के वेतन का तो इंतजाम हो गया लगता है।
सरकार से कई बार समय पर फंड्स हासिल किए थे
नई सरकार और नए वी.सी. के आने के बाद और उससे पहले भी कई माह हो चुके हैं, स्टाफ का वेतन सही समय पर नहीं आ रहा था। डा. सिद्धू क्योंकि अकाली सरकार से जुड़े हुए थे, ऐसे में 4 सालों के फाइनांस अफसर के कार्यकाल के दौरान उन्होंने पिछली सरकार से फंड जुटा लिए थे, पर हर बार ऐसा नहीं हुआ। एक तो यूनिवर्सिटी के वित्तीय हालात खराब थे और उससे भी मुश्किल यह था कि सरकार की तरफ से पिछले साल फंड मिलने बंद हो गए या फिर समय पर नहीं मिल रहे थे। ऐसे में वेतन देने के लिए यूनिवॢसटी को स्टूडैंट्स से आने वाली फीस पर निर्भर होना पड़ रहा था। फीस भी आई तो उससे 1-2 माह के वेतन का काम ही चल पाया।