Edited By Updated: 29 Apr, 2017 02:26 AM
भारत के किसी भी हिस्से में नक्सली घटना हो तो पंजाब के जख्म भी हरे हो जाते.....
चंडीगढ़: भारत के किसी भी हिस्से में नक्सली घटना हो तो पंजाब के जख्म भी हरे हो जाते हैं। पंजाब पुलिस के साथ-साथ सुरक्षा एजैंसियां और भी सतर्क हो जाती हैं। कारण, पंजाब अभी भी नक्सलवाद का ‘साइलैंट पार्टनर’ बनकर चल रहा है। वर्ष 1967 के दौरान चली नक्सलबाड़ी लहर के लगभग 50 वर्ष बाद भी पंजाब में ऐसी घटनाएं होती रही हैं, जो इस ओर इशारा करती हैं। पंजाब खासकर मालवा के लोगों में विरोध, संघर्ष व जूझने की प्रवृत्ति शुरू से ही रही है।
यही कारण था कि आजादी से पहले भी ज्यादातर संघर्षों का केंद्र यही इलाका रहा और शायद यही वजह थी कि नक्सल लहर को भी इसी खित्ते में ‘हिमायती’ हासिल हुए। ताजा घटना छत्तीसगढ़ के सबसे ज्यादा माओवादी प्रभावित इलाकों में से एक सुकमा जिले की है जिसने पूरे देश, खासतौर पर नॉर्थ इंडिया को झकझोर दिया है। सुकमा में नक्सलियों की ओर से गत दिनों घात लगाकर किए हमले में सी.आर.पी.एफ. के 2 दर्जन से अधिक जवान शहीद हो गए थे। हमला दक्षिणी बस्तर के बुर्कापाल-चिंतनगुफा इलाके में दोपहर करीब साढ़े बारह बजे हुआ था।
नक्सलबाड़ी लहर या नक्सलवाद से शुरू से ही संबंध रहा है पंजाब का
पंजाब का नक्सलबाड़ी लहर या नक्सलवाद से शुरू से ही संबंध रहा है। सुरक्षा एजैंसियों का मानना है कि यह अब भी जारी है लेकिन पंजाब ‘साइलैंट पार्टनर’ के तौर पर नक्सलवादियों का सहयोग कर रहा है। इस बारे में कई खुलासे भी होते रहे हैं। यही कारण है कि राज्य में नक्सलवाद की कोई भी हथियारबंद घटना सामने न आने के बावजूद पंजाब पुलिस लगातार विभिन्न यूनिटों के जरिए उनके समर्थकों और हिमायतियों पर नजर बनाए रखती है।
इंटैलीजैंस ब्यूरो की नक्सलवाद को लेकर कुछ समय के दौरान आई एक रिपोर्ट भी इस ओर इशारा करते हुए खतरे की घंटी तक बजा चुकी है। आई.बी. से मिले इनपुट्स में बताया गया था कि नक्सलवादियों की ओर से 128 से अधिक फ्रंटल ऑर्गेनाइजेशंस के जरिए पंजाब समेत कई राज्यों में पब्लिक कॉन्टैक्ट स्थापित किया जा रहा है। मौजूदा समय में कई किसान और खेत मजदूरों पर आधारित संगठनों पर देश तथा राज्य की सुरक्षा एजैंसियां इसी नजरिए से निगरानी रखती हैं कि उनका या उनके नेताओं का संबंध नक्सलवादियों के साथ रहा है।
हथियारों की आपूर्ति में पंजाब से सहयोग
नक्सलवादियों की ओर से बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में बदतर हो रही नक्सल समस्या के लिए हथियारों की मंडी के तौर पर पंजाब काफी समय से काम करता रहा है। पंजाब पुलिस ने कई ऐसे मामलों से पर्दा उठाया, जहां हथियार डीलरों की ओर से जालसाजी तथा फर्जीवाड़ा कर पीपुल्स वार ग्रुप (पी.डब्ल्यू.जी.) या नक्सलियों के अन्य ग्रुपों को हथियार मुहैया करवाए जाते थे। वर्ष 2002 के दौरान पटियाला पुलिस ने पीपुल्स वार ग्रुप के मुखिया आनंद जी के साथी विजय कुमार, महासचिव सीता राम और राजकुमार को गिरफ्तार किया था। विभिन्न बोर की 15 राइफल्स, रिवॉल्वर और 10 हजार से अधिक कारतूस बरामद हुए थे। पुलिस ने दावा किया था कि यह लोग हथियारों की खरीद के लिए आए थे। इसके बाद मानसा, फरीदकोट और फिरोजपुर में भी कई मामले सामने आए, जिनमें राज्य के डीलर्स ने फर्जी लाइसैंसों और अन्य दस्तावेजों के आधार पर माओवादी-नक्सलवादियों को हथियार मुहैया करवाए थे।
15 अप्रैल, 2011 को मानसा में दर्ज मामले में अवैध रूप से 323 हथियारों को बेचे जाने का पता चला था। मामले में 22 लोग नामजद हुए थे, जिनमें कई पुलिस मुलाजिम और हथियार डीलर्स व ‘बिचौलिए’ भी शामिल थे। केस अभी भी चल रहा है। इसी तरह वर्ष 2015 के दौरान फिरोजपुर में दर्ज अन्य मामले की जांच में पाया गया कि हथियार डीलर्स, सरकारी मुलाजिमों और नक्सलवादियों की मिलीभगत के चलते 550 के करीब जाली लाइसैंसों के जरिए हथियार बेचे गए थे, जो माओवादी संगठन तक पहुंचाए जाने थे। यह चंद बानगी ही हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि पंजाब से हथियारों के जखीरे माओवादी संगठनों तक पहुंचते रहे हैं। वर्ष 2009 में प्रमुख नक्सलवादियों में शुमार जय प्रकाश दूबे को जालंधर के नजदीक से गिरफ्तार किया गया था। दूबे के खिलाफ झारखंड में 25 विभिन्न हत्या और अन्य अपराधों को लेकर मामले दर्ज थे।
बड़ी लीड थी, उससे काफी मदद मिली: आई.जी. उमरानंगल
वर्ष 2002 में पटियाला में पीपुल्स वार ग्रुप के लोगों को हथियारों के साथ गिरफ्तार करने के मामले को याद करते हुए आई.जी. परमराज सिंह उमरानंगल कहते हैं कि वह वाकई बड़ी लीड थी। उस गिरफ्तारी से पंजाब पुलिस को नक्सलियों और पंजाब के हथियार डीलर्स के बीच चल रहे संबंध का पता चला था। उसके बाद कई गिरफ्तारियां और बरामदगियां भी हुईं। प्रतिबंधित बोर के हथियार बड़ी होशियारी के साथ नक्सलियों तक पहुंचाए जा रहे थे। उस मामले के बाद कई केस दर्ज हुए लेकिन शायद उसके बाद नक्सलियों की पंजाब में कोई बड़ी गिरफ्तारी या बरामदगी नहीं हुई। वर्ष 2009 के दौरान जय प्रकाश दूबे जरूर गिरफ्तार हुआ लेकिन उक्त केस ने नक्सलियों को आसानी से उपलब्ध होने वाले हथियारों का नैटवर्क तोड़ दिया था। आई.जी. उमरानंगल उस समय एस.एस.पी. पटियाला थे।
एक्टिविटी नहीं लेकिन हम सतर्क हैं: डी.जी.पी. अरोड़ा
पंजाब में नक्सलवादी लहर के सक्रिय रहने के इतिहास को देखते हुए मौजूदा समय की स्थिति के संबंध में पूछे जाने पर डी.जी.पी. सुरेश अरोड़ा ने कहा कि पंजाब अन्य प्रदेशों के मुकाबले काफी शांत है और नक्सलवाद का जो स्वरूप 1960 से 80 के दशक के दौरान रहा, वैसा अब राज्य में बिल्कुल भी नहीं है। हालांकि कुछेक फ्रंटल आर्गेनाइजेशंस में अभी भी नक्सल प्रभावित लोग सक्रिय हैं लेकिन राज्य की पुलिस की ओर से इस मामले में कड़ी निगरानी रखी जाती है, ताकि लोकतांत्रिक तरीकों के अलावा किसी भी तरह के संघर्ष को सिर न उठाने दिया जाए।
आइकॉन के तौर पर जाने जाते थे बाबा बूझा सिंह
पंजाब में बाबा बूझा सिंह कोनक्सलबाड़ी लहर के पुरोधाओं में शुमार किया जाता रहा है। वर्ष 1970 में फिल्लौर के पास पुलिस मुकाबले में मौत के बाद बाबा बूझा सिंह भी पंजाब में नक्सलवाद के आइकॉन के तौर पर बन गए। राज्य में नक्सलवादी काफी फैला, पुलिस अधिकारियों की हत्याओं में शामिल होने के खुलासे भी होते रहे। यह सिलसिला वर्ष 1980 तक चला, लेकिन खालिस्तानी मूवमैंट शुरू होने के बाद यह दब सी गई। ज्यादातर नक्सलवाद के ‘हिमायती’ 80वें दशक के दौरान या तो खालिस्तानी मूवमैंट से जुड़ गए या फिर पलायन कर गए।
चर्चित ‘नक्सली नाम’
पंजाब में नक्सलवादियों के कई गुट सक्रिय रहे, जिनमें नागारैड्डी ग्रुप, चारू मजूमदार, सीता रमैया के गुट प्रमुख रहे हैं। कमोबेश इन सभी से जुड़े लोग हथियारबंद संघर्ष में यकीन रखते थे। चुनावी राजनीति का विरोध करते रहे जबकि सत्यानारायण गुट के लोग लगातार उस समय के दौरान भी चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेते रहे। पंजाब में चर्चित नक्सलवादियों में बाबा बूझा सिंह, हाकम सिंह समाओं, रापुर बंधु (मानसा), नच्छतर सिंह रोडे, हरभजन सिंह सोही, दया सिंह शामिल रहे हैं।