माता-पिता का उत्पीड़न करने वाली संतानों को घर से निकाल देना ही उचित

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Jul, 2017 03:01 PM

punjab high court

जो संतानें माता-पिता का उत्पीड़न करती हैं, उन पर रहम नहीं किया जा सकता। ऐसी संतानों को घर से निकाल देना ही उचित है।

चंडीगढ़ः जो संतानें माता-पिता का उत्पीड़न करती हैं, उन पर रहम नहीं किया जा सकता। ऐसी संतानों को घर से निकाल देना ही उचित है। चंडीगढ़ के उपायुक्त ने याची और उसके परिवार को घर से निकालने का जो आदेश दिया है, वह न तो अनैतिक है और न ही गैरकानूनी। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक दंपती की याचिका इस टिप्पणी के साथ खारिज कर दी। 

 

याची ने हाई कोर्ट में चंडीगढ़ के उपायुक्त के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उपायुक्त ने याची को घर खाली करने के आदेश दिए थे। याची की मां ने उपायुक्त के पास पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत अर्जी दी थी। बुजुर्ग महिला का कहना था कि उसका बेटा उस पर अत्याचार करता है। इसलिए सैक्टर 45 में उसका जो मकान है, उसे बेटे व बहू से खाली कराया जाए। उपायुक्त ने 1 जून को बुजुर्ग महिला के बेटे अशोक कुमार को 15 दिन के भीतर मकान खाली करने के आदेश दिए। उपायुक्त के इस आदेश को अशोक कुमार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

 

पीठ ने याची को फटकार लगाते हुए कहा 'आपको शर्म नहीं आती, अपनी बुजुर्ग मां का अपमान करते हुए। क्या यही दिन देखने के लिए माता-पिता अपना तन-पेट काटकर बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बनाते हैं? माता-पिता बच्चों को आर्थिक रूप से मजबूत करते हैं, ताकि वह समाज में सम्मानजक स्थान हासिल कर सकें। यदि वही बच्चे बड़े होकर मां बाप का अपमान करें। उनका उत्पीडऩ करें। उनकी जिंदगी नरक बना दें तो हाईकोर्ट आंखें नहीं बंद रख सकता। ऐसी संतानें किसी भी तरह के रहम की हकदार नहीं हैं। याची की 72 वर्षीय विधवा मां, जो जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर हैं, इस समय वह शांति से रहें, इसलिए जरूरी है कि ऐसी संतान उनसे दूर ही रहे।

 

अशोक व उसकी पत्नी और तीन बच्चों की तरफ से दायर याचिका के मुताबिक उपायुक्त को मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत उनकी मां की अर्जी सुनने का अधिकार नहीं था। इसे केवल ट्रिब्यूनल ही सुन सकता है। दूसरा आधार यह था कि, जिस संपत्ति से उसे बेदखल किया गया है, उसके निर्माण के लिए याची ने दुबई से पैसा भेजा था। इस पर पीठ ने कहा कि ट्रिब्यूनल के पास वे केस जाते हैं, जिनमें बुजुर्ग अपनी संपत्ति को वापस पाने के लिए और भरण पोषण की याचना करते हैं। इस केस में संपत्ति के स्वामित्व पर सवाल नहींं उठाया गया है, इसलिए उपायुक्त इसकी सुनवाई के लिए सक्षम हैं।

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