सुखबीर बादल का डाऊन टाऊन प्रोजैक्ट रद्द

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Dec, 2017 10:57 AM

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पावरकॉम केंद्रीय जोन आफिस कैंपस व बिजली मुलाजिमों की रिहायशी पावर कालोनी की सरकारी 32 एकड़ जमीन को पिछली अकाली-भाजपा सरकार ने डाऊन टाऊन प्रोजैक्ट अधीन एक्वायर करने का जो फैसला लिया था, उसको पावरकॉम के बोर्ड ऑफ डायरैक्टर्स ने रद्द करते हुए स्पष्ट कर...

लुधियाना(सलूजा): पावरकॉम केंद्रीय जोन आफिस कैंपस व बिजली मुलाजिमों की रिहायशी पावर कालोनी की सरकारी 32 एकड़ जमीन को पिछली अकाली-भाजपा सरकार ने डाऊन टाऊन प्रोजैक्ट अधीन एक्वायर करने का जो फैसला लिया था, उसको पावरकॉम के बोर्ड ऑफ डायरैक्टर्स ने रद्द करते हुए स्पष्ट कर दिया कि अब यह जमीन नहीं दी जाएगी। उक्त फैसले की पुष्टि करते हुए केंद्रीय जोन लुधियाना पावरकॉम के चीफ इंजीनियर परमजीत सिंह ने बताया कि ग्लाडा को बोर्ड ऑफ डायरैक्टर्स के फैसले संबंधी अवगत करवा दिया गया है। 

सुखबीर बादल के प्रोजैक्टों में से एक था ड्रीम प्रोजैक्ट 
 लुधियाना में 100 एकड़ जमीन पर पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल अपने ड्रीम प्रोजैक्ट के तहत डाऊन टाऊन प्रोजैक्ट को बनाना चाहते थे। उक्त प्रोजैक्ट के लिए सरकार ने ज्यों ही पावरकॉम केंद्रीय जोन कैंपस व बिजली मुलाजिमों की कालोनी की जमीन को खाली करने का आदेश दिया तो विवाद पैदा हो गया। सरकार व मुलाजिम आमने-सामने हो गए। मुलाजिम नेताओं ने तो यहां तक ऐलान कर दिया कि वे न तो आफिस कैंपस व न ही रिहायशी कालोनी की एक इंच जगह को खाली करेंगे, यदि सरकार ने जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वे हर कुर्बानी देने से एक भी कदम पीछे नहीं हटेंगे। उक्त विभाग व मुलाजिम विरोधी आदेश को रद्द करवाने को लेकर राज्य भर में बिजली मुलाजिमों ने रोष प्रदर्शन, रैलियां व कामकाज ठप्प करके हड़तालें करनी शुरू कर दीं। 

जमीन बचाने को लेकर तालमेल कमेटी का गठन 
बिजली विभाग की 32 एकड़ जमीन को बचाने के लिए विभाग के अफसरों व मुलाजिमों की तालमेल कमेटी का गठन किया गया, जिसमें इंजीनियर भूपिंद्र खोसला, सुखबीर वालिया, रमिंद्रजीत सिंह, गुरप्रीत मङ्क्षहद्र सिद्धू, बलविंद्र बाजवा, अशोक तोला, जसवंत सिंह और चरणजीत गिल आदि शामिल रहे। उक्त कमेटी ने हर पार्टी के सांसद, विधायक व मंत्रियों को मांग पत्र सौंप कर गुहार लगाई। 


मामला हाईकोर्ट में पहुंचा
201& में पी.एस.पी.सी.एल. के मुलाजिमों/अधिकारियों ने मीटिंग कर फैसला लिया कि हाईकोर्ट में केस किया जाए, जिसमें अशोक तोला व जसवंत सिंह ने बतौर पटीशनर केस फाइल कर दिया। हाईकोर्ट का फैसला 2014 में यह आया कि यदि उक्त प्रोजैक्ट को अमल में लाना है तो पहले आफिसों व रिहायश का इंतजाम किया जाए, लेकिन सरकार ने इस बारे कुछ नहीं किया। अभी सुप्रीम कोर्ट से इस संबंध में फैसला आना पैंङ्क्षडग है। 

जमीन खाली करने हेतु लगातार बना रहा राजनीतिक दबाव 
जितना समय भी पंजाब में गठबंधन सरकार रही, तब तक पावरकॉम केंद्रीय जोन के अधिकारियों पर लगातार राजनीतिक दबाव बनता रहा कि इस जमीन को जल्द से जल्द खाली कर ग्लाडा के सुपुर्द कर दिया जाए। स्थानीय नगरी के अलग-अलग इलाकों में पावरकॉम आफिस की शिफ्टिंग को लेकर बात चली, लेकिन कहीं पर भी बात नहीं बन सकी। इसी दौरान अकाली-भाजपा सरकार के बदल जाने से यह प्रोजैक्ट अधर में लटक गया। पंजाब में कैप्टन सरकार के आते ही अब बिजली विभाग के बोर्ड ऑफ डायरैक्टर्स ने जमीन देने से साफ मना कर नई चर्चा छेड़ दी है।

मुलाजिमों के संघर्ष की ऐतिहासिक जीत
पावरकॉम के बोर्ड ऑफ डायरैक्टर्स द्वारा लिए गए फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया का इजहार करते हुए मुलाजिम नेताओं स्वर्ण सिंह, जसबीर सिंह, रमेश कुमार व हरजीत सिंह ने बताया कि देरी से लिया गया यह दुरुस्त व ऐतिहासिक फैसला है। इससे मुलाजिमों को यकीनन तौर पर भारी राहत मिली है। उक्त नेताओं ने इसको मुलाजिमों के संघर्ष की जीत बताया है। 

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