पंजाब चुनाव 2017  इन 5 कारणों से जीत या हार सकती हैं पार्टियां

Edited By Updated: 25 Feb, 2017 02:01 PM

punjab election 2017

पंजाब चुनाव हो चुके है अौर सभी पार्टियों को तो नतीजों का इंतजार है ही लोग भी बेचैन हैं। किसके हाथ सत्ता की चाबी होगी अाने वाला समय ही बताएगा।

जालंधरः पंजाब चुनाव हो चुके है अौर सभी पार्टियों को तो नतीजों का इंतजार है ही लोग भी बेचैन हैं। किसके हाथ सत्ता की चाबी होगी अाने वाला समय ही बताएगा। 

शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली: सरना ग्रुप)

इनसे मिल सकती है चुनाव में जीत
 
1.पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव में डेरा सिरसा प्रमुख राम रहीम से अकाली दल द्वारा समर्थन लेने के मामले को दिल्ली कमेटी चुनाव में प्रमुख सियासी मुद्दा बनाकर सिख संगतों के बीच जाना। 

2.पंजाब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की 100 से ज्यादा बार हुई बेअदबी, पंथक सिख अरदास की बेअदबी और इस दौरान निर्दोष लोगों की शहीदी, सरना की जीत के लिए राह आसान कर रहा है। 

3.अकाली दल के दिल्ली कमेटी में 4 वर्ष के दौरान गुरु की गोलक का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार, मुलाजिमों द्वारा कमेटी की महिला कर्मचारियों के शारीरिक शोषण करने जैसे मामलों के विरोध में चुनाव का मुद्दा बनाना। 

4.सरना के कार्यकाल में हुए विकास के बड़े प्रोजैक्ट, सिख संगतों से जुड़े मुद्दों, पंजाब की तर्ज पर दिल्ली के सिख युवाओं को नशेड़ी बनाने से बचाने, सिख बेरोजगारों को रोजगार के साधन की योजना तैयार करने, सिखी के प्रचार-प्रसार के लिए सिख चैनल एवं सिख रेडियो शुरू करने जैसे मुद्दे हैं। 

5.श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश उत्सव पर श्री ननकाना साहिब में धूमधाम से मनाने और दिल्ली से श्री ननकाना साहिब तक नगर कीर्तन निकालने के लिए पाकिस्तान सरकार से मंजूरी लेना। सरना ने 2005 में भी सोने की वर्ष
की पालकी से पाकिस्तान में नगर कीर्तन लेकर गए थे। 

इन कारणों मिल सकती है चुनाव में हार

कमेटी चुनाव में सिर्फ 2 भाइयों पर पार्टी का कें द्रित होना और सिर्फ एक सीट (पंजाबी बाग) पर पार्टी की पूरी ताकत झोंकना, बाकी सीटों के लिए नुक्सान हो सकता है। 
चुनाव प्रचार के लिए बादल दल के मुकाबले आधुनिक संसाधनों का इस्तेमाल न करना, युवाओं की फौज का अंदरखाते पार्टी प्रत्याशियों का साथ न देना और सोशल नैटवर्क पर पार्टी एवं प्रत्याशियों का लचर प्रदर्शन नुक्सान पहुंचा सकता है।  मीडिया और अन्य प्रबंधनल भी अकाली दल, दिल्ली के मुकाबले एकदम ठीक नहीं है। पंजाब चुनाव में डेरा समर्थन को लेकर अकालियों को घेरने के एवज में खुद उसी मामले में घिर जाना। सरना द्वारा वर्ष 2007 में डेरा प्रमुख का माफीनामा श्री अकाल तख्त साहिब पर ले जाने का वीडियो और पत्र सार्वजनिक होना। साथ ही माफीनामा पहुंचाने के लिए सरना की कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से हुई डील पर सवाल उठना। सरना के कार्यकाल में बाला साहिब अस्पताल एक कंपनी को बेचने का मामला और निजी ट्रस्ट के जरिए खर्च करना भी सरना को नुक्सान पहुंचा सकता है। हालांकि, सरना ने इस मसले को पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है।  


शिरोमणि अकाली दल (बादल)

इनसे मिल सकती है चुनाव में जीत
1984 के सिख दंगों में मारे गए लोगों की याद में 32 वर्ष बाद 2.25 करोड़ रुपए की लागत से शहीदी स्मारक ‘सच की दीवार’ बना कर संगतों को समॢपत की गई। 
 गुरुद्वारा शीशगंज साहिब के ऐतिहासिक प्याऊ को तोडऩे वाली दिल्ली सरकार को मुंह तोड़ जवाब देते हुए 2 घंटे बाद ही प्याऊ का दोबारा निर्माण करवाना। बाद में अदालती लड़ाई के जरिए प्याऊ के नक्शे को मंजूरी दिलाना।
श्री गुरु गोङ्क्षबद सिंह के 350वें प्रकाश उत्सव के समय इंडिया गेट के मैदान में पहली बार गुरुमति समागम आयोजित करके सिखों की नई नौजवान पीढ़ी को सिख इतिहास के साथ जोड़ा गया। इसके अलावा विरासत की सेवा-संभाल और प्रचार-प्रसार के लिए दिल्ली में सिख इतिहास पर दिल्ली फतेह दिवस करवाना। 
पहले सिख जरनैल बाबा बंदा सिंह बहादुर की शहीदी शताब्दी धूमधाम से मनाना और पंजाब सरकार की मदद से दिल्ली के मंडी हाऊस में उनकी विशाल प्रतिमा लगवाना। 
देश और दुनिया के सिखों की सुविधा और सिख इतिहास को एक छत के नीचे उपलब्ध करवाने के मकसद से गुरुद्वारा श्री रकाबगंज साहिब परिसर में इन्टरनैशनल सैंटर फॉर सिख स्टडीज का निर्माण करवाना। 

इन कारणों मिल सकती है चुनाव में हार
4 फरवरी को पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव में डेरा सिरसा प्रमुख राम रहीम से प्रत्याशियों के  हक में समर्थन लेना। दिल्ली कमेटी के चुनाव में विरोधियों ने इसी को प्रमुख मुद्दा बना दिया है। 
वर्ष 2016 में समूचे पंजाब में हुई सिलसिलेवार श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाएं और उसमें पंजाब पुलिस द्वारा मारे गए निर्दोष लोगों का मामला भी अकालियों की जीत की राह में सबसे बड़ा रोडा बन सकता है। यह भी दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डी.एस.जी.एम.सी.) चुनाव का बड़ा मुद्दा। पिछले गुरुद्वारा चुनाव में सबसे अहम एजैंडा रहा श्री बाला साहिब अस्पताल और उसे सिख संगत के लिए चालू करवाने में अकाली दल 4 वर्ष में असफल रहा।  कमेटी की कार्यप्रणाली और गुरु की गोलक, शिक्षण संस्थानों को पूरी तरह से निष्पक्ष बनाने के लिए चुनावी मुद्दा रहा, इतना ही नहीं आर.टी.आई. पूरे कार्यकाल में नहीं शुरू की गई। अकाली दल के कार्यकाल में 3 महीने पहले गुरु तेग बहादुर इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी (इंजीनियरिंग कॉलेज) राजौरी गार्डन तथा श्री गुरु तेग बहादुर पॉलीटैक्निक इंस्टीच्यूट, वसंत विहार का बंद होना।
 

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