Edited By Updated: 20 Jan, 2017 10:01 AM
पंजाब में इस बार चुनाव प्रचार के लिए मुख्य दलों के प्रत्याशियों को काफी कम समय मिला है। इसका मुख्य कारण प्रत्याशियों के चयन व चुनाव तिथियों की घोषणा में देरी होना है।
जालंधरः पंजाब में इस बार चुनाव प्रचार के लिए मुख्य दलों के प्रत्याशियों को काफी कम समय मिला है। इसका मुख्य कारण प्रत्याशियों के चयन व चुनाव तिथियों की घोषणा में देरी होना है। सभी दलों के प्रत्याशियों का फोकस अपने हलकों में डोर-टू-डोर कैम्पेन करना और ज्यादा से ज्यादा नुक्कड़ रैलियां करने पर है।
ऐसे में ये प्रत्याशी बड़ी जनसभाएं करने से बच रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस माह के अंत में जालंधर और लुधियाना में बड़ी रैलियां करने वाले हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी के भी पंजाब में रैलियों के लिए जनवरी के अंतिम हफ्ते में आने की संभावना है। इसके साथ-साथ इन दोनों दलों के राष्ट्रीय नेता भी पंजाब में प्रचार के लिए पहुंचने लग गए हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली का पंजाब दौरा आज से शुरू होने वाला है। पंजाब केसरी ने 255 प्रत्याशियों व उनके चुनाव प्रभारियों से बात की।
हमेशा से ही चुनाव प्रचार के लिए रैलियों व केंद्रीय नेताओं पर निर्भर रहने वाले प्रत्याशी अपने हलकों में बड़ी रैलियों से परहेज कर रहे हैं। प्रत्याशी चाहते हैं कि केंद्रीय नेता प्रचार के लिए शहरी क्षेत्रों में तो रैलियां करें परंतु उन्हें इसके लिए कार्यकत्र्ताओं को भेजने के लिए न कहा जाए। 4 फरवरी को होने वाले चुनाव के लिए अब सीमित समय रह गया है।
प्रत्याशी रैली के स्थान पर नुक्कड़ सभाओं पर जोर दे रहे हैं। इसका एक कारण नोटबंदी भी माना जा रहा है। राजनीतिक मामलों के जानकारों का कहना है कि बेशक बड़ी रैली का खर्च प्रत्याशियों के खाते में न जाकर पार्टी के खाते में जाता है लेकिन उनको तैयारी के लिए भेजने, रहने-खाने का खर्च उनको ही उठाना पड़ता है।
नोटबंदी के कारण चुनाव खर्च निकालना भी मुश्किल हो रहा है। ऐसे में वे इस अतिरिक्त खर्च को उठाने में असमर्थ हैं। प्रत्याशियों की इस असमंजस की स्थिति पर ‘पंजाब केसरी’ ने करीब 255 प्रत्याशियों अथवा उनका चुनाव प्रबंधन कर रहे लोगों से बातचीत की। इस बातचीत के आधार पर जो तथ्य उभरकर सामने आए पेश हैं उनके मुख्य अंश:जब प्रत्याशियों से पूछा गया कि क्या आप नहीं चाहते कि आपके इलाके में केंद्रीय नेताओं की रैलियां आयोजित हों तो दोनों बड़ी पाॢटयों के 80 प्रतिशत प्रत्याशियों का कहना था कि वे बड़े नेताओं की रैलियां नहीं चाहते। रैलियों की तैयारियों के लिए उन्हें कार्यकत्र्ता भेजने पड़ेंगे जबकि क्षेत्रीय पार्टियों का कहना था कि उनके नेता पहले ही रैलियां कर रहे हैं। बड़ी एक दिन की रैली के लिए उन्हें 3-4 दिन कार्यकत्र्ताओं को लगाना पड़ता है। अब चूंकि चुनाव में कम समय रह गया है तो वे डोर-टू-डोर व नुक्कड़ सभाओं से प्रचार करना चाहते हैं। रैली की तैयारियों में लगने वाले कार्यकत्र्ता 3-4 दिन में 30 से 40 प्रतिशत हलके को कवर कर सकते हैं।