Edited By Updated: 10 Jan, 2017 01:51 PM
पंजाब की सियासत में दलित वोट बैंक का हमेशा ही बड़ा महत्व रहा है
चंडीगढ़ (भुल्लर) : पंजाब की सियासत में दलित वोट बैंक का हमेशा ही बड़ा महत्व रहा है, क्योंकि राज्य की 32 प्रतिशत से अधिक आबादी दलित श्रेणी की है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पार्टियों की जीत-हार में दलित वोट बैंक अहम भूमिका निभाता रहा है। पिछले कुछ चुनावों में दलित वोट बैंक के इधर-उधर खिसकने के मद्देनजर इस बार पंजाब विधानसभा में सभी प्रमुख पार्टियों का ध्यान दलित वोट बैंक की ओर पहले से अधिक हो गया है। राज्य के दोआबा क्षेत्र में तो जीत-हार का समीकरण दलित वोट पर ही टिका है। राज्य की कुल दलित आबादी का 40 प्रतिशत से अधिक दोआबा क्षेत्र में ही है।
वर्ष 1984 में कांशी राम की ओर से स्थापित की गई बहुजन समाज पार्टी का आधार कुछ चुनावों में तेजी से गिरा है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में तो यह गिरकर 1.91 प्रतिशत तक सिमट गया। वर्ष 1992 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का सबसे अधिक वोट प्रतिशत 16.32 रहा। उस समय बसपा ने 9 विधानसभा सीटें जीती थीं।
लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो वर्ष 1992 में ही बसपा का वोट प्रतिशत 19.71 था और 1 सीट पर पार्टी विजयी हुई थी। 1996 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने 3 सीटें जीतने में सफलता हासिल की और विजयी उम्मीदवारों में बसपा संस्थापक कांशी राम भी शामिल थे। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव के बाद पंजाब में बसपा के वोट बैंक में गिरावट आनी शुरू हुई। 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत 4.28 था जो इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में बिल्कुल ही नीचे चला गया।
इसका मुख्य कारण आम आदमी पार्टी की ओर दलित वोट बैंक का खिसकना था। ‘आप’ ने इन चुनावों में 4 लोकसभा सीटें जीतीं और अन्य कई सीटों पर 1 लाख से अधिक वोट प्राप्त किए। परंपरागत तौर पर दलित वोट बैंक कांग्रेस के साथ रहा है परंतु बसपा की स्थापना के बाद यह उसकी ओर खिसकना शुरू हो गया। एक समय था जब कांशी राम ने साइकिल पर चलकर पार्टी को दलित समुदाय में मजबूत किया परंतु उनकी मृत्यु के बाद पार्टी में बिखराव शुरू हुआ।
बसपा पंजाब के कई अध्यक्ष बदले और अब स्थिति यह है कि दोआबा जैसे क्षेत्र में विधानसभा चुनाव में 25 से 30 हजार तक वोट लेने वाले मजबूत बसपा नेता दूसरी पाॢटयों में चले गए हैं। बसपा का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला भी काम नहीं आ रहा जिसमें अब सभी श्रेणियों के लिए पार्टी के दरवाजे खुले हुए हैं। पार्टी पिछले कई चुनाव बिना किसी से गठबंधन किए अकेले ही सभी सीटों पर लड़ रही है। इस कारण बसपा पर किसी खास पार्टी को लाभ पहुंचाने के भी आरोप लगते रहे हैं। इस समय जब राज्य में अकाली-भाजपा, कांगे्रस और आम आदमी पार्टी में मुकाबला बना हुआ है, वहीं बसपा के लिए अब भी सबसे बड़ी चुनौती अपने खिसक रहे वोट बैंक को बचाने की ही है।पंजाब में जन्मे कांशी राम थे बसपा संस्थापक
बसपा का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। 14 अप्रैल, 1984 को पंजाब में जन्मे कांशी राम ने स्थापना की थी। उनका जन्म 15 मार्च, 1934 को जिला रोपड़ के गांव खवासपुर में हुआ। डी.आर.डी.ए. पुणे में डिफैंस रिसर्च की नौकरी करने के बाद उनका झुकाव दलित आंदोलन की ओर हो गया। उन्होंने वर्ष 1978 में बैकवर्ड व माइनोरिटी इम्प्लॉइज का संगठन वामसेफ बनाया। इसके बाद वर्ष 1981 में दलित शोषित संगठन डी.एस.-4 बनाया और बाद में 1984 में इसे बहुजन समाज पार्टी के रूप में तबदील कर दिया। स्थापना के बाद उन्होंने इलाहाबाद से पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा और इसके बाद दिल्ली ईस्ट हलके से भी चुनाव लड़ा परंतु सफल नहीं हुए। इसके बाद वर्ष 1996 में वह पंजाब के होशियारपुर हलके से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे।
बाद में वह उत्तर प्रदेश के इटावा से भी सांसद निर्वाचित हुए। वर्ष 2006 में बीमारी के चलते दिल्ली के अस्पताल में कांशी राम की मृत्यु हुई परंतु कुमारी मायावती को उन्होंने वर्ष 2001 में ही सियासी वारिस घोषित कर दिया था। कांशी राम के विचारों से प्रभावित होकर ही मायावती बसपा में आई थीं। उनके साथ पंजाब में भी शुरूआती दौर में काफी सक्रिय रहीं।