Edited By Updated: 05 Jan, 2017 01:03 PM
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के साथ गठबंधन के तहत भाजपा बेशक 117 में से 23 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ती है, लेकिन सरकार के गठन में इसकी भूमिका काफी अहम रहती है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
फरीदकोटः पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के साथ गठबंधन के तहत भाजपा बेशक 117 में से 23 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ती है, लेकिन सरकार के गठन में इसकी भूमिका काफी अहम रहती है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
2007 की तुलना में भाजपा के 2012 के प्रदर्शन की बात करें तो माझा-दोआबा ने ही पार्टी को खेल में रखा। मालवा में पार्टी ने अधिकतर सीटें हारी थीं। माझा में 5 और दोआबा में 6 भाजपा प्रत्याशी जीते। मालवा में लड़ी 8 सीटों में से पार्टी को केवल 1 पर ही जीत हासिल हुई। इस सबके मद्देनजर पिछले आंकड़ों और इस बार ‘आप’ की मैदान में उपस्थिति को देखते हुए पार्टी बहुत ही सावधानी से मैदान में उतर रही है। विभिन्न सर्वे और फील्ड से मिले फीडबैक इसका आधार हैं।
उल्लेखनीय है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में एंटी इंकंबेंसी कांग्रेस और पी.पी.पी. के बीच बंटने से जहां सांझे तौर पर गठबंधन को लाभ हुआ था, वहीं निजी तौर पर भाजपा को भी फायदा मिला था। जहां उस चुनाव में भाजपा द्वारा 3 से 4 सीटें जीतने की संभावना व्यक्त की जा रही थी, वहीं एंटी इंकम्बैंसी फटने की वजह से ये 12 सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी। इन हालात में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पिछले चुनावों की तरह ही 2017 के चुनाव में भी सरकार के गठन में भाजपा अहम भूमिका अदा करने जा रही है।
2017 चुनाव में भी सरकार के गठन में भाजपा की अहम भूमिका
जहां पहले भाजपा की जीत व हार का नुक्सान और फायदा कांग्रेस को होता था, वहीं अब ‘आप’ भी इसकी दावेदार होगी। इस सबके बीच ‘आप’ की उपस्थिति को कई पहलुओं से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसमें सबसे अहम है एंटी इंकम्बैंसी का । जहां अकाली-भाजपा गठबंधन दावा कर रहा है कि इसे विकास कार्यों का फायदा मिलेगा, वहीं एंटी इंकम्बैंसी इसके लिए सिरदर्द भी बनी हुई है लेकिन इसके नेता ‘आप’ के मैदान में होने को अपने लिए फायदेमंद मान रहे हैं। उनका मानना है कि सरकार से किसी न किसी वजह से नाराज वोट (एंटी इंकम्बैंसी) कांग्रेस और ‘आप’ में बंट जाएंगे और उन्हें 2012 की तरह ही फायदा मिल जाएगा।
सभी आकलनों को झुठला कर छूआ 12 का आंकड़ा
2012 में आंकलन कह रहे थे कि कांगे्रस की सरकार बनेगी। अकाली-भाजपा गठबंधन के रिपीट होने की उम्मीद कम थी, लेकिन ऐसा हो गया। शिअद ने 56 जबकि भाजपा ने 12 सीटें जीतीं। कांग्रेस को 46 सीटें मिलीं और विपक्ष में बैठना पड़ा। बात फिर वहीं आकर खड़ी हो गई, भाजपा का प्रदर्शन कांग्रेस के विपक्ष में बैठने का कारण बना। बेशक 2007 के चुनाव के मुकाबले भाजपा की 7 सीटें कम हुईं और कांग्रेस की झोली में गईं, लेकिन प्रदर्शन में 2002 जितनी गिरावट न आना गठबंधन के सरकार बनाने में सहायी सिद्ध हुआ। अब फिर से निगाहें भाजपा के प्रदर्शन पर टिक गई हैं।
प्रदर्शन 2012 से बेहतर होगा : राय
पंजाब भाजपा के महासचिव मंजीत सिंह राय का कहना है कि पार्टी का प्रदर्शन 2012 से बेहतर होगा। कम से कम 17 सीटों पर जीत हासिल करेंगे। कुछ समय से बदले सियासी हालात और पार्टी को मिल रहे समर्थन से स्पष्ट है कि प्रदेश में लगातार तीसरी बार अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार बनेगी। केंद्र व प्रदेश सरकार की नीतियों और पंजाब में विकास का लाभ निश्चित रूप से गठबंधन को मिलेगा। उन्होंने कहा कि 2012 में कोई भी भाजपा को 3-4 सीटों से ज्यादा नहीं दे रहा था, लेकिन पार्टी 12 पर पहुंची। तब कांग्रेस के हक में लहर बताई जा रही थी, अब ऐसा कुछ भी नहीं है। कांग्रेस कहीं दिखाई नहीं पड़ रही है और ‘आप’ में जबरदस्त गुटबाजी है। इसका पूरा फायदा गठबंधन को मिलेगा।