Edited By Updated: 03 Jan, 2017 09:00 AM
कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने कांग्रेस के भीतर अपने विरोधियों को झटका देने के लिए जो एक परिवार में ही टिकट देने का फार्मूला लागू किया है, वह अब
लुधियाना (हितेश): कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने कांग्रेस के भीतर अपने विरोधियों को झटका देने के लिए जो एक परिवार में ही टिकट देने का फार्मूला लागू किया है, वह अब खुद उनके गले की फांस बनने लगा है।कैप्टन को पार्टी के भीतर राजिन्द्र कौर भट्ठल, प्रताप बाजवा व शमशेर दूलो आदि से चुनौती मिलती रही है। इनके पारिवारिक मैंबर भी काफी से चुनाव लड़ते आ रहे हैं। इन नेताओं को सबक सिखाने के लिए कैप्टन ने एक परिवार में एक ही टिकट देने का फार्मूला लागू कर दिया। हालांकि इससे वह खुद भी प्रभावित होंगे और उनके परिवार को कोई मैंबर चुनाव नहीं लड़ पाएगा जबकि घर फूंक तमाशा देखने वाली कहावत के अनुरूप काम करते हुए कैप्टन अपने कई विरोधियों को ठिकाने लगाने में कामयाब हो गए हैं लेकिन इस फैसले से कैप्टन के करीबी कहे जाने वाले कई नेता भी प्रभावित हो रहे हैं। यहां तक कि फार्मूले के खुद कैप्टन के गले की फांस बनने का माहौल पटियाला जिला में पैदा हो रहा है। जहां कद्दावर नेता लाल सिंह (सनौर) ने अपने साथ बेटे के लिए समाना से सीट मांगी है, जिसे लेकर पेंच फंसा हुआ है और लाल सिंह द्वारा हाईकमान के बड़े नेताओं के अलावा सोनिया गांधी व राहुल गांधी तक बात पहुंचाई है। पटियाला हलका से संबंधित एक मामला दीपइंद्र ढिल्लों का भी है। जो पहले डेरा बस्सी से टिकट न मिलने पर आजाद लड़े और अकाली दल में शामिल होकर परनीत कौर को लोकसभा चुनावों में चुनौती दी। अब दीपइंद्र वापस कांग्रेस में आ चुके हैं। जो डेरा बस्सी सीट मांग रहे हैं जबकि अकाली दल से ही उनके करीबी रिश्तेदार कुशलदीप ढिल्लों को फरीदकोट से टिकट मिलने के कारण पेंच फंस गया। जानकारों के मुताबिक अगर लाल सिंह व ढिल्लों के मामले में अच्छा फैसला न आया तो उनके अच्छे आधार वाली पटियाला विधानसभा के अलावा लोकसभा सीट पर भी कैप्टन को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
भट्ठल ने दिया इतिहास का हवाला
जहां तक भट्ठल के दामाद को साहनेवाल से टिकट देने का सवाल है, उन पर एक परिवार का फार्मूला लागू होने का दावा किया जा रहा है। भट्ठल के मुताबिक उनके भाई धनौला से विधायक रह चुके हैं और परिवार का मैंबर दूसरी सीट पर चुनाव लड़ता आ रहा है। दामाद भी प्रदेश महासचिव होने सहित पहले चुनाव लड़ चुका है।
वर्ना और भी होते बेअंत परिवार के उम्मीदवार
अगर एक परिवार को एक टिकट देने का फार्मूला न हो तो बेअंत परिवार से और लोग भी विधानसभा चुनाव लड़ रहे होते, क्योंकि तेज प्रकाश सिंह व गुरकंवल कौर पहले विधायक रह चुके हैं। जिनको अब उनके परिवार से खन्ना के मौजूदा विधायक गुरकीरत कोटली की वजह से मौका नहीं मिलेगा। बेअंत परिवार से रवनीत बिट्टू दूसरी बार सांसद का चुनाव जीते हैं।
खुद कैप्टन को हुआ नुक्सान
इस फैसले के कारण कैप्टन को नुक्सान हुआ कि विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए लोकसभा के मैंबर से इस्तीफा देना पड़ा। पटियाला से उनकी मौजूदा विधायक पत्नी व समाना से चुनाव लड़ चुके बेटे रणइंद्र को अब चुनाव लडऩे का मौका नहीं मिलेगा। यही हाल कैप्टन के भाई मालविन्द्र के लिए भी पैदा हुए हैं।
बाजवा को मिली एक ही टिकट
प्रताप सिंह बाजवा व उनके भाई फतेहजंग बाजवा कई बार अलग-अलग सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन फतेह को कभी जीत नहीं मिली। अब बाजवा राज्यसभा मैंबर बन चुके हैं और उनकी पत्नी कादियां से विधायक हैं। लेकिन परिवार में से एक ही टिकट मिलने कारण पत्नी का नाम वापस लेकर भाई को मौका दिया गया।