Edited By Updated: 27 Dec, 2016 02:00 PM
पंजाब विधानसभा चुनावों की घोषणा होने को कुछ ही समय शेष बचा है लेकिन अभी तक सत्तासीन अकाली-भाजपा गठबंधन के बीच सियासी दूरियां कम होती नहीं दिख रही हैं।
जालंधरः पंजाब विधानसभा चुनावों की घोषणा होने को कुछ ही समय शेष बचा है लेकिन अभी तक सत्तासीन अकाली-भाजपा गठबंधन के बीच सियासी दूरियां कम होती नहीं दिख रही हैं। अकाली-भाजपा के गठजोड़ के इतिहास पर नजर डालें तो 1960 में जनसंघ के समय अकाली और जनसंघ के बीच पहला गठबंधन हुआ था। इसके बाद महज 1970 और 1992 के 2 चुनाव ऐसे हुए जब दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। इन दलों के पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि दोनों के वर्कर बूथ लैवल पर हैं और एक-दूसरे का पूरा सम्मान किया जाता है मगर दोनों ही दलों में कुछ नेताओं में पार्टी के शीर्ष स्थानों को कब्जाने की जंग चल रही है। इससे पार्टियों में तेजी से धड़ेबाजी बढ़ी है। यह दोनों ही दलों की चुनावी तैयारियों पर बड़ा सवाल खड़ा कर रही है।
दोनों दलों के बीच मनमुटाव के बड़े मामले
फरवरी, 2016 में हुए खडूर साहिब वाई-पोल में भाजपा की तरनतारन यूनिट ने अकाली प्रत्याशी रविंद्र सिंह ब्रह्मपुरा के पक्ष में समर्थन करने से अचानक मना कर दिया था। इस दौरान भाजपा के जिला अध्यक्ष नवरीत शाफीपुर ने केवल खुलेआम अकाली प्रत्याशी का विरोध किया था बल्कि यह तक कह डाला कि वह जल्द अकाली नेतृत्व के काले कारनामों को उजागर करेंगे। यह टकराव 2015 में उस समय पैदा हुआ जब नगर निगम के चुनावों में अकाली दल के कार्यकत्र्ताओं ने स्थानीय निकाय मंत्री अनिल जोशी के भाई राजा जोशी और अन्य कार्यकत्र्ताओं के साथ मारपीट की।
इसके बाद अमृतसर (ईस्ट) की एम.एल.ए. और सी.पी.एस. नवजोत कौर सिद्ध के विवादित बयान देने से मामला और गर्मा गया। सी.पी.एस. ने कहा कि अगर गठबंधन जारी रहता है तो लोगों को आम आदमी पार्टी (आप) के पक्ष में वोटिंग करनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि पार्टी को गठबंधन से बाहर आना चाहिए। इस गतिरोध का असर यह हुआ कि सिद्धू परिवार ने पार्टी को छोड़ दिया। नवजोत कौर सिद्धू अभी कांग्रेस ज्वाइन कर चुकी हैं।
भाजपा और अकालियों के बीच गणतंत्र दिवस में सिख रैजीमैंट की गैर-भागीदारी को लेकर भी विवाद देखा गया। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने इस मामले को पत्र के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष उठाया और इस पूरे मामले को दुख व अफसोस का मामला करार दिया। बादल ने कहा कि परेड में फ्रांस के राष्ट्रपति की उपस्थिति के दौरान सिख रैजीमैंट की भागीदारी हटा देना अफसोस की बात है। उन्होंने कहा कि फ्रांस में सिख अधिकारों को लेकर लड़ रहे हैं और वहां सिखों को पगड़ी पहनने को भी प्रतिबंधित किया गया है। इस मामले में बाद में पंजाब भाजपा प्रमुख कमल शर्मा को सफाई देनी पड़ी और उन्होंने कहा कि इसको बेवजह राजनीतिक तूल दिया जा रहा है।
दोनों दलों के बीच सबसे बड़ी तकरार उस समय देखने को मिली जब गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु के बयान के बाद अकाली कार्यकत्र्ता भड़क गए और उन्होंने गृह राज्यमंत्री के बाद उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया। किरण रिजिजु ने अपने बयान में कहा था कि पंजाब पर डिस्टर्ब एरिया के टैग को जारी रखना चाहिए।
इसके अलावा पंजाब भाजपा के कई बड़े नेता ड्रग्स को लेकर अकाली दल सरकार को कटघरे में खड़ा कर चुके हैं। कई बड़े नेताओं ने सार्वजनिक बयानों में सहयोगी दल पर ड्रग्स तस्करी के मामलों में मिलीभगत के आरोप जड़े थे।